क्या सियासत का सबसे बड़ा खेला होने वाला है? क्या नीतीश कुमार फिर से मोदी की गोद में आकर बैठने वाले हैं? क्या उनके मन में BJP का कमल का फूल खिलने लगा है? अचानक ये सवाल कहां से आया? जो नीतीश कुमार खुद पीएम बनने का पोस्टर छपवा रहे थे, अचानक ऐसा क्या हुआ कि मोदी को ही तीसरी बार PM बनता देखना चाहते है? कहते हैं बिना आग लगे धुआं नहीं उठता है…इसलिए हम उठे धुंए को समझना चाहते है, बीजेपी और नीतीश में क्या डील चल रही है, किस बात पर मैच फिक्स है! दो नेताओं के बयान ने साफ इशारा किया है कि नीतीश और BJP में बातचीत शुरू हो गई है! बयान से पहले वो झगड़ा सुनिए जो राहुल गांधी और नीतीश कुमार के बीच हुआ था…फिर समझ में आएगा क्यों रूठे है नीतीश कुमार!
क्या नीतीश और राहुल गांधी में झगड़ा हुआ था?

17 जुलाई को बैंगलोर में हुई विपक्ष की बैठक में नीतीश और राहुल कई बात लेकर अलग-अलग राय रख रहे थे, नीतीश का मानना था कि नाम INDIA नहीं होना चाहिए क्योंकि ये NDA से मिल रहा है, पर राहुल नहीं माने, नीतीश का कहना था उन्हें पर्यवेक्षक या संयोजक बनाया जाएं पर राहुल ने डांट कर शांत करवा दिया था…

अब ये तस्वीर देखिए…पटना की विपक्ष की बैठक में नीतीश और राहुल को साथ बैठाया गया था…और बैंगलोर की बैठक के बाद मीडिया के सामने वाली तस्वीर से नीतीश गायब दिखे, बैठक दो दिनों तक चली पर गांधी परिवार ने नीतीश को भाव नहीं दिया था…इस बात पर नीतीश का दिल भी टूटा था…दावा किया गया कि नीतीश और राहुल का मीटिंग में झगड़ा हुआ था, और नीतीश कुमार नाराज़ होकर पटना लौट गए थे, यहीं से उनके दिल में बीजेपी के लिए प्रेम जगा था….
नीतीश के दिल की बात दो नेताओं पढ़ ली है, केन्द्रीय मंत्री रामदास अठावले ने पटना दौरे के दौरान कहा, नीतीश कुमार एनडीए के पुराने साथी रहे हैं, उन्हें एनडीए में लौट आना चाहिए. जबकि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत कुमार का भी दावा है नीतीश पर भरोसा नहीं करना चाहिए!

तो क्या विपक्ष में नीतीश कुमार का दर्द अब बढ़ गया है और दवा सिर्फ नरेंद्र मोदी के पास है! क्या नीतीश कुमार लालू का साथ छोड़कर कांग्रेस को धोखा देकर मोदी से दोस्ती कर सकते है? इस कयास में एक बहुत बड़ी सच्चाई है! नीतीश कुमार के हालात ऐसे हो चुके है कि न तो उनको अगली बार CM की कुर्सी मिलने वाली है, न ही PM बनने वाले है, न ही पार्टी बचने की उम्मीद है…तो ज्यादा पाने के चक्कर में वो सबकुछ खोते जा रहे है, इसलिए उनको इस बात का एहसास हो गया है कि मोदी के बिना नीतीश कुछ नहीं होंगे…अमित शाह ने दिल्ली के सारे दरवाजे खोल दिए है…
बीजेपी और नीतीश कुमार में जो मैच फिक्स हुआ उसकी ह़क़ीकत को हम थोड़ा और करीब से देखते है, राज्यसभा के उपसभापति है हरिवंश नरायण सिंह जो JDU के नेता हैं, BJP से नाता नीतीश का टूटा पर BJP ने उन्हें नहीं हटाया, कहते हैं हरविंश ही शाह के आदमी है जो नीतीश को समझाते हैं, कहा तो ये तक जा रहा है कि नीतीश ने गुपचुप मुलाकात भी की थी…
राजनीतिक पंडित कहते हैं, नीतीश को एहसास हो चुका है कि वो अब मायावती की तरह कुछ न कर पाने की स्थिति में है…इसलिए नीतीश राष्ट्रपति बनकर भी खुश हो सकते है, बीजेपी उन्हें राष्ट्रपति के लिए तैयार कर सकती है…अगर नीतीश कुमार को ये आभास हो चुका है कि वो PM के उम्मीदवार नहीं है तो फिर ये पक्का है कि वो बीजेपी के साथ ही जाएंगे…क्योंकि विपक्ष के साथ रहकर हारने से तो अच्छा है बीजेपी के साथ जाकर राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठ जाना….और पार्टी को भी बचा लेना…जिनको लगता है कि नीतीश कुमार PM मोदी के काम से खुश नहीं है वो ग़लत है, PM से नीतीश कुमार का एक दिल का नाता है…उसको हम समझाते है…
नीतीश कुमार 2003 में रेल मंत्री थे। नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम थे. नीतीश 13 दिसंबर 2003 को गुजरात के कच्छ में एक रेल प्रोजेक्ट का उद्घाटन करने पहुंचे थे. उस वक्त उन्होंने कहा था- मुझे पूरी उम्मीद है कि बहुत दिनों तक नरेंद्र भाई गुजरात के दायरे में सिमट कर नहीं रहेंगे। देश को इनकी सेवाएं जरूर मिलेंगी.

हालांकि वक्त बदला तो नीतीश की बोली भी बदली, जो नरेंद्र मोदी को भाई कहते थे वो दुश्मन कहने लगे…लेकिन वक्त का मारा व्यक्ति किसी के सामने जाने को तैयार होता है, इसलिए मैदान सज रहा है, ऐसा हो सकता है कि चुनाव जब करीब आए, विपक्ष बीजेपी को एंटी OBC बताए, उसी वक्त नीतीश पल्ला झाड़कर बीजेपी के पास आ जाएं ताकि विपक्ष 99% फीसदी चुनाव वही हार जाए और सबकुछ वैसा ही हो जैसा बीजेपी ने प्लान किया था!
ब्यूरो रिपोर्ट, GLOBAL BHARAT TV