दुनिया भर की मुस्लिम महिलाओं का ऐलान, हिज़ाब नहीं पहनेंगे, रोक सको तो रोको
ख़ुद के घर शीशे को हों तो दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं मारा करते हैं…दुनिया के मुस्लिम देश भारत को सिखाते हैं कि क्या करना चाहिए क्या नहीं? लेकिन आज जो तस्वीर हम आपको दिखाने वाले हैं उससे साफ हो जाएगा कि ऐसी सोच का अंत समय आ गया है, जिसमें इस्लाम में महिलाएं गुलाम होती हैं.इराक से लेकर दुबई तक और दुबई से लेकर अफ्रीका तक, बुर्के का विरोध हो रहा है. लेकिन ईरान से आई तस्वीरों ने हिन्दुस्तान के लोकतंत्र को भी बल दिया है कि एक देश एक कानून होना चाहिए.

पहली तस्वीर है, महिला खुद से बाल काट कर उन ठेकेदारों को ललकार रही है जो इस्लाम में महिलाओं को गुलाम समझते हैं! दूसरी तस्वीर है महिलाओं के बुर्के को आग लगाने की, तीसरी तस्वीर है, बुर्के को हवा में लहराने का, ये तीन तस्वीरें काफी हैं बताने के लिए कि ईरान में हालात क्या है! अब सवाल उठता है कि ईरान में आख़िरकार ऐसा हुआ क्या कि वहां महिलाएं बुर्के की पाबंदी को तोड़कर आगे बढ़ना चाहती हैं. ये है महसा अमीनी नाम की महिला जिसने सबसे पहले बुर्के का विरोध किया तो ईरान की पुलिस ने थर्ड डिग्री टॉर्चर दिया, जिससे महिला की मौत हो गई, यहीं से वो चिंगारी भड़की जो भारत तक आएगी…चार दशक से ईरान में ये नियम चला आ रहा है कि सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनना जरूरी है, बावजूद उसके महिलाएं बिना हिजाब के सड़कों पर हैं, वो हिजाब उतार-उतारकर फेंक रही हैं, लेकिन मीडिया में आप इसकी ख़बरें कम देख रहे होंगे, जबकि कर्नाटक में जब कुछ स्कूली छात्राएं हिजाब पहनकर स्कूल में पढ़ने की मांग कर रही थी तो उसे इंटरनेशनल मीडिया ने बड़ा मुद्दा बना दिया था. ईरान की मीडिया तो इसे बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रही थी, जबकि अपने ही देश में जब एक बड़ा तबका विरोध में उतरा तो वहां का मीडिया चुप्पी साधे हुए है.

आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि जब भी भारत के खिलाफ ट्विटर पर कोई ट्रेंड चलता है तो उसके जिम्मेदार यहीं के लोग होते हैं, नुपूर शर्मा वाले केस में जुबैर का नाम आया, अर्शदीप वाले मामले में पाकिस्तान का नाम आया और तुर्की से लेकर कई देश भारत विरोधी एजेंडा चलाते पकड़े गए. ये सामाजिक कार्यकर्ता कविता कृष्णन हैं, जो महिलाओं से जुड़ा मुद्दा उठाती हैं, 10 फरवरी को इन्होंने ट्वीट किया कि पहले हिजाब और फिर किताब की जगह हिजाब भी और किताब भी क्यों नहीं हो सकता, मतलब ये चाहती थीं कि स्कूलों में लड़कियां हिजाब पहनकर जाएं, ड्रेस कोड का पालन न करे, जबकि सुप्रीम कोर्ट ये कह रहा है कि ऐसे तो स्कूलों में लोग धोती पहनकर आने को कहेंगे तो क्या होगा, फिर तो ड्रेस कोड का कोई पालन ही नहीं करेगा, लेकिन ऐसे लोगों को अपने एजेंडे से मतलब होता है. अब आप इनका दूसरा ट्वीट देखिए जिसमें इन्होंने लिखा कि ईरान में हिजाब का विरोध करने वाली महिलाओं को सलाम है, इस तरह की दोहरी नीति वाले आपको देश में हजारों लोग मिल जाएंगे जिन्हें भारत में होने वाली हर चीज बुरी और विदेशों में होने वाली हर बात अच्छी लगती है.
तुर्की और मिस्त्र जैसे देशों में हिजाब पहले से ही बैन है, जबकि ईरान में अब इसकी मांग उठने लगी है
भारत में तीन तलाक की तरह इस पर भी फैसला हो सकता है, फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है
जस्टिस हेमंत गुप्ता, जस्टिस सुधांशु धुलिया की टिप्पणी ये इशारा करती है कि हिजाब बैन हो सकता है
स्कूलों में ड्रेस कोड पहले से लागू है, लेकिन तिलक और पगड़ी का हवाला देकर हिजाब की बात हो रही है
भारत में नो घुंघट तो नो हिजाब होगा,सुप्रीम कोर्ट से कभी भी आ सकता है फैसला
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया है कि हिजाब की तुलना आप तिलक और पगड़ी से नहीं कर सकते, हिंदुस्तान में हिजाब का मुद्दा इतना बड़ा हो गया है कि कुछ छात्राएं भगवा शॉल ओढ़कर स्कूल आने लगी लेकिन ये किसी भी विवाद का अंत नहीं हो सकता, सुप्रीम कोर्ट से लेकर सरकार तक को ये जरूर देखना चाहिए कि हिजाब का कोई धार्मिक कनेक्शन है या फिर तीन तलाक की तरह ये भी सिर्फ परंपरा का हिस्सा है, यही वो आधार होगा जिस पर आने वाले दिनों में फैसला आ सकता है, कहा ये भी जा रहा है कि ईरान वाले विवाद का हवाला भी अब कोर्ट में दिया जा सकता है, एक मुस्लिम देश में इस तरह का विरोध हिजाब का समर्थन करने वालों के दावे को कमजोर करता है, हालांकि आप इस विवाद पर क्या सोचते हैं हमें कमेंट कर बता सकते हैं