ज्ञानवापी में पूजा भी होगी, घण्टा भी बजेगा, आरती में शामिल होगा देश, मंदिर निर्माण का रास्ता साफ!
जज ने कोर्ट में ऐसा क्या कहा कि वो शब्द बार-बार सुना जा रहा है?क्यों बदल जाएगी भारत की तस्वीर!
अंदर जज ने सुनाया फैसला,बाहर बजने लगी ताली,अयोध्या बन रहा है,काशी की तैयारी, मथुरा की बारी !

ज्ञानवापी केस में हिंदू पक्ष ने जीत की पहली सीढ़ी तय कर ली है, वकील बाप-बेटे हरिशंकर जैन और विष्णु जैन ने इतने शानदार तरीके से हिंदुओं का पक्ष रखा कि जज साहब भी मुरीद हो गए, कई मौके ऐसे आए जब जैन बाप-बेटे की जोड़ी ने मुस्लिम पक्ष की दलीलों पर जोरदार बहस की, 12 सितंबर दोपहर 2 बजे जब अदालत में दोनों पक्षों के वकील फैसले के इंतजार में थे, तो करीब 2 बजकर 10 मिनट पर जज साहब कोर्टरूम में पहुंचे, बैठते ही उन्होंने फाइल देखी और फैसला पढ़ना शुरू किया, जिला जज AK विश्वेश के फैसला पढ़ते ही कोर्टरूम के बाहर हर-हर महादेव का नारा गूंजने लगा, पहले सुनिए कि जज साहब ने फैसले में क्या कहा, फिर आपको बताते हैं इसका असर भारत के निर्माण पर क्या होगा? और वो शब्द कौन सा है जिसे दुनिया बार बार सुन रही है?

सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 07 नियम 11 के तहत इस केस की सुनवाई हो सकती है, श्रृंगार गौरी केस मंदिर में पूजा के अधिकार को लेकर दायर हिंदू पक्ष की याचिका सुनवाई योग्य है.
इसी के साथ मुस्लिम पक्ष की दलील खारिज हो गई, और अब ऊपरी दो अदालतों में जो केस पेंडिंग है वहां भी हिंदू पक्ष का दावा मजबूत होने की उम्मीद है. कोर्ट का फैसला आने के बाद से काशी में जश्न का माहौल है, लोग कह रहे हैं कि अब बस हम जल्द से जल्द मां श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा करने के इंतजार में है. हाईकोर्ट में इस मसले से जुड़ा एक केस पेंडिंग है जिसमें मांग की गई है कि इसका सर्वे पुरातत्व विभाग से करवाया जाए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके, इसके अलावा ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की एक याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है जिसमें सर्वे पर रोक की मांग की गई थी, तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिला अदालत में सुनवाई होने दीजिए फिर आपके मामले की सुनवाई करेंगे, अब ये फैसला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के लिए भी नजीर बन सकता है, जिला जज ने जिस तरह हिंदू पक्ष की याचिका को सुनवाई योग्य बताया है वो ये दिखाता है कि हिंदू पक्ष का दावा मजबूत है, और आगे यही केस की मजबूत नींव बनेगा. करीब एक साल के अंदर इतना बड़ा फैसला आना हिंदू पक्ष के लिए बहुत बड़ी जीत माना जा रहा है. हालांकि जीत की शुरुआत तभी हो गई थी जब मस्जिद में सर्वे के आदेश मिले थे.
अगस्त 2021 में पांच महिलाओं ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दाखिल की
उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के पास बने श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा की मांग की थी
सिविल जज रवि कुमार दिवाकर ने सुनवाई की, मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया
सर्वे में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर से शिवलिंग मिला,मुस्लिमों ने उसे फव्वारा कहा
20 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को वाराणसी जिला जज को ट्रांसफर किया
SC ने कहा मामला जटिल है,8 हफ्ते में जिला जज इस केस की सुनवाई पूरी करें
इसके अलावा वजू की इजाजत दी और शिवलिंग के एरिया को सील कर दिया था
24 अगस्त को सुनवाई पूरी हुई थी,अब जिला जज एके विश्वेश ने फैसला सुनाया
इस फैसले को ध्यान में रखते हुए वाराणसी शहर को छावनी में तब्दील कर दिया गया, ताकि कहीं कोई गड़बड़ी न हो, 2 हजार जवान जगह-जगह मुस्तैद हैं, संवेदनशील जगहों पर डॉग और बम स्क्वॉयड की तैनाती की गई. बॉर्डर से लेकर गेस्ट हाउस और होटल तक में पुलिस ने चेकिंग अभियान चलाकर ये तय किया कोई बाहरी उपद्रवी शहर में न घुसने पाए, तभी इतने बड़े फैसले के बाद भी शहर शांत रहा. जैसे अयोध्या में राम मंदिर और मस्जिद का विवाद था, ठीक उसी तरह वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद है.
31 साल पहले इसी विवाद को लेकर वाराणसी अदालत में याचिका दाखिल हुई थी तब हिंदू पक्ष ने कहा था कि काशी विश्वनाथ के मूल मंदिर को तोड़कर औरंगजेब ने ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई है, इस मस्जिद की नींव मंदिर के अवशेषों पर टिकी है इसलिए इसे हिंदू पक्ष को सौंप दिया जाना चाहिए, लेकिन मुस्लिम हमेशा से कहते रहे कि इस पर प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 लागू होता है जिसके मुताबिक आजादी के बाद का कोई भी धार्मिक स्थल नहीं बदला जाएगा. हालांकि अब कोर्ट के रूख से लगता है कि अयोध्या की तरह काशी की कहानी भी बदल सकती है. जिसका असर 2024 के चुनाव में भी देखने को मिलेगा, जब बीजेपी फिर बंपर सीटों से जीतेगा और विपक्ष खत्म होने की कगार पर पहुंच जाएगा, न राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा काम आएगी न नीताश का दिल्ली दौरा. हालांकि कोर्ट के इस फैसले पर आपकी क्या राय है हमें कमेंट कर बता सकते हैं, क्योंकि कभी-कभी अदालत के फैसलों पर जनता और जज की सोच एक जैसी हो जाती है, जबकि कई बार जज के फैसले पर भी सवाल उठने लगते हैं.