सरकार के सामने लोहा बनकर खड़े राकेश टिकैत कौन है ? और कौन वो दिल्ली पुलिस का जवान जिसके एक आंसू ने किसान आन्दोलन को दोबारा से ज़िंदा कर दिया ? विरासत में आंदोलन और किसान नेता के रूप में मिली पहचान को राकेश टिकैत अब भी कायम रखे हुए हैं यही कारण है कि अभी किसानों का एक बहुत बड़ा वर्ग इनपर भरोसा करता है। खेती किसानी की बात करने और किसानों के लिए मुखर रहने वाले राकेश टिकैत को किसान किसी अन्य नेता की तुलना में ज्यादा तवज्जो देते हैं। किसानों का उनपर किया गया यही भरोसा आगे बढ़ने, किसानों के लिए लड़ने और सरकार से दो-दो करने का जज्बा पैदा करता है। किसानों का उनपर भरोसे का ही नतीजा है कि जब 52 वर्षीय टिकैत एक आवाज लगाते हैं तो तो हजारों किसान एकजुट होकर कूच कर जाते हैं। जब रो देते हैं तो देखते ही देखते किसानों का हुजूम उनके समर्थन के लिए आसपास इकट्ठा हो जाता हैं। ऐसे में हर किसी के मन में ये सवाल उठता है कि कौन हैं ये राकेश टिकैत जिनके लिए किसान एक आवाज पर संगठित हो जाते हैं ? लोग बताते है कि राकेश टिकैत के लिए सब कुछ आसान था। दिल्ली पुलिस में नौकरी थी पिता का नाम साथ में जुड़ा था लेकिन किसानों का साथ देने का उनका मन उन्हें दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़ने पर मज़बूर कर देता है। किसानों के नेता राकेश टिकैत की आंखों से निकला एक-एक आंसू किसानों के आन्दोलन में जलते आग में घी तरह काम कर गया। राजधानी दिल्ली में किसान आंदोलन एक नाजुक मोड़ पर आ चुका है। ऐसा लग रहा था मानों किसान आंदोलन खुद ब खुद खत्म हो जाएगा। लेकिन भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने बीती रात प्रेस कॉन्फ्रेंस किया और इस दौरान वे भावुक होकर रो पड़े। राकेश टिकैत के इन आंसुओं ने ऐसा लगा मानों किसान आंदोलन में जान फूंक दी हो। क्योंकि इसके बाद वापस जा चुके किसान एक बार फिर गाजीपुर बॉर्डर की ओर पहुंचने लगे और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से भी किसान वहां पहुंचने लगे। 4 जून 1969 को जन्में राकेश टिकैत किसान नेता हैं। इस वक्त उनके पास भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) की कमान है और ये संगठन उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत के साथ-साथ देश के कई राज्यों में फैला हुआ है। किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के घर दूसरे बेटे के रूप में जन्में राकेश टिकैत अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए सबकुछ छोड़कर किसानों के बीच अपनी जिंदगी बितानी शुरू की। मेरठ यूनिवर्सिटी से एमए की डिग्री लेने और एलएलबी की पढ़ाई के बाद राकेश टिकैत दिल्ली पुलिस में कॉन्स्टेबल की नौकरी कर रहे थे। एक मौका ऐसा आया जब बर्दी और जूते उतारकर टिकैत ने धोती और पगड़ी धारण कर किसानों के बीच उतर गए। साल 1993-1994 में किसानों के मुद्दे को लेकर दिल्ली के लाल किले पर महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में आंदोलन चलाया जा रहा था। राकेश टिकैत इसी परिवार से आते थे इस कारण सरकार ने आंदोलन खत्म कराने के लिए उनपर दबाव बनाया। सरकार की ओर से उन्हें कहा गया कि वो अपने पिता और भाइयों से बात करें और आंदोलन को खत्म करने के लिए कहें। राकेश टिकैत साल 1992 में दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के पद पर नौकरी करते थे, लेकिन पिता महेंद्र सिंह टिकैत का प्रभाव उन पर खूब है। यही वजह है कि जबव 1993-1994 में दिल्ली के लाल किले पर पिता महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में किसानों का आंदोलन चल रहा था तो वह भी भावुक हो गए। राकेश टिकैत पर सरकार ने आंदोलन खत्म कराने का दबाव बनाया। साथ ही कहा कि वह अपने पिता और भाइयों को आंदोलन खत्म करने को कहें, जिसके बाद राकेश टिकैत पुलिस की नौकरी छोड़ किसानों के साथ खड़े हो गए थे। प्रशासन की ओर से दबाव के बाद भी राकेश टिकैत नहीं झुंके और पुलिस की नौकरी छोड़ कर किसानों के मुद्दे पर उनके साथ हो गए। नौकरी छोड़ने के बाद राकेश टिकैत ने पूरी तरह से किसानों की लड़ाई में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। जल्द ही किसानों ने राकेश टिकैत को अपना नेता मान लिया। इसे महज संयोग ही कहा जा सकता है कि उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत की कैंसर से मृत्यु हो गई और भारतीय किसान यूनियन की कमान पूरी तरह से उनके हाथों में आ गई। अब पीएम मोदी के सामने ना तो केजरीवाल खड़े है ना ही ममता बनर्जी खड़ी है फिलहाल उन्हें कोई चुनौति दे रहा है तो एक है राकेश टिकैत दूसरे है उनके आंसू। राकेश टिकैत ने मंच के पास खड़े पुलिस अधिकारियों को भी ये कहकर जाने को बोल दिया कि आप बीजेपी विधायक के साथ मिलकर हमें पिटवाने की कोशिश कर रहे हो। ये कहकर वो भावुक होकर रोने लगे और धरना पर बैठने का ऐलान कर दिया। उन्होंने कहा कि वो गोली खाने को तैयार हैं लेकिन धरना स्थल से नहीं हटेंगे। रोते हुए वीडियो वायरल होने के बाद उनके बड़े भाई और BKU के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत जिनका रुख नरम था, उन्होंने भी पंचायत करने का ऐलान कर दिया।।राजनीतिक सफर-किसान नेता राकेश टिकैत ने वर्ष 2007 में राजनीति में प्रवेश किया था। उन्होने 2007 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में मुज्जफरनगर की खितौली विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था लेकिन उनको हार का सामना करना पड़ा था। दूसरी बार राकेश टिकैत ने आरएलडी के टिकट पर 2014 में अमरोहा सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन इस बार भी उनको हार का ही सामना करना पड़ा था
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Farmer’s protest: दिल्ली पुलिस का पूर्व जवान जिसके आंसू ने आन्दोलन को दोबारा ज़िंदा कर दिया ?
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