केशव-अखिलेश में है 36 का आंकड़ा लेकिन मुलायम की अंतिम विदाई में ये क्या हो गया!
कुछ दिन पहले सदन में अखिलेश और केशव की तीखी नोंक-झोंक हुई थी, अखिलेश यादव गुस्से में केशव प्रसाद मौर्य के पिता पर चढ़ गए, सदन से बाहर निकले केशव ने भारी मन से कहा था, उनको मेरे पिता पर नहीं जाना था…मेरे पिता इस दुनिया में नहीं है, कौन जानता था इतनी जल्दी अखिलेश यादव के पिता भी इस दुनिया से चले जाएंगे…और केशव प्रसाद मौर्य कुछ ऐसा करेंगे कि दुनिया भर में उनकी तारीफ होगी…चुनाव में केशव को हराने के लिए अखिलेश यादव ने हर प्लान बनाया, यहां तक कि हरा भी दिया,

वो अक्सर केशव का मज़ाक बनाते हुए स्टूल मंत्री कहते है, वो इसलिए क्योंकि एक तस्वीर में केशव को सबसे आख़िरी में बैठाया गया था, और वो स्टूल पर बैठे थे जबकि बाकी लोग कुर्सियों पर बैठे थे, लेकिन भारत के लोकतंत्र की दुनिया में क्यों तारीफ की जाती है उसकी ये तस्वीर हम दिखाते है,

UP के दोनों डिप्टी CM की एक तस्वीर की विदेशों में भी चर्चा, लोकतंत्र ऐसा होना चाहिए !
एक से बढ़कर एक लोग मुलायम की अंतिम यात्रा में पहुंचे, वरूण गांधी तो गले लगकर रोने लगे, और अखिलेश भी वहां खुद को नहीं रोक पाए, वरूण गांधी के पिता भी नहीं है,

कोई ऐसा VIP नहीं जो नहीं पहुंचा, उसी भीड़ में एक चेहरा बाबा राम देव का था, जो वहां भी मुस्कुरा रहे थे, लेकिन केशव प्रसाद मौर्य और डिप्टी सीएम बृजेश पाठक की ये तस्वीर देखिए…इतनी भीड़ में, इतने ख़ास लोगों के बीच में इन दोनों अखिलेश का एक-एक हाथ पकड़ लिया, ढांढस बांधा, ये पल बहुत भावुक था, अखिलेश यादव के पिता की मौत पर केशव की ये तस्वीर सबसे ज्यादा वायरल है

कहते है जो सबसे बड़ा विरोधी होता है वो अगर बुरे वक्त में साथ आ जाए तो मन हल्का होता है, और बुरा वक्त बता देता है कौन अपना हैं कौन पराया…
दूसरी सबसे भावुक तस्वीर ये है…आज़म खान लड़खड़ाते मुलायम के पास पहुंचे, आज़म खान को चलने फिरने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन मुलायम की मौत की ख़बर के बाद उनसे चला नहीं जा रहा था,

उन्हें अखिलेश यादव ने पकड़ लिया, आज़म खान को पता है, ये समाजवाद में आज़म खान युग के अंत की तरह है, ये तस्वीर यूपी के हर फोन पर पहुंची…आज़म खान भावुक थे, ये ऐसी सभा थी जो कहीं न लगे तो ठीक ही रहेगा…आज़म खान रोते हुए मुलायम को छूने की कोशिश कर रहे थे,

लेकिन इस तस्वीर पर किसी का ध्यान नहीं गया…वरूण गांधी के पिता संजय गांधी की काफी पहले ही मौत हो चुकी है, वो जानते है पिता की कीमत क्या होती है, जब अखिलेश यादव से मिले तो वरूण गांधी रोने लगे यहां तक कि अखिलेश यादव ने वरूण को समझाया…ये हाथ देखिए…ये हाथ बताता है वरूण अखिलेश को नहीं बल्कि अखिलेश वरूण गांधी को चुप करवा रहे थे

भारत के लोकतंत्र में बहुत कुछ ऐसा होता है जो नहीं होना चाहिए, सदन के भीतर दिन रात लड़ने वाले ये नेता ऐसे वक्त में साथ आते है तो लोकतंत्र मज़बूत होता है, सियासत के लिए ज़िंदगी में वक्त मिलेगा, लेकिन किसी का दुख बांटने का वक्त कम मिलता है…सैफई में जब मुलायम का जन्म हुआ था तब शायद पांच लोग गए होंगे, किसी को नहीं पता था उनकी अंतिम विदाई लाखों एक साथ रोएंगे…आप इस तस्वीर पर भारत के लोकतंत्र पर क्या कहेंगे ? सियासत और इंसानियत में फर्क समझ में आए तो कुछ लिखिएगा ज़रूर!