हम अपने बड़े-बूढ़ों से सुनते आए हैं कि कलियुग का अंत करीब है, वो कहते रहते हैं कि इंसान अब इस दुनिया में रहने लायक नहीं बचा. तो क्या हम और आप जब अपने घर में बैठे मैच देख रहे हैं. ऋषभ के वापस आने की दुआ और बुमराह के बाहर जाने पर बहस कर रहे हैं. ऑफिस में काम कर रहे हैं और दुनिया में अगली पीढ़ी के लिए इंतजाम में जुटे हैं. इस सबके बीच दुनिया अपने अंत की ओर बढ़ रही है. सवाल ये भी कि क्या अब धर्म के साथ- साथ साइंस ने भी ये मान लिया है. और इसका सबसे बड़ा जिम्मेदार कौन है

दुनिया के अंत की दो निशानियां जो धर्म ग्रंथो से इस कड़ी को जोड़ती हैं, हमें घटित होती दिखती हैं. पहला जोशीमठ में धरती का फटना और दूसरा हमेशा सूखे की मार झेलने वाले सऊदी में बाढ़ का आना. महान वैज्ञानिक न्यूटन ने 1704 में एक नोट लिखा था जो उनकी मौत के बाद मिला. जिसमें लिखा था कि दुनिया 2060 में खत्म हो जाएगी. उन्होंने ये भविष्यवाणी धार्मिक गणनाओं और साइंस के मानकों को आधार मानकर की थी.
कलियुग के अंत का विवरण करते हुए गीता में एक श्लोक मिलता है कि,
अनावृष्ट्या विनङ्क्ष्यन्ति दुर्भिक्षकरपीडिताः
शीतवातातपप्रावृड् हिमैरन्योन्यतः प्रजाः ॥

जिसका मतलब है, कभी बारिश नहीं होगी, कभी सूखा पड़ जाएगा। कभी कड़ाके की सर्दी पड़ेगी तो कभी भीषण गर्मी हो जायेगी। कभी आंधी आएगी तो कभी बाढ़ आ जाएगी। इन परिस्तिथियों से लोग परेशान होंगे और नष्ट होते जाएंगे.
इस श्लोक को आज के संदर्भों से मिलाकर देख लीजिए. उत्तराखंड में आई जल प्रलय को अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं. अब जोशीमठ में जमीन दरकने लगी है. बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं. घरों की दीवारें दोफाड़ हो गई हैं.

अगर इस्लाम के हिसाब से भी देखें तो मोहम्मद साहब ने कयामत की जो निशानियां बताई थी, उनमें से एक थी कि, अरब की धरती हरी-भरी हो जाएगी और वहां नदियां बहने लगेंगी. आप जानते हैं कि सऊदी अरब में एक भी नदी नहीं है. वहां नाम मात्र की बारिश होती थी. लेकिन अब वहां बाढ़ आ गई है. इतनी बारिश हो रही है कि गाड़ियां बह गई हैं. लोगों के घरों में पानी भर गया है. दुकानें बंद हो गई हैं.
इसाइयों की पवित्र किताब बाइबल में भी इसका जिक्र है कि दुनिया के अंतिम वक्त में भूकंप आएंगे, युद्ध होंगे और भुखमरी फैलेगी.
कुछ साल पहले महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग्स ने भी भविष्यवाणी की थी की 600 साल में दुनिया खत्म हो जाएगी.
अगर हम इन सब बातों को दरकिनार कर भी दें और सिर्फ साइंस को सर्वोपरी मानें तो…
मिस्र में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन के बीच आई “ग्लोबल कार्बन बजट 2022” रिपोर्ट में कहा गया है कि
वर्ष 2022 में 40.6 बिलियन टन CO2 यानी क्राबनडाइऑक्साइड दुनिया ने छोड़ी जो 2019 के उच्चतम वार्षिक उत्सर्जन 40.9 बिलियन टन CO2 के करीब है.
इसका मतलब है कि धरती गर्म हो रही है. हम कार्बनड्इ ऑक्साइड ज्यादा छोड़ रहे हैं और ऑक्सीजन की मात्रा कम हो रही है. जिसका असर हमें बारिश वाली जगहों पर सूखे और सूखे स्थानों पर बारिश के रूप में दिख रहा है. भूकंपों की संख्या भी बढ़ रही है.
8वीं क्लास की विज्ञान की किताब में ही सब समझाया गया था कि हम कार्बनाडाइऑक्साइड बाहर फेंकते हैं और सांस के साथ ऑक्सीजन अंदर लेते हैं. जो हमें पेड़ों से मिलती है, पर पेड़ों को तो हम काटने में लगे हैं. लेकिन इसके लिए जिम्मेदार कौन है. कम जानकारी रखने वाले लोग मानते हैं कि भारत में ज्यादा जनसंख्या है इसलिए हमारे यहां ज्यादा प्रदूषण होता है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक,
दुनिया में सबसे ज्यादा 31 फीसदी कार्बनडाइऑक्साइड चीन ने छोड़ी, 14 प्रतिशत अमेरिका ने, यूरोप ने 8 प्रतिशत और भारत ने मात्र 7 फीसदी कार्बनडाइऑक्साइड छोड़ी है.
मतलब दुनिया की करतूतों का हर्जाना हमको भी भरना पड़ेगा और दुनिया को कोसने वाले देश अपने गिरेबान में नहीं झांकेंगे.