राजा का परिवार जी रहा था गरीबी में जिंदगी, तभी पता चला खजाने का रहस्य
जो खुद को कह रही थी राजकुमारी, उसे देखकर आप कहेंगे ये तो हमारी तरह है
3 बेटियां,30 साल लड़ती रहीं,आखिर में मिला 20 हजार करोड़ रुपये का खजाना

इस कहानी की शुरुआत होती है साल 1981 से, दिल्ली से 400 किलोमीटर दूर बसा पंजाब का फरीदकोट सबसे अमीर रियासतों में से एक हुआ करता था. राजा के खजाने में इतना रुपया था कि द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त अंग्रेजों को 17 लाख का कर्ज दिया. इसके अलावा घोड़े, हाथी, ऊंट और जवान भी भेजे. उनके बाद फरीदकोट के राजा बने हरीन्द्रसिंह, जिन्हें अपने बेटे से प्यार था, सड़क हादसे में बेटे की मौत के कुछ दिन बाद ही साल 1989 में महाराजा की मौत हो गई, लेकिन मौत से पहले एक ऐसा वसीयत तैयार करवाया जिस पर बवाल खड़ा हो गया. वसीयत के बहाने एक ऐसा ट्रस्ट खोला गया जिसने राजा की संपत्ति पर लगभग-लगभग अपना हक जमा लिया था, लेकिन जैसे ही मामला अदालत में पहुंचा सारी पोल-पट्टी खुल गई.
राजा हरींन्द्रसिंह की बेटी अमृत कौर ने सबसे पहले चंडीगढ़ अदालत में याचिका दाखिल कर कहा कि हमारे साथ नाइंसाफी हुई है, मैंने लव मैरिज की थी इसलिए मेरे राजा पिता नाराज थे और उन्होंने मुझे प्रोपर्टी से बेदखल कर दिया, जबकि मुझे हक मिलना चाहिए, ट्रस्ट के नाम पर हमारी संपत्ति पर जबरन कब्जा करने की कोशिश की जा रही है, चूंकि ट्रस्ट के पास काफी रुपया था और वसीयत का केस वैसे भी लंबा चलता है इसलिए कानूनी लड़ाई लड़ते-लड़ते अमृत कौर को 30 साल का वक्त लग गया. जुलाई 2020 में ट्रस्ट ने ही पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिस पर 7 सितंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया, पहले सुनिए सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में क्या कहा फिर बताते हैं वसीयत में ऐसा क्या था जिसपर सुप्रीम कोर्ट भी चिढ़ गया और 20 हजार करोड़ के खजाने में क्या-क्या है.

महारावल खेवाजी ट्रस्ट को भंग करने का आदेश दिया जाता है. फरीदकोट महाराज की 20 हजार करोड़ की संपत्ति उनके उत्तराधिकारियों में बांटी जाएगी. महल से लेकर हीरे-मोती-जवाहरात तक का बंटवारा होगा.
मतलब एक झटके में ट्रस्ट पूरी तरह खत्म हो गया, सुप्रीम कोर्ट को ये तक कहना पड़ा है कि लगता है ट्रस्ट राजा की संपत्ति को हड़पना चाहता है. क्योंकि पंजाब से लेकर हरियाणा और दिल्ली तक में कई खजाने हैं. ट्रस्ट में राजा की दो बेटियों को उसका सदस्य बनाया लेकिन चूंकि अमृत कौर की लव मैरिज से नाराज थे इसलिए उन्हें सदस्य नहीं बनाया गया था. महल से लेकर खजाने तक की जिम्मेदारी इसी ट्रस्ट की थी. ऐसे में राजकुमारी होने के बावजूद अमृत कौर को कुछ भी नहीं दिया, राजमहल और सारी प्रोपर्टी से वो बेदखल हो गईं. लेकिन अब उन्हें खजाने का एक-एक बेशकीमती सामान मिलेगा.
फरीदकोट का राजमहल, फरीदकोट का किला, चंडीगढ़ का किला और शिमला का फरीदकोट हाउस
करोड़ों के हीरे-मोती जवाहरात हैं और कई महंगी गाड़ियां जिनमें से कई आज भी चलने लायक हैं
दिल्ली में भी फरीदकोट हाउस है, जिसे केन्द्र सरकार ने ट्रस्ट से अपने किराये पर लिया हुआ है
हर महीने केन्द्र सरकार इसका 17 लाख रुपये किराया महारावल खेवाजी ट्रस्ट को जमा करती है

अब किराये से लेकर हीरे-मोती तक की मालकिन अमृत कौर और उनकी बहन होंगी. ये कानून की सबसे लंबी लड़ाइयों में से एक कही जा रही है, हालांकि वसीयत की लड़ाई ऐसी ही होती है, और बात जब खजाने की हो तो हर कोई हड़पना चाहता है. राजा महाराजा के वक्त सुरंग से लेकर पानी तक में खजाने छिपाए जाते थे, कहते हैं आज भी देश में अरबों का खजाना छिपा हुआ है, जिसका कोई उत्तराधिकारी नहीं है, अगर अमृत कौर ये लड़ाई नहीं लड़ती तो शायद ट्रस्ट बनाने का खेल किसी को समझ नहीं आता, अगर आप किसी ट्रस्ट को दान देते हैं, या ट्रस्ट पर आंख बंदकर भरोसा करते हैं तो ये रिपोर्ट देखने के बाद समझ लीजिए कि हर ट्रस्ट भरोसे के लायक नहीं होता.