नीतीश की विपक्षी एकता फूटा हुआ ढोल!
इधर नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट करने के लिए दिल्ली-कोलकाता के चक्कर लगा रहे हैं. उधर पटना में उनके सियासी अंत की पटकथा लिखी जा रही है. जब तक नीतीश सपने से जागेंगे, तब तक कहीं ऐसा ना हो उद्धव ठाकरे जैसा हाल हो जाये. ना झंडा रहे, ना डंडा और कुर्सी हो जाये कोसों दूर. बीजेपी के चाणक्य ने नीतीश कुमार के ही दो सबसे करीबियों को जेडीयू से सांसद लाकर पार्टी तोड़ने की जिम्मेदारी दी है.
JDU के कई नेता मेरे संपर्क में- उपेंद्र कुशवाहा
उपेंद्र कुशवाहा तो दावा करते हैं कि सारे सांसद उनके संपर्क में हैं. उनके इस दावे को ये कहकर हवा हवाई नहीं बताया जा सकता कि अब उन्होंने पार्टी छोड़ दी है तो बोलेंगे ही.

इस बात में दम इसलिए भी है क्योंकि जिस नाव पर इस वक्त नीतीश सवार हैं और राज्य वाली नदी पार कर रहे हैं वो लोकसभा के समुद्र को पार नहीं कर सकती. खुद उनके नेताओं को लगता है कि नाव चलाने वाला कभी भी उसमें छेद कर सकता है. आप पिछले दो लोकसभा चुनावों में जेडीयू का प्रदर्शन देखिए और फिर खुद फैसला कीजिए कि क्या वाकई नीतीश कुमार का पीएम मोदी को टक्कर देने के लिए ललकारना बनता है या नहीं.

2014 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू मैदान में आई और 38 सीटों पर चुनाव लड़ा. इस चुनाव में नीतीश की पार्टी को मात्र 2 सीटें मिली. तब भी नीतीश पीएम मोदी को टक्कर देने निकले थे. फिर उनकी समझ में बात आ गई और 2019 का लोकसभा चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा. नतीजा ये हुआ कि 2 सांसदों वाली पार्टी 16 सीटें जीत गई.
यहीं से एक बार फिर नीतीश कुमार को पर लग गए. कुछ विपक्षी नेताओं ने भी कहा कि, अब आप दिल्ली मटेरियल हो गए हैं. इसी गलतफहमी को दूर करने का जिम्मा जेडीयू से आये आरसीपी सिंह और उपेंद्र कुशवाहा को मिला है. क्योंकि आरसीपी सिंह 2019 में जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, इसलिए टिकट बंटवारे में उनकी बड़ी भूमिका थी. जिनको उन्होंने टिकट दिया, वे जाहिर तौर पर उनके संपर्क में होंगे. उपेंद्र कुशवाहा भी लगातार तीन साल तक जेडीयू संसदीय बोर्ड के चेयरमैन रहे हैं, इसलिए पार्टी में उनके भी सांसदों से अच्छे ताल्लुकात हैं. अपने संबंधों-संपर्कों का इस्तेमाल कर दोनों जेडीयू सांसदों को तोड़ेंगे. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलजेडी के राष्ट्रीय महासचिव फजल इमाम मलिक ने दावा किया कि जेडीयू इस बार अच्छे उम्मीदवारों के लिए तरस जाएगी. सभी सिटिंग सांसद जेडीयू की डूबती नाव की सवारी छोड़ भागेंगे. इस दावे में दम क्यों नजर आता है. इसके पीछे तीन कारण हैं.
पहला- जेडीयू के जितने भी सांसद हैं वो जानते हैं कि बिना बीजेपी के जीत नहीं मिलेगी.
दूसरा- जेडीयू में रहकर जीते भी तो क्या हासिल होगा, विपक्ष की सरकार तो बनेगी नहीं. ये विपक्षी भी मानते हैं.
तीसरा- तेजस्वी यादव भी जेडीयू के कमजोर होने पर खुश होंगे. उनको तो सीधा मुकाबला फिर बीजेपी से ही करना होगा.
तो अगर आरजेडी खेमे को लग कि जेडीयू कमजोर हो रही है तो वो और ज्यादा जोर लगाएगी. आरजेडी के कई नेता तो खुलकर नीतीश के खिलाफ बोलते हैं. नीतीश कुमार पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मिले थे. अब वो उन नेताओं से मिल रहे हैं जो कांग्रेस से अलग चल रहे हैं. इनमें अखिलेश यादव और ममता बनर्जी शामिल हैं.
केसीआर से भी नीतीश कुमार कई बार बात कर चुके हैं. लेकिन घुमा फिराकर सूई वहीं आकर अटक जाती है कि मान लीजिए ये सब हो भी गया तो क्या विपक्ष नीतीश कुमार को अपना नेता मानेगा. जिनके बिहार में ही कोई ठिकाना नजर नहीं आता. अकेले दम पर जब भी चुनाव लड़ते हैं औंधे मुह गिर जाते हैं.
ब्यूरो रिपोर्ट