प्राचीन काल में आचार्य चाणक्य ने मगध के राजा के हाथों हुए अपने अपमान का बदला लेने के लिए अपने सहयोगी चंद्रगुप्त मौर्य की मदद से सीधे मगध पर हमला कर दिया था…कहा जाता है दुश्मन को हराने का इससे बड़ा उदाहरण आज तक नहीं मिला…जैसे रूस ने सीधे यूक्रेन पर हमला किया ठीक वैसा ही कुछ प्रचीन भारत में हुआ था…चाणक्य ने चंद्रगुप्त के साथ मिलकर मगध पर सीधा हमला किया, नतीजा करारी हार हुई, फिर नई रणनीति बनी, पहले धीरे-धीरे मगध की बाहरी सीमाओं को जीता…चंद्रगुप्त की जीत के बाद मगध में मौर्य वंश का झंडा लगने लगा…जैसे धीरे-धीरे रूस ने यूक्रेन पर कब्जा किया…यानि पुतिन को भी भारत की सभ्यता से ही सबकी मिली…प्राचीन काल में आचार्य चाणक्य का दिमाग आज भी भारत में मौजूद है…ये कूटनीति शायद कई देशों को समझ में नहीं आई होगी…SCO की मीटिंग में मोदी ने पुतिन से मंच पर कहा ये वक्त युद्ध का नहीं शांति का है…दुनिया में संदेश गया भारत युद्ध के समर्थन में नहीं है, हालांकि जैसे ही पुतिन ने यूक्रेन के चार शहरों पर कब्जा किया भारत रूस के साथ खड़ा हो गया? अमेरिका अलग-थलग पड़ा है, चीन-भारत रूस एक साथ मिलकर दुनिया की सबसे ताकतवर शक्ति अमेरिका को तोड़ने की ताक में है?

पुतिन के निशाने पर अमेरिका और इंग्लैंड जैसे शक्तिशाली देश हैं, जो इस युद्ध में यूक्रेन की मदद कर रहे हैं…शुरुआत में पुतिन ने सेना ये समझकर भेजी कि छोटे से देश को ताकत के बल पर जीत लेंगे, पर ऐसा हुआ नहीं…पुतिन वाली गलती प्राचीन काल में चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी, वो महान आचार्य चाणक्य के मना करने के बावजूद भी ताकत के बल पर घनानंद की सेना को हराने निकले, लेकिन जीत नहीं मिली, तब चाणक्य ने कहा चंद्रगुप्त तुम मेरे शिष्य हो, मैं नहीं चाहता कि तुम युद्ध में कोई बेवकूफी करो, मगध पर हमला करने से पहले उसके आसपास के इलाकों पर हमला कर उन्हें अपने साथ लेना होगा, ताकि जब युद्ध में काफी आगे निकल जाओ, मगध की राजधानी के नजदीक पहुंच जाओ तो फिर यही लोग तुम्हारी मदद के लिए खड़े हो सकें, इसी नीति की बदौलत चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध की विशाल सेना को हरा दिया था.

चाणक्य ने विदेशी हमलो से बचने, दूसरे राज्य पर हमला करने और राज्य विस्तार की कई सारी नीतियां बताई हैं, जिसे दुनिया के बड़े-बड़े नेता और अधिकारी पढ़ते हैं. शायद पुतिन या उनके सलाहकारों ने भी चाणक्यनीति पढ़ी होगी, क्योंकि विदेशों में भी चाणक्य नीति की काफी सराहना होती है, तभी तो पुतिन ने चार तरीके अपनाकर यूक्रेन के चार इलाके जीत लिए.
पहले यूक्रेन के चार इलाके डोनेत्स्क, लुहांस्क, जेपोरीजिया और खेरसॉन पर ताबड़तोड़ हमले किए, ताकि यहां के लोग डर जाएं, उसके बाद यूक्रेन को बार-बार ये एहसास दिलाया कि वहां के लोग रूस में मिलना चाहते हैं, वहां कुछ लोगों से विद्रोह भी करवाया, उसके बाद इन चारों राज्यों की स्वतंत्रता को मान्यता दे दी, फिर 23 से 27 सितंबर के बीच संग्रह करवाया, डोनेत्स्क में 99.2%, लुहांस्क में 98.4%, जपोरिजिया में 93.1% और खेरसान में 87% लोगों ने रूस के साथ जाने के पक्ष में वोट डाला. आज से ठीक हज़ारों साल पहले यही तरीका मौर्य वंश ने अपनाया था…
रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से लेकर अबतक भारत की कूटनीति बहुत ही सधी रही है…अब फिर जब अमेरिका प्रस्ताव लाकर रूस को रोकना चाह रहा था तब भारत ने वोट देने से इंकार कर दिया…रूस ने वीटो पावर से अमेरिका प्रस्ताव ही रोक दिया, भारत हर परिस्थिति में रूस के साथ है…तो क्या भारत POK को शामिल कर सकता है? और रूस साथ खड़ा होगा?