वो डोभाल से भी बड़ा जासूस था, पहले पाकिस्तानी सेना को बेवकूफ बनाया फिर वहां की सरकार को ठगा
आर्मी ऑफिसर की लड़की से शादी रचाई,फिर खुद सेना में मेजर बना और खुफिया जानकारियां भेजने लगा
जासूसी में ISI का बाप,कहानियां बनाने में माहिर और कदकाठी में डोभाल से बड़े जासूस की मुरीद थी इंदिरा

ये कहानी उस जासूस की है जिसने पाकिस्तान में 27 साल का वक्त बिताया, वहां की सेना में भर्ती हुआ, फिर मेजर बना, उसके बाद वहां की सेना से जुड़ी इतनी जानकारियां उसने हिंदुस्तान को भेजी कि पाकिस्तान के हर मंसूबे फेल हो गए. वहां पाकिस्तानी सेना जैसे ही भारत के खिलाफ कोई प्लान बनाती, तुरंत भारतीय सेना को मैसेज आ जाता, अलर्ट हो जाओ, दुश्मन खतरनाक प्लानिंग कर रहा है. ये जासूस थे ऱविन्द्र कौशिक जिनके नाम से पाकिस्तान आज भी कांपता है. रविन्द्र कौशिक के जासूस बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है.
राजस्थान के श्रीगंगानगर का रहने वाला लड़का बचपन से ही एक्टिंग और मिमिक्री में माहिर था. 21 साल की उम्र में लखनऊ के नेशनल थिएट्रिकल फेस्टिवल में जब इसने हिस्सा लिया तो वहां रॉ के अधिकारी भी पहुंचे हुए थे, जब उन्होंने इसकी एक्टिंग देखी तो पास बुलाकर पूछा कि सरकारी नौकरी करोगे, सुनते ही कौशिक अचंभे में पड़ गए, बाद में मुलाकात हुई तो उन्होंने इस लड़के को रॉ में भर्ती कर लिया.
साल 1973 में 23 साल की उम्र में रविन्द्र कौशिक अपने पिता को ये कहकर घर से निकले कि दिल्ली नौकरी करने जा रहा हूं, दो साल तक रॉ ने उन्हें दिल्ली में खतरनाक ट्रेनिंग दी, रविन्द्र कौशिक पंजाबी और राजस्थानी अच्छी बोलते थे लेकिन पाकिस्तान जाने के लिए उर्दू सीखना जरूरी था, इसलिए उन्हें ऊर्दू सीखाई गई, मुस्लिम रीति-रिवाज के बारे में बताया गया और फिर पाकिस्तान के शहरों के बारे में बच्चों की तरह पढ़ाया गया. अब रविन्द्र कौशिक के दिलों-दिमाग में पाकिस्तान बस चुका था, बस रॉ से आदेश मिलने का इंतजार था. इसी बीच कौशिक की घरवालों से मुलाकात हुई तो किसी को नहीं बताया कि मैं जासूस हूं, बल्कि ट्रेनिंग भी ही इस बात की हिदायत दी थी कि बीबी तक को ये बात नहीं बतानी है. कहते हैं पाकिस्तान में जासूसी करना आसान काम नहीं होता इसलिए पहले कौशिक को दुबई और अबू धाबी भेजा गया, जब वहां वो सफल रहे तो

साल 1975 में रविन्द्र कौशिक को मिशन पाकिस्तान पर रवाना किया गया, उन्हें नया नाम दिया गया नबी अहमद शाकिर, पुराने सारे डॉक्यूमेंट जला दिए गए और नए डॉक्यूमेंट पर पता लिखा गया इस्लामाबाद पाकिस्तान.
अब चूंकि उनकी उम्र कम थी इसलिए रॉ ने उन्हें स्टूडेंट बनाकर भेजा. अब नबी अहमद शाकिर ने कराची यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिग्री ली, ताकि वहां की कानूनी जानकारी भी मिल सके, उसके बाद सेना में बतौर कमिशंड ऑफिसर भर्ती हुए, अब तक पाकिस्तानी सेना इस बात से अनजान थी कि उसका एक ऑफिसर हिंदुस्तानी है, इन्होंने इतना शानदार काम किया कि मेजर रैंक तक प्रमोशन भी मिल गया. उसी बीच शाकिर को अमानत नाम की एक लड़की से मोहब्बत हो गई, वो एक पाकिस्तानी ऑफिसर की बेटी थी, दोनों ने निकाह कर लिया, लेकिन बीबी को भी इन्होंने कभी राज की बात नहीं बताई. करीब 8 साल तक पाकिस्तान में इस तरह रहने के बाद अब शाकिर पर शक का कोई सवाल ही नहीं उठता था. तभी
रॉ ने 1983 में एक संदेश भेजा कि पाकिस्तान में एक लोकल जासूस इनायत मसीह है, उससे कॉन्टैक्ट करो, वो कुछ खुफिया जानकारियां देगा. लेकिन तभी मसीह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों के हत्थे चढ़ गया, उसने कहा कि तुम जिसे नबी अहमद शाकिर समझते हो वो एक हिंदुस्तानी जासूस है, वो एक मिशन पर आया है.
ये सुनते ही पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों के होश उड़ गए, वहां के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति सेना प्रमुख को फटकार लगाने लगे लेकिन तब तक देर हो चुकी थी, पाकिस्तानी सेना ने रविन्द्र कौशिक को पकड़कर वहां की जेल में बंद कर दिया, पहले फांसी की सजा हुई लेकिन बाद में उसे उम्रकैद में बदल दिया गया. साल 2001 में पाकिस्तान की जेल में रविन्द्र कौशिक की बीमारी की वजह से मौत हो गई, कहते हैं पाकिस्तानियों ने इन्हें बहुत टॉर्चर किया लेकिन कौशिक ने एक भी राज नहीं खोले, हम सेना की बहादुरी के किस्से तो खूब सुनते हैं लेकिन ऐसे जासूस गुमनाम रह जाते हैं, जो अपनी जान जोखिम में डालकर सूचनाएं देते हैं.