अनुच्छेद 370 हटाने औऱ तीन तलाक खत्म करने जैसे कई फैसले लेने वाली मोदी सरकार अब एक और बड़ा फैसला लेने की तैयारी में हैं, गुरुवार को संसद में केन्द्रीय कानून मंत्री किरेण रिजिजू ने इसे लेकर सरकार का रूख साफ किया, उन्होंने कहा कि मामला विधि आयोग के पास जा चुका है, अगर वहां से हरी झंडी मिलती है तो फिर संविधान के 5 आर्टिकल में संशोधन करना होगा. अब पहले आपको उन 5 आर्टिकल के बारे में बताते हैं, जिनमें बदलाव हो सकता है, फिर समझते हैं कि इनमें संशोधन के बाद क्या-क्या बदल सकता है
- संविधान के इन अनुच्छेदों में हो सकता है संशोधन
- अनुच्छेद 83- लोकसभा और राज्यसभा के कार्यकाल से जुड़ा है
- अनुच्छेद 85- लोकसभा विघटन को लेकर राष्ट्रपति की शक्ति
- अनुच्छेद 172- विधानसभा के कार्यकाल से जुड़े संवैधानिक पहलू
- अनुच्छेद 174- विधानसभा के विघटन से संबंधित नियम
- अनुच्छेद 356- राष्ट्रपति शासन लगाने से संबंधित नियम
संशोधन के साथ ही एक साथ हो सकेंगे चुनाव
हिंदुस्तान में लंबे समय से ये मांग उठ रही है कि अलग-अलग साल होने वाले चुनाव एक साथ हों, लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ करवाए जाएं, ताकि इससे करोड़ों रुपये की बचत हो, लोकसभा चुनाव 2019 में करीब 60 हजार करो़ड़ रुपये खर्च हुए, जबकि यूपी विधानसभा चुनाव में करीब 4 हजार करोड़ का खर्च आया, अब अगर चुनाव साथ में होते तो करीब 2 हजार करोड़ की बचत हो सकती थी, क्योंकि बूथ से लेकर अधिकारियों औऱ कर्मचारियों की तैनाती नए सिरे से नहीं करनी पड़ती, यहां तक कि काउंटिंग भी एक साथ हो सकती थी. इसी दलील के आधार पर अब मोदी सरकार बड़े बदलाव की तैयारी में दिख रही है.
एक साथ डाल सकेंगे वोट
हो सकता है विरोधी लोग कहें कि ये सरकार की नई चाल है, तो इसको आप ऐसे समझिए जैसे पंचायत चुनाव में वार्ड सदस्य, मुखिया, प्रधान और जिला पंचायत सदस्य हर किसी को चुनने के लिए एक ही बार वोटिंग करते हैं, वैसे ही सांसद और विधायक चुनने के लिए एक ही बार वोटिंग करना होगा, मतलब ऐसा नहीं होगा कि सांसद वाला चुनाव 2024 में हुआ और विधायक वाला 2025 में होगा, यानि 5 साल में एक बार अपने बूथ पर जाइए, वोट दीजिए और लौट आइए, इससे एक फायदा ये भी हो सकता है कि वोटिंग प्रतिशत बढ़ सकता है, क्योंकि अभी दूर-दराज शहरों में रहने वाले लोग ये सोचते हैं कि हर साल तो चुनाव ही है कितना वोट देने जाएं, हालांकि इसके कुछ नुकसान भी हो सकते हैं, क्योंकि हर व्यवस्था की कुछ न कुछ अच्छाई और कुछ न कुछ बुराई जरूर होती है, अब हमने आपको इसकी अच्छाइयां बता दी हैं, आपको इसमें कुछ कमी दिखे तो हमें कमेट कर बता सकते हैं, क्योंकि लोकतंत्र में असल मालिक तो जनता ही है, जिसकी मर्जी के बगैर सरकार को कोई फैसला नहीं लेना चाहिए.