हर महान राजा का बेटा राजा तो बन सकता है, पर महान बने इसकी गारंटी नहीं होती, इसका रियल वर्जन देखना है तो महाराष्ट्र चलिए, जहां बाला साहेब की एक भी छवि उद्धव ठाकरे में नहीं दिखती. नतीजा पहले सरकार गई, फिर विधायक, और अब पार्टी औऱ चुनाव चिन्ह भी चला गया. अब असली शिवसेना एकनाथ शिंदे की हो गई, लेकिन इस जीत का असल जश्न शिंदे से ज्यादा कंगना रनौत ने मनाया और उद्धव को एक और श्राप दे दिया, कंगना ने ट्वीट कर लिखा

कुकुर्म करने से तो देवताओं के राजा इंद्र भी स्वर्ग से गिर जाया करते हैं, वो तो सिर्फ एक नेता है, जब उसने अन्याय पूर्वक मेरा घर तोड़ा था, मैं समझ गई थी ये शीघ्र गिरेगा, देवता अच्छे कर्मों से उठ सकते हैं, लेकिन स्त्री का अपमान करने वाले नीच मनुष्य नहीं, ये अब कभी उठ नहीं पाएगा.
कुछ लोगों का कहना है कि उद्धव को कंगना का ही श्राप लगा है, जब से कंगना का ऑफिस तोड़ा बुरे दिन शुरू हो गए, अब अगर इसे सच मानें तो सवाल ये उठता है कि उद्धव के क्या और बुरे दिन आने वाले हैं, जिस मातोश्री से बाला साहेब ठाकरे सरकार चलाते थे, वहां क्या एक भी विधायक हाजिरी लगाने नहीं पहुंचेंगे, ऐसे भी दिन आ सकते हैं, क्योंकि चुनाव आयोग के फैसले में लिखे तीन शब्द ये बताते हैं कि शिंदे की एंट्री तो बाद में हुई असल में उद्धव के हाथ से शिवसेना पहले ही निकल चुकी थी. 78 पन्ने के फैसले में चुनाव आयोग ने लिखा है
साल 2018 में शिवसेना ने गुपचुप तरीके से जो पार्टी के संविधान में संशोधन किया वो अलोकतांत्रिक था, इससे पार्टी निजी जागीर की तरह हो गई. इसलिए शिवसेना और उसके चुनाव चिन्ह तीर-कमान पर असल हक एकनाथ शिंदे गुट का है, जबकि उद्धव गुट की पार्टी का नाम शिवसेना-उद्धव बाला साहेब ठाकरे होगा, और चुनाव चिन्ह ज्वलंत मशाल होगा.
ये बात हर कोई जानता है कि कांग्रेस गांधी परिवार के इशारे पर चलती है, शिवसेना अब तक ठाकरे परिवार का था, एनसीपी मतलब पवार परिवार और आरजेडी मतलब लालू परिवार है, लेकिन किसी भी पार्टी को चुनाव आयोग ने अब तक ऐसे नहीं लताड़ा, जैसा शिवसेना के साथ हुआ, इसीलिए उद्धव ठाकरे कह रहे हैं कि अब सुप्रीम कोर्ट में केस करेंगे, शिवसेना खड़ी करके फिर से दिखाएंगे. पर असल में उनको आत्मनिरीक्षण की जरूरत है. आप सोचिए अगर आज बाला साहेब ठाकरे जिंदा होते तो क्या करते, वो किसी भी हाल में शिवसेना को हाथ से निकलने नहीं देते, चाहे इसके लिए उन्हें कुछ भी करना पड़ता, उसके बाद भी बात नहीं बनती तो शिंदे गुट को ये जरूर बताते कि जिसने शिवसेना बनाई वो शिवसेना से बड़ी पार्टी भी बना सकता है, पर अब तक उद्धव ने सिर्फ बयानबाजी ही की है और यही वजह है कि कई शिवसैनिक भी ये नहीं समझ पा रहे हैं कि वैसे नेता के लिए क्यों खड़े हों जो न तो अपनी सरकार बचा पाता है न पार्टी. सालों पहले बाला साहेब ने कहा था

शिवसेना को कभी कांग्रेस जैसा नहीं होने दूंगा, कभी नहीं, और मुझे मालूम होगा कि ऐसा हो रहा है तो मैं अपनी दुकान बंद कर लूंगा. शिवसेना चुनाव नहीं लड़ेगी. आज जो मान-सम्मान तुम्हें मिल रहा है शिवसेना के नाम पर मिल रहा है, हिंदुत्व के लिए मिल रहा है, भगवा झंडा के लिए मिल रहा है. इससे गद्दारी बिल्कुल नहीं.
पर उद्धव ठाकरे ने क्या किया ये सबने देखा, हालांकि बाला साहेब ने भी अपने दौर में पहले इंदिरा का विरोध किया फिर कांग्रेस को समर्थन भी दिया, लेकिन उनके हर फैसले शिवसेना की बेहतरी के लिए हुए, पर अब कहानी बदल चुकी है. जो लोग महाराष्ट्र से हैं वो अच्छी तरह समझते होंगे कि उद्धव की कौन-कौन सी गलतियां उन पर भारी पड़ी है.