एक रिटायर्ड कर्मचारी के खिलाफ गुजरात सरकार क्यों लाखों रुपये खर्च करना चाहती थी, पहले उसने गुजरात हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ा, फिर केस सुप्रीम कोर्ट लेकर आई, जिसे देखते ही जज साहब को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने पूछ दिया कि 700 रुपये के पीछे आप क्यों पड़े हैं, पहले जस्टिस गवई की बेंच की टिप्पणी सुनिए फिर बताते हैं पूरा मामला क्या है. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज और वकील के बीच हुई बहस का किस्सा भी सुनाते हैं.
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने कहा,

सरकारों की इस आदत की वजह से अदालतों पर मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है. केंद्र और राज्यों की तरफ से दायर 40 फीसदी केस ऐसे हैं जिनका कहीं कोई मतलब नहीं है. ऐसे मुकदमों में अदालतों का समय तो खराब हो ही रहा है. जनता से टैक्स के रूप में वसूल सकी गई रकम को भी बिना वजह खर्च किया जा रहा है. अगर अगली बार से ऐसा मुकदमा आया तो फिर जुर्माना लगेगा.
ये केस दरअसल था ही जुर्माने वाला, हुआ कुछ यूं कि गुजरात हाईकोर्ट ने एक ड्राइवर की पेंशन 700 रुपये बढ़ाने का आदेश दिया था. अब गुजरात सरकार को ये रकम इतनी लगी कि वो 700 बचाने के लिए सीधा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई, पहले सिंगल बेंच में याचिका दायर की, तब जज साहब ने कहा आप ऐसी याचिका लाकर पब्लिक के पैसे की बर्बादी क्यों कर रहे हैं, लेकिन गुजरात सरकार का मन नहीं भरा तो सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन दायर कर मामले की सुनवाई की मांग कर दी. जैसे ही याचिका पर सुनवाई शुरू हुई जस्टिस गवईं ने सबसे पहला सवाल यही पूछा कि एक रिटायर्ड कर्मचारी का 700 रुपये का फायदा न मिले, इसके लिए क्या सरकार 7 लाख रुपये खर्च करने से भी पीछे नहीं हटेगी.यहां तक कि कोर्टरूम में एक वक्त ऐसा भी आया जब जज साहब ने सीधा सॉलिसिटर जनरल से ही पूछ लिया कि ऐसा क्यों हो रहा है.
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जस्टिस गवई- ऐसी याचिकाएं दायर क्यों की जा रही हैं?

सॉलिसटर जनरल तुषार मेहता- सरकार लॉ अफसर से मंत्रणा के बाद ही ऐसी याचिकाएं दायर करती हैं, पूर्व अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया सीके दफ्तरी से एक बार सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था ऐसी बिना सिर-पैर की याचिकाएं दायर करने से पहले क्लाइंट को रोकते क्यों नहीं, तब दफ्तरी ने कहा था मैं जानता हूं कि याचिका बिना मतलब की है, लेकिन क्लाइंट को मेरी नहीं बल्कि कोर्ट की सलाह चाहिए.
ये बात बिल्कुल सही भी है, क्योंकि मोहल्ले में ही जब आप आसपास किसी को सलाह देते हैं तो वो नहीं मानता, लेकिन कोर्ट जाकर जब केस हारता है तब समझता आता है कि फलां व्यक्ति सलाह सही दे रहा था. खैर ये तो हुई पहले मामले की बात अब दूसरा केस सुनिए जिसमें सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज और वकील साहब के बीच बहस हो गई. दऱअसल गुजरात में जिला जज की नियुक्तियों से जुड़े मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही थी इसी दौरान.
सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे- लॉर्डशिप इस मामले को निपटाने की जल्दी में क्यों है, जब कोर्ट में एक बड़े मामले पर विचार जारी है, मैं इस पर गंभीर आपत्ति जता रहा हूं
जस्टिस एमआर शाह- करियर के अंत में मुझे आपके बारे में कुछ कहने के लिए मजबूर न करें, मेरिट पर बात करें
सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे- माई लॉर्ड मुझे धमकी न दें, मैं अपनी बात रख रहा हूं.
दरअसल जस्टिस शाह 15 मई को रिटायर होने जा रहे हैं, ऐसे में वो नौकरी के आखिरी दिनों में शायद सख्त टिप्पणी से बचना चाह रहे हों, लेकिन यहां सवाल इस बात पर नहीं है, बल्कि सवाल ये है कि गुजरात सरकार को एक कर्मचारी के 700 रुपये पेंशन बढ़ने से क्या दिक्कत थी. क्या इतने पैसे से खजाने पर भारी बोझ पड़ रहा था, आपको क्या लगता है इसका जवाब आप कमेंट में दे सकते हैं.
ब्यूरो रिपोर्ट न्यूज फ्लैश