इस तस्वीर पर महाराष्ट्र की सियासत के भीष्म पितामह शरद पवार क्या कहेंगे, विपक्षी गठबंधन इंडिया को बने हुए अभी एक महीना भी नहीं हुआ और पवार मोदी के साथ मंच पर पहुंच गए. अब सवाल है कि क्या ये पवार कि कोई नई चाल है, या मोदी ने अपना मास्टरस्ट्रोक चल दिया है. शरद पवार की चाल समझने वाले लोग कहते हैं कि कांग्रेस के विरोध के बावजूद पवार अगर मोदी के साथ मंच साझा कर रहे हैं, उन्हें सम्मानित करने वाले मंच पर बैठे हैं तो उसके तीन मतलब हैं.
पवार ने यूं ही नहीं मोदी के मंच पर बैठने का लिया फैसला, देश-प्रदेश को देना चाहते हैं 3 बड़े संदेश

पहला- वो जनता को कहना चाहते हैं कि मेरा दिल बहुत बड़ा है, विपक्षी नेता होने के बावजूद मैं उस मंच पर मौजूद रहा जहां मोदी को सम्मानित किया गया, क्योंकि तिलक साहब महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि देश के गौरव हैं.
दूसरा- अपने भतीजे अजीत पवार को ये कहना चाहते हैं कि तुम जिसके शरण में गए, उनसे मेरी आज भी अच्छी बनती है और वो मुझसे सम्मान पाकर खुश हैं. इसलिए ज्यादा हवा में उड़ने की जरूरत नहीं है.
तीसरा- जब तक मैं हूं तब तक असली एनसीपी यही है और महाराष्ट्र की जनता भी ये समझ ले कि उसके लिए शरद पवार जरूरी है या अजीत पवार जैसे दलबदलू नेता.

मतलब तिलक स्माकर मंदिर ट्रस्ट की ओर से आयोजित कार्यक्रम में पवार ने बड़ा गेम खेल दिया, चूंकि ये बातें मोदी को भी पता थी, फिर भी जानबूझकर वो सम्मान लेने गए, इसकी वजह ये है कि मोदी अपनी लोकप्रियता को चुनावी दौर में और धार देना चाहते हैं, और विपक्ष जिस जनता को बरगलाने की कोशिश में है, उसे ये बताना चाहते हैं कि ये सम्मान मै इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे दिग्गजों के बराबर खड़ा हूं, विपक्ष की चाल में उलझने की बजाय आप ये जरूर समझ लेना कि कांग्रेस भी मेरे काम की मुरीद है.

दरअसल जिस तिलक ट्रस्ट ने पीएम मोदी को सम्मानित किया, उसके उपाध्यक्ष बाल गंगाधर तिलक के परपोते दीपक तिलक हैं, जो कांग्रेस के एक कद्दावर नेता माने जाते हैं, इनके पिता जयंतराव तिलक कांग्रेस के राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं, तिलक परिवार की गिनती गांधी परिवार के करीबियों में होती है, लेकिन पीएम मोदी को सम्मान दिए जाने के बाद से ये चर्चा तेज हो चली है कि दीपक तिलक बीजेपी का दामन थाम सकते हैं, हालांकि इन सवालों पर दीपक तिलक कहते हैं

ट्रस्ट ने पहले भी कई हस्तियों को सम्मानित किया है, ये सम्मान गैर राजनीतिक है, पीएम मोदी को ये सम्मान उनके आत्मनिर्भर भारत की दिशा में किए गए कामों को लेकर दिया जा रहा है, महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक भी स्वराज्य और जनता को संगठित करने के समर्थक थे.
हालांकि सियासत में कहनी और कथनी में कभी-कभी फर्क भी देखने को मिल जाता है, महाराष्ट्र की सियासत इन दिनों वैसे ही उलझी हुई है, कांग्रेस के पास जहां सीट शेयरिंग का दबाव कम है, तो वहीं बीजेपी के पास अजीत पवार और एकनाथ शिंदे के जाने से 2024 चुनाव में सीट शेयरिंग का अलग फॉर्मूला सेट करने का दबाव बन गया है. अब देखना ये होगा कि मोदी-शाह और नड्डा की तिकड़ी सारे लोगों को साथ लेकर कैसे जनता के बीच जाती है और इस सम्मान का फायदा पीएम मोदी को कितना मिल पाता है.
ब्यूरो रिपोर्ट ग्लोबल भारत टीवी