आपने शायद ही ये सुना होगा कि पाकिस्तान और खालिस्तान की तरह इस देश में मेविस्तान की मांग भी उठी थी, ये हम नहीं कह रहे बल्कि तब के गृहमंत्री की चिट्ठी कह रही है. ये चिट्ठी सरदार वल्लभ भाई पटेल ने तब के संविधान सभा अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को लिखी थी. इस चिट्ठी का कुछ हिस्सा पहले आपको सुनाते हैं फिर बताते हैं गांधी की जिद कैसे एक डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और गृहमंत्री के आगे भारी पड़ी. पटेल लिखते हैं.

मेरी सेहत अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुई है, मैं 1 और 2 जुलाई को होने वाली कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग में शायद ही शामिल हो पाऊं. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि मैंने अलवर और भरतपुर की जांच करवाई तो पता चला कि पिछले साल मेव मुसलमानों ने जो हंगामा किया वो पूर्व नियोजित था. वो लोग मुस्लिम लीग की तरह पाकिस्तान की तर्ज पर मेविस्तान बनाना चाहते थे. और खास बात ये है कि इन्हें हर तरह की मदद मोहम्मद अली जिन्ना और उनके साथियों ने दी है.
अब सवाल उठता है कि जब पटेल को ये सारी बातें पता थी तो फिर वहां रहने वाले लोगों को पाकिस्तान क्यों नहीं भगा दिया क्योंकि समुदाय तो एक ही था. तो इसका जवाब जानने के लिए आपको तब के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की वो चिट्ठी देखनी होगी, जिसके जवाब में सरदार पटेल ने ये सारी बातें लिखी थी. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने लिखा
आज सुबह मुझसे बिनोबा भावे जी मिले, उन्होंने कहा कि परसो उस जगह पर जाऊंगा जहां मेव समुदाय के लोग रह रहे हैं, उस समुदाय के कई लोग मुझसे मिलने भी आए थे, जिनका कहना है कि अलवर और भरतपुर के मेव समुदाय का बोझ भी हमारे माथे पर डाल दिया गया है. पर हम उन्हें राशन-पानी कहां से दें, हमारा खुद मुश्किल से गुजारा हो रहा है. हम सरकार को याद दिलाना चाहते हैं कि गांधीजी ने भी हमारे समुदाय के लोगों से बात की थी और हमारे पास आकर खुद कहा था कि आपलोग पाकिस्तान मत जाइए, आपको घर और जमीनें लौटा दी जाएंगी, गांधीजी के उस वादे का सम्मान होना चाहिए.
कहा जाता है कि गांधीजी के उसी वादे के चक्कर में हरियाणा का मेवात और देश के कुछ इलाके में ये लोग बस गए. चूंकि ये कौम शुरू से लड़ाकू है, इसने बाबर समेत कइयों से लड़ाई लड़ी है इसलिए बीच-बीच में छोटी-मोटी घटनाएं सामने आती रही है और आज जो पीढ़ी वहां रह रही है, उनके बारे में कहा जा रहा है कि उन्हें रोहिंग्याओं और बांग्लादेशियों का समर्थन देकर भड़काने का काम किया जा रहा है, जिसके तीन सबसे बड़े कारण हैं.
नूंह जिसे मेवात भी कहा जाता है वो हाईटेक सिटी गुरुग्राम से करीब 30 किलोमीटर दूर है, लेकिन ये गुरुग्राम से हर मामले में पीछे है, अशिक्षित लोगों की संख्या ज्यादा है, जिन्हें आसानी से बरगलाया जा सकता है
ज्यादातर लोग मजदूरी करते हैं, बच्चे पढ़ाई-लिखाई की उम्र में ही काम करने लग जाते हैं, कोई पंक्चर बनाता है, कोई दर्जी की दुकान चलाता है, और इसी का फायदा लोग उठाते हैं
यहां के लोगों की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक भागीदारी बिल्कुल कम है, जिसका असर पूरे समाज पर आज भी दिख रहा है
ऐसा नहीं है कि इस क्षेत्र के लिए कुछ काम नहीं हुआ, सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के बाद पिछड़े जिलों के विकास के लिए करोड़ों रुपये खर्च हुए, पर नूंह जहां था वहीं रह गया. जो इतिहास हमने आपको सुनाया उसे वर्तमान से जोड़ेंगे तो समझ आएगा कि आज जो नूंह में हुआ वो एक सामान्य घटना नहीं है. पहले भी इन्हें लेकर राष्ट्रपति और गृहमंत्री चिंतित थे और आज भी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और मुख्यमंत्री सब चिंतित होंगे, ऐसे में आपके हिसाब से इसका स्थायी समाधान क्या होना चाहिए, कमेंट कर जरूर बताएं, क्योंकि मसला देश की सुरक्षा और अखंडता का है.
ब्यूरो रिपोर्ट ग्लोबल भारत टीवी