शाहीन बाग से पुलिस उठाने जाती है तो अदालत खुल जाती है. याकूब मेनन की फांसी पर रात में कोर्ट लग जाती है. जहांगीरपुरी में बुलडोजर चलता है तो डायरेक्ट ऑर्डर देती है. 370 पर न्यायालय का दरवाजा खटखटाती है, हरिद्वार पर डंडा चलाती है लेकिन जोशीमठ पर आंख दिखाती है. ये कैसा हिंदुस्तान है साहब? वो ज्यादा परेशान है जो मोदी को चुनता है और एक खास धर्म के लिए हर संवैधानिक संस्था झुक जाती है?

यही सवाल PMO यानि प्रधानमंत्री कार्यालय, राष्ट्रपति भवन से लेकर कानून मंत्रालय तक घूम रहा है… जिससे निपटने के लिए पीएम मोदी ने एक बड़ा प्लान बनाया है. एक ऐसा प्लान जिससे पुरानी गलती को सुधारा जाएगा और नए रास्ते खोले जाएंगे. जनता के हाथ में जनता की सत्ता दी जाएगी. ये प्लान क्या है और क्यों जरूरी है ये आपको जानना बेहद जरूरी है… इसीलिए पूरी रिपोर्ट को देखिए और समझिए ताकि आधी अधूरी रिपोर्ट देखकर आप कुछ गलत सीखकर और समझकर यहां से ना जाएं.

कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार और अदालत के बीच तनातनी हो गई थी. मोदी सरकार चाहती थी कि सबको मौका मिलना चाहिए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जज पुराने सिस्टम पर ही बने रहना चाहते हैं. जिससे बेटे का बेटा और फिर उसका बेटा जज बनता रहे. ये हम नहीं कह रहे ऐसा जनता सोच रही है.
जनता ही नहीं अब तो नेता भी खुलकर सवाल करने लगे हैं. आपको लगेगा कि बीजेपी सरकार में है तो उनके नेता तो करेंगे ही लेकिन ऐसा नहीं है. आपके इसी भ्रम को दूर करने के लिए पहले आपको कांग्रेस नेता और राजस्थान के मुख्यमंत्री का बयान बताते हैं. उन्होंने कहा कि

कई बार ज्यूडिशरी के साथ डिफरेंस भी आते हैं, कोई कानून बनाते हैं हम लोग, वो अपनी अलग व्याख्या करते हैं. कई बार लगता है कि ज्यूडिशरी हस्तक्षेप कर रही है हमारे कामों के अंदर.

इसके अलावा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी एक बड़ी बात कही, उन्होंने कहा कि, अगर संसद कोई कानून बनाती है तो क्या उस पर कोर्ट की मुहर लगना जरूरी है, तभी वो कानून माना जाएगा क्या.
साथ ही लोकसभा स्पीकर ओम बिरला और कानून मंत्री किरण रिजिजू भी संसद के कामों में बेतहाशा अदालती दखलअंदाजी को लेकर बात कर चुके हैं.
ये आखिर क्यों हो रहा है, पहले ताजा उदाहरण से समझाते हैं फिर मोदी सरकार का अगला कदम बताते हैं.

देखिए उत्तराखंड में अभी दो मामले सामने आये, एक तो हल्द्वानी में रेलवे की जमीन से कब्जा हटवाने का ऑर्डर हाई कोर्ट ने दिया था, जहां एक खास धर्म के लोगों ने कब्जा कर रखा था. इसको लेकर वो सुप्रीम कोर्ट चले गए और अदालत ने तुरंत कार्रवाई रुकवा दी और उनके घर नहीं टूटे.

इसके तुरंत बाद जोशीमठ के कुछ मकानों में दरारों की खबरें आने लगी, स्थानीय प्रशासन ने कहा कि- घर टूटेंगे, इनको भी लगा कि भाई चलो अदालत चलते हैं वहीं से कुछ हाथ लगेगा. लेकिन जब ये लोग सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तो चीफ जस्टिस ने ये कहकर लौटा दिया कि हर मामले को सुप्रीम कोर्ट नहीं सुन सकता.

यहां लोगों में नाराजगी पैदा हो गई कि भाई एक तरफ की तो बात आप सुन ले रहे हैं उनके लिए रात में भी अदालत खुल जा रही है और हम जाते हैं तो कहते हैं सुन नहीं सकते. अब आप जानते हैं कि राम मंदिर और धारा 370 के बाद मोदी सरकार के मेनिफेस्टो का सबसे बड़ा हिस्सा हैं, सीएए-एनआरसी, यूनिफॉर्म सिविल कोड और जनसंख्या नियंत्रण कानून. लेकिन क्योंकि आजकल लगभग हर कानून अदालत में चैलेंज हो जाता है. तो मोदी सरकार इसका तोड़ निकालने में जुटी है. जिसके लिए उसे संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष शब्द निकालने के लिए संविधान संशोधन करना होगा. इसका विरोध कांग्रेस जैसी पार्टियां करेंगी लेकिन हम आपको बता रहे हैं कि ये पहली बार नहीं होगा.
बल्कि धर्मनिरपेक्ष शब्द भी 1976 में 42वां संविधान संशोधन करके जोड़ा गया था. इसके अलावा भी समय-समय पर संविधान में संशोधन होते रहे हैं. जो कांग्रेस की सरकारों ने किए हैं तो अगर आपसे कोई कहे कि ये शब्द कैसे हटाया जा सकता है तो जवाब दीजिएगा जैसे जोड़ा गया था. क्योंकि जब संविधान बना था तब उसमें कहीं भी धर्मनिरपेक्ष शब्द नहीं था.
इसीलिए मोदी सरकार सीएए-एनआरसी लाने से पहले जनसंख्या कानून के साथ यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की तैयारी के लिए संविधान में ये संशोधन कर सकती है ताकि भविष्य में जब भी कानून बने. अदालत में जाकर सरकार को मुंह ना ताकना पड़े.