पीएम मोदी ने पुतिन से निभाई असली दोस्ती
एक जमाना था जब भारत तेल के लिए खाड़ी देशों पर निर्भर रहता था या अमेरिका की तरफ देखता था. लेकिन वक्त बदला और हालात भी बदल गए. अब भारत अपनी मर्जी से तेल खरीद रहा है और उस यूरोप को बेच रहा है जिसने अमेरिका के कहने पर भारत से अलग रास्ता अपनाया. अब यूरोपीय देश सोच रहे होंगे ये हमारे साथ क्या हो गया. क्योंकि भारत रूस से अब सबसे ज्यादा तेल खरीद रहा है और उसे साफ करके महंगे दामों पर यूरोपीय देशों को बेच रहा है. ये पूरी कहानी शुरू हुई जब रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया. तो अमेरिका ने उस पर पाबंदियां लगा दी. भारत पर भी दबाव बनाया कि वो रूस से तेल ना खरीदे. लेकिन भारत के लिए ये आपदा में अवसर था, जिसे पीएम मोदी समझ रहे थे. उन्होंने एस जयशंकर को पूरा मामला संभालने के लिए कमान दे दी और रूस से भारत ने तेल खरीदना सिर्फ जारी ही नहीं रखा बल्कि और ज्यादा बढ़ा दिया.

सस्ता तेल, बंपर कमाई, अमेरिका के लिए नई मुश्किल आई
पहले भारत ईराक से सबसे ज्यादा कच्चा तेल खरीदता था. लेकिन 2022-23 में भारत ने रूस से ज्यादा तेल खरीदा. आंकड़ो के मुताबिक, भारत ने इस साल रूस से 970,000 से 981,000 बैरल प्रतिदिन तक तेल खरीदा है. जो इतिहास में सबसे ज्यादा है. रूस ने भारत को ये तेल महज 60 डॉलर प्रति बैरल के रेट पर दिया है जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस वक्त कच्चे तेल की कीमत 75 से 80 डॉलर प्रति बैरल है.
अब यूरोप के साथ खेल को समझिये. रूस से वो तेल नहीं खरीद सकता क्योंकि पाबंदी है. तो उन्होंने भारत से तेल खरीदना शुरू किया. भारत ने भी अपनी जरूरत से काफी ज्यादा तेल मंगाना शुरू कर दिया.

इस वक्त भारत में कुल 23 ऑयल रिफाइनरी हैं जो एक साल में 24.9 करोड़ टन तेल को रिफाइन करती हैं, जिससे ये दुनिया की चौथी सबसे बड़ी ऑयल रिफाइनरी बन जाता है. एशिया के सबसे अमीर बिजनेसमैन मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज गुजरात में दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी चलाती है, जहां उसने रूसी तेल की खरीदारी बढ़ा दी है.
रूस पर लगे प्रतिबंधों का नतीजा ये हुआ कि भारत को सस्ता तेल बिना किसी रोकटोक के मिल रहा है. और
जिन यूरोपीय देशों को भारत पहले रोजाना 1 लाख 54 हजार बैरल डीजल और जेट ईंधन आयात किया करता था वो अब बढ़कर 2 लाख बैरल प्रतिदिन हो गया है. तेल के इस बढ़ते एक्सपोर्ट से हिंदुस्तान को करीब 3.6 अरब डॉलर का मुनाफा हुआ है.
केप्लर और वोर्टेक्सा के आंकड़ों से पता चलता है, कि यूरोपीय देशों में भारतीय डीजल की बिक्री में 12 से 16 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है. वहीं भारत जो एक साल पहले तक यूरोप को करीब 21 प्रतिशत गैस का निर्यात करता था, उसका गैस निर्यात बढ़कर 30 प्रतिशत को पार कर चुका है. केप्लर के आंकड़ों से ये भी पता चलता है, कि
भारतीय डीजल के प्रमुख यूरोपीय खरीदार देश फ्रांस, तुर्की, बेल्जियम और नीदरलैंड हैं. यूरोप को निर्यात बढ़ाने के अलावा, भारत ने अमेरिका को वैक्यूम गैस ऑयल का शिपमेंट भी बढ़ाया है.
यूरोप के साथ दिक्कत ये है कि वो जंग में खुलकर यूक्रेन के साथ खड़ा है और रूस के पास तेल का बड़ा भंडार है जिसे वो मार्केट में सस्ते दामों पर बेच रहा है. लेकिन फिर भी यूरोपीय देश खरीद नहीं सकते क्योंकि उन्होंने अमेरिका के साथ मिलकर ही रूस पर प्रतिबंध लगाए हैं. लेकिन भारत ने अमेरिका की लाल आंखो को नजरअंदाज करके अपने फायदे के हिसाब से फैसला लिया. भारत की तरह कदम उठाने के चक्कर में ही पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार चली गई. लेकिन भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हर मंच पर जाकर अपने कदम को जस्टिफाई किया और अमेरिका के साथ यूरोप को भी कई बार आइना दिखाया.
ब्यूरो रिपोर्ट ग्लोबल भारत टीवी