उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार पर बस और पत्थरों से हमला हुआ था, पूरा काफिला तितर-बितर हो गया. दंगाई गाड़ियों को घेरकर अपने टारगेट को ढूंढ रहे थे लेकिन योगी उन्हें किसी गाड़ी में नहीं मिले. फिर पुलिस आ गई और गोली चला दी. एक दंगाई मारा गया. अब पुलिस योगी आदित्यनाथ को ढूंढ रही थी लेकिन वो कहीं नहीं मिल रहे थे. उस दिन अगर एक मिनट की देर हो गई होती और योगी ने थोड़ी चालाकी ना दिखाई होती तो शायद आज योगी आदित्यनाथ हमारे बीच ना होते, लेकिन भगवान की करनी को कौन टाल सकता है. योगी को सीएम बनना था और बड़े-बड़े काम करने थे तो कर रहे हैं. लेकिन ये कहानी तो सब जानते हैं कि योगी आदित्यानाथ पर 2008 में ये हमला आजमगढ़ में हुआ था. उस वक्त यूपी में मायावती की सरकार थी. योगी आदित्यनाथ आजमगढ आतंकवाद के खिलाफ एक रैली को संबोधित करने वाले थे. लेकिन वो हमला नाकाम क्यों हुआ फिर योगी आदित्यनाथ पुलिस को क्यों नहीं मिल रहे थे ये कम ही लोग जानत हैं.

वो दिन था 7 सितंबर 2008. डीएवी ग्राउंड में रैली होनी थी. सुबह के वक्त गोरखपुर से 40 गाड़ियों का काफिला आजमगढ़ के लिए रवाना हुआ. काफिले पर हमले की अंदरूनी खबर पहले से थी. लेकिन योगी ने फिर भी रैली में जाने का फैसला किया. सातवें नंबर की गाड़ी में योगी आदित्यनाथ बैठे थे. आजमगढ़ के पास पहुंचते ही योगी को एक पीएसी की गाड़ी, कुछ मोटरसाइकिलों और कारों ने एसकोर्ट करना शुरू कर दिया. करीब डेढ़ बजे होंगे, जैसे उनका काफिला तकिया नाम की जगह से गुजरा, अचानक कहीं से पत्थर आया और सातवें नंबर की गाड़ी पर आकर लगा.
इसके बाद क्या था, चारों तरफ से पत्थरों की बरसात हो गई. लेकिन यहां ध्यान रखिए सातवें नंबर की गाड़ी पर पहला पत्थर लगा था. मतलब हमलावरों को खबर थी योगी आदित्यनाथ सातवें नंबर की गाड़ी में हैं. लेकिन वो योगी आदित्यनाथ को नहीं जानते थे, उन्होंने आजमगढ़ में एंटर होने से पहले गेस्ट हाउस में रुककर अपनी गाड़ी दल ली थी. हमलावर अपने टारगेट को हर गाड़ी में ढूंढ रहे थे और पत्थर के साथ-साथ पेट्रोल बम भी मार रहे थे.
वो लगातार योगी आदित्यनाथ को ढूंढते रहे लेकिन उन्हें योगी कहीं नहीं मिले. स्थिति हाथ से निकलता देख पुलिस ने गोली चला दी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई. मामला शांत हुआ, दंगाई भाग खड़े हुए और योगी आदित्यनाथ के काफिले की कई गाड़ियों बिल्कुल टूट गईं. वहां आसपास के दुकानदारों ने उन गाड़ियों में बैठे लोगों को जैसे-तैसे बचाया था.
इस अफरा-तफरी में पुलिस योगी आदित्यनाथ को तलाश कर रही थी. क्योंकि वहां योगी थे ही नहीं. किसी ने कहा कि काफिले में योगी आये ही नहीं कोई कुछ और बोल रहा था. तभी वायरलेस पर एक खबर आई कि योगी जी सुरक्षित हैं. तब जाकर एसपी की सांस में सांस आई. दरअसल योगी आदित्यनाथ अपनी कार बदलकर सबसे आगे वाली कार में सवार हो गए थे. और जब हमला हुआ तो कुछ और गाड़ियों के साथ वो काफी आगे निकल गए और वहीं से पुलिस को खबर दी कि हम सुरक्षित हैं. फिर पुलिस वहां पहुंची.
वहां की भी एक कहानी है कि उनके सुरक्षाकर्मी चाहते थे कि योगी तुरंत वहां से निकल जायें लेकिन योगी ने कहा था कि मैं अपने लोगों को मरने के लिए छोड़कर नहीं जाऊंगा. वो दंगे वाली जगह सो थोड़ी दूरी पर रुके रहे. सोचिए अगर उस दिन योगी आदित्यनाथ ने दिमाग लगाते हुए गाड़ी ना बदली होती और आगे जाकर सुरक्षित स्थान पर ना रुके होते तो क्या होता. कौन एक मुस्लिम के लिए धरने पर बैठता और कौन एक मदरसे की जमीन बचाता. लेकिन फिर भी लोग उन पर कट्टर होने का तमगा लगाते हैं.