कोई भी खिलाड़ी देश से बड़ा नहीं होता है…खिलाड़ी कोई भी हो उसका काम होता है देश के लिए खेलना…यहां हार्दिक पांड्या एक ऐसी भूल कर रहे हैं जिससे ड्रेसिंग रूम में भी मौहाल ठीक नहीं होगा…क्रिकेट का कोई भी समझदार दर्शक या खिलाड़ी पांड्या की इस गलती को सही नहीं ठहरा सकता है…हम पांड्या की गलती पर आए उसके पहले सुनिए धोनी की वो कुर्बानी जो हर कप्तान के लिए ज़रूरी होती है…धोनी जब क्रिकेट के मैदान पर आए उस वक्त कप्तान हुआ करते थे सौरभ गांगुली…धोनी को नंबर तीन पर बैटिंग करने का मौका मिला…धोनी विराट के शतक के अलावा हर उस रिकॉर्ड के करीब है जहां आज विराट कोहली पहुंचे हैं, क्रिकेट के जानकार हमेशा कहते हैं कि अगर धोनी ने अपने रिकॉर्ड के बारे में सोचा होता तो आज उनके रन वनडे में 15 हज़ार होते, कई शतक होते पर ऐसा नहीं हुआ, जब धोनी वनडे और T-20 के कप्तान बने उस वक्त टीम के पास सबकुछ तो था पर एक फिनिशर नहीं था…माही ने रिकॉर्ड का रास्ता छोड़ देश को चुना…धोनी अपनी ही कप्तानी में नंबर 5, 6 और सात नंबर पर बैटिंग करने लगे, जबकि हर खिलाड़ी यहीं चाहता है कि उसे नंबर तीन की कुर्सी मिले…धोनी के इस फैसले न सिर्फ वर्ल्ड कप दिलाया बल्कि कई टूर्नामेंट भारत जीत गया…आख़िरी में फिनिशर की भूमिका उनसे बड़ा किसी का नहीं हो सकता था, सौरभ गांगुली और कपिल देव महान ऑलराउंडर थे, उन्हें कप्तानी मिली पर पांड्या वाली ग़लती नहीं की…तो पहले सुनिए पांड्या ग़लती क्या है? फिर बताते हैं सूर्या के साथ उनका क्या हुआ है?

हार्दिक पांड्या T-20 में कप्तानी पाते ही पहला ओवर खुद को देते हैं, जबकि ज्यादातर मैच में मेन गेंदबाज़ होते हैं, हार्दिक पांड्या ने न्यूज़ीलैंड के साथ पहले t-20 में भी पहला ओवर फेंका और 12 रन दिए थे, जबकि दूसरे मैच में भी हार्दिक पांड्या ने पहला और तीसरा ओवर फेंका जो काफी महंगा रहा, चौथे ओवर में यजुवेंद्र चहल ने विकेट लेकर रनों के रफ्तार को कम किया, आप हैरान होंगे कि यजुवेंद्र चहल के इतनी अच्छी गेंदबाज़ी करने के बाद भी हार्दिक ने उन्हें चार ओवर नहीं दिए, जबकि खुद चार ओवर फेंके, जो साफ दर्शाता है खुद को मौका देने के भाव ज्यादा है…दुनिया का हर दिग्गज इस बात की आलोचना कर रहा है…क्रिकेट के जानकार कहते हैं कि हार्दिक पांड्या को पहला ओवर नहीं फेंकना चाहिए, क्योंकि वो नई गेंद के विशेषज्ञ नहीं है.

पहले T-20 में हार के बाद सूर्य कुमार यादव और हार्दिक पांड्या से कुछ ड्रेसिंग रूम में बात हो रही थी, सूर्य कुमार यादव 47 रन बनाकर OUT हो गए थे, उस वक्त अगर वो OUT न होते तो शायद भारत वो मैच नहीं हारता…ऐसा लगा था वो सूर्या को ये समझा रहे थे कि ये वाला शॉट नहीं खेलना था, यानि कुल मिलाकर एक कप्तान के दौर पर आपको कर के दिखाना होता न कि बताना ही होता है…दुनिया का कोई भी महान कप्तान बना वो अपने दम पर ही बना, धोनी के फिनिशिंग का तरीका हो या फिर पोंटिंग का टीम का संभालना…यहां पांड्या चूक गए, पहले मैच में पांड्या ने अपना ओवर तो फेंका पर उमरान मलिक को सिर्फ एक ओवर दिया, उमरान मलिक ने अपना एक ओवर फेंका था, दूसरा ओवर फेंकने का मौका ही नहीं मिला, जबकि धोनी की कप्तानी में होता ये था कि जिस बॉलर पर रन पड़ते थे वो उसी को अपना हथियार बनाते थे…धोनी की कप्तानी में खेलने वाले पांड्या धोनी के करीबी भी हैं…पर दुर्भाग्य है कि कैप्टन कूल से ये चीज़ नहीं सीख पाए…कप्तान को पता होना चाहिए कब किसको मौका देना है…2011 वनडे विश्व कप के फाइनल में जब भारत के चार विकेट गिर तीन विकेट गिर गए थे धोनी ने युवराज को रोक कर खुद को भेजा जिसकी तारीफ हमेशा की जाती है…हार्दिक पांड्या को वनडे टीम का कप्तान बनाने की बात कहा जा रहा है पर अभी उन्हें और सीखना होगा…किस खिलाड़ी पर कितना भरोसा करना है, खुद की जगह कहां फिक्स करनी है ये भी देखना होगा…क्योंकि महान ऑलराउंडर कपिल देव भी बीच में ही ओवर फेंकते थे, ऐसा नहीं है कि ऑलराउंडर स्ट्राइकर गेंदबाज़ नहीं होते हैं, साउथ अफ्रीका के जैक कालिस भी टीम की तरफ से पहला ओवर फेका करते थे, पर पांड्या को ये समझना होगा टीम में उनसे अच्छे गेंदबाज़ भी हैं…जिनका सम्मान करना होगा.