मुस्लिम वोट पर अमित शाह की राय मोदी-योगी से अलग क्यों?
ऐसा लगता है मुस्लिम वोट पर अमित शाह की राय मोदी-योगी से अलग है, शाह कर्नाटक में कहते हैं संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण देने का नियम नहीं है, कांग्रेस ने ध्रवीकरण की राजनीति के लिए ऐसा किया, कर्नाटक सरकार ने मुस्लिम आरक्षण हटाकर अच्छा किया, जबकि पीएम मोदी योगी को कहते हैं पसमांदा मुस्लिमों पर ध्यान दीजिए, उत्तर भारत में मुस्लिम वोटर्स को साधने के लिए बीजेपी मोदीमित्र बनाने की प्लानिंग कर रही है, उर्दू में मन की बात की किताब बंटने वाली है, जबकि दक्षिण भारत में ठीक इसके उलट हो रहा है, तो सवाल ये है कि क्या बीजेपी ने चुनाव के लिए डबल गेम प्लान तैयार किया है.

बोम्मई ने कहा, ‘‘ अल्पसंख्यकों के लिए चार फीसदी आरक्षण को 2सी और 2डी के बीच दो हिस्सों में बांटा जाएगा।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने धार्मिक अल्पसंख्यकों को मिलने वाला 4 प्रतिशत आरक्षण खत्म कर दिया, ये आरक्षण अब वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय में दो-दो फीसदी बांटा जाएगा, ये दोनों हिंदू समुदाय चुनावी लिहाज से जरूरी हैं. अब धार्मिक अल्पसंख्यकों को EWS के तहत आरक्षण मिलेगा.

तो सवाल ये है कि क्या EWS के तहत जो 10 फीसदी आरक्षण मिलता है, उसमें भी हिस्सेदारी बढ़ने वाली है, इस फैसले के विरोध में कर्नाटक के करीब 70 लाख मुसलमान सड़कों पर उतरने की तैयारी में है, अगर ऐसा हुआ तो मुस्लिम वोट का थोड़ा नुकसान बीजेपी को हो सकता है, उनका दावा है कि बीजेपी सरकार ने आरक्षण छीनकर उनके साथ गलत किया है, इसलिए अब ये मसला कोर्ट में जाएगा, कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार का दावा है कि अगले 45 दिनों में कांग्रेस सत्ता में आएगी, और फिर से आरक्षण बहाल करेगी, मतलब कांग्रेस अब भी ध्रुवीकरण की राजनीति में ही लगी है.
- हिंदुस्तान में आरक्षण ऐसा मुद्दा है जिस पर कोई भी पार्टी चोट नहीं कर पाई, हर 10 साल में ये बढ़ता रहा
- बीजेपी की सत्ता में आने के बाद ऐसे दावे हुए कि ये आरक्षण विरोधी है, पर आरक्षण खत्म नहीं हो पाया!
- मोदी सरकार ने सवर्ण वोटर्स को खुश करने के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण दिया, EWS कोटा शुरू हुआ
- मतलब देश आर्थिक आधार पर आरक्षण की जो मांग लंबे समय से कर रहा था, उसे मोदी ने पूरा किया
- फिर सवाल ये है कि क्या आरक्षण पूरी तरह से खत्म कर उसे सिर्फ आर्थिक आधार पर बांटा जा सकता है
आंकड़े बताते हैं कि ओबीसी से लेकर एससी और एसटी समुदाय तक में हजारों ऐसे लोग हैं, जिन्हें आरक्षण की जरूरत नहीं पर वो आरक्षण का लाभ ले रहे हैं. ऐसे में अगर आर्थिक आधार वाला नियम लागू हो तो आरक्षण का लाभ लेने वालों की संख्या खुद ब खुद कम हो जाएगी, पर कहते हैं बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन. जब कोई पार्टी उत्तर भारत के वोटर्स को ध्यान में रखकर रणनीति बनाती है तो उसका प्लान कुछ और होता है, जबकि दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर में जाकर ये प्लान बदल जाता है, बीजेपी से लेकर कांग्रेस तक का हाल यही है, अब तय जनता को करना है कि उन्हें वोट किस आधार पर करना है. आप इस फैसले को कैसे देखते हैं कमेंट कर बता सकते हैं.