मनोज सिन्हा ने महात्मा गांधी को क्यों कहा हाईस्कूल पास
ये कोई आम शख्स नहीं हैं, IIT वाराणसी से पढ़े-लिखे गाजीपुर के रहने वाले मनोज सिन्हा हैं, जिन्हें राष्ट्रपति ने जम्मू-कश्मीर का उपराज्यपाल बनाया है, पर इन्हें लगता है गांधी पढ़े-लिखे नहीं थे, बस हाईस्कूल पास किया और देश के आंदोलन में कूद पड़े, जब हमने उपराज्यपाल साहब के दावों की पड़ताल शुरू की तो इन दावों का कोई मतलब नहीं दिखा, ये है महात्मा गांधी की आत्मकथा, जिसे उन्होंने गुजराती में लिखा और बाद में हिंदी अनुवाद हुआ, इसमें गांधीजी लिखते हैं

परीक्षाएं पास करके 10 जून 1891 को मैं बैरिस्टर कहलाया, 11 जून को ढाई शिलिंग देकर इंग्लैंड के हाईकोर्ट में अपना नाम दर्ज करवाया, और 12 जून को हिंदुस्तान के लिए रवाना हुआ, मैंने अनुभव किया कि कानून की पढ़ाई तो कर चुका हूं लेकिन मैंने ऐसी कोई चीज नहीं सीखी जिससे वकालत कर सकूं, फिरोजशाह मेहता का नाम मैंने सुना था, वो अदालत में सिंह की तरह गर्जना करते थे, पर एक वकील के नाते मेरे दिल में कई तरह की शंकाएं थीं, कुछ मित्रों ने कहा दादाभाई नौरोजी से मुलाकात कीजिए, मेरे पास उनके नाम का एक पत्र भी था, लेकिन मैंने उन्हें कष्ट देना उचित नहीं समझा. मैं इंडिया आया तो बंबई हाईकोर्ट में प्रैक्टिस के लिए गया, मुझे पहला मुकदमा ममीबाई का मिला, अदालत में खड़ा हुआ तो पैर कांपने लगे, सिर चकराने लगा, मैंने दलाल से कहा मेरे से नहीं होगा, ये मुकदमा पटेल को दीजिए, पटेल तो इसके महारथी थे, मुझे मेहनताने के 30 रुपये मिले थे, पटेल को तुरंत 52 रुपये दिए गए, मैंने उसी दिन फैसला किया जब तक पूरी तरह हिम्मत न आ जाए अदालत में नहीं जाऊंगा, और दक्षिण अफ्रीका जाने तक कोई मुकदमा नहीं लड़ा.

मतलब गांधीजी ने वकालत की डिग्री ली और मुकदमे भी लड़े, फिर मनोज सिन्हा जैसे नेता ने ऐसा क्यों कहा, जब हमने इनका पूरा भाषण सुना तो पता चला कि ये मार्क ट्वेन की कही गई बातों का हवाला दे रहे थे, उनकी ही लिखी हुई बातें पढ़ रहे हैं, ट्वेन अमेरिका के एक प्रसिद्ध लेखक हैं, जिनकी एक-एक दो लाइनें आपने भी कहीं न कहीं जरूर पढ़ी होंगी. जैसे

- अगर आप सच कहोगे तो आपको कुछ भी याद रखने की जरुरत नहीं पड़ेगी
- आगे बढ़ने का सबसे बड़ा राज शुरुआत करना हैं
- जीवन में सफल होने के लिए, आपको दो चीजों की आवश्यकता है: अनभिज्ञता और आत्मविश्वास
- धन की कमी सभी बुराई की जड़ है
- दयालुता वह भाषा है जिसे बहरे सुन सकते हैं और अंधे देख सकते हैं
ऐसी ही कई लाइनें आपको और भी मिल जाएंगी, इन्हें अमेरिकी साहित्य का पिता तक कहा जाता है, अमेरिका के महान हास्य कलाकार की कई ऐसी कहानियां जिसे पढ़ते-पढ़ते आपकी हंसी नहीं रूकेगी, अब उपराज्यपाल साहब इन्हीं मार्क ट्वेन की बात कर रहे थे या किसी और की ये तो वहीं जाने, पर हमने जब गांधी की आत्मकथा पढ़ी तो यही पता चला कि गांधी के पास लॉ की डिग्री थी, अगर डिग्री नहीं होती तो लंदन हाईकोर्ट में उनका रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाता, आज भी कोई वकील बिना डिग्री के बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन नहीं करवा सकता, अब आप इन दावों पर क्या कहेंगे हमें कमेंट कर बता सकते हैं.