PM मोदी की अपील पर RSS ने नहीं बदली DP, क्या ये PM और तिरंगे का अपमान है
52 सालों तक संघ ने क्यों नहीं फहराया तिरंगा, क्या आपको बताई गई अधूरी सच्चाई
खुद मोहन भागवत ने खोल दी प्रोपेगैंडा की पोल, संघ का पहला शब्द ही राष्ट्रभक्ति है

4 दिन पहले पीएम मोदी ने अपने सभी सोशल मीडिया अकाउंट की डीपी बदल दी,, हर फोटो में तिरंगा दिख रहा है, पीएम मोदी ने इस खास दिन को इसलिए भी चुना क्योंकि 2 अगस्त को ही तिरंगे को डिजाइन करने वाले पिंगली वेंकैया का जन्म हुआ था. पीएम मोदी ने सबसे अपील की कि आप भी ऐसे ही डीपी बदलिए और तिरंगे के प्रति सम्मान दिखाइए. कई नेताओं ने भी बदली लेकिन विपक्ष इस पर भी सियासत खेल गया.
राहुल गांधी ने पूछा कि क्या पीएम का संदेश संघ तक नहीं पहुंचा, आरएसएस ने पीएम की अपील के बावजूद अपनी डीपी नहीं बदली. हां जब सवाल उठने शुरू हुए तो सहकार्यवाह अरूण कुमार, अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर और प्रज्ञा प्रमुख पदाधिकारी नंद कुमार सहित कई अन्य संघ के पदाधिकारियों ने अपनी डीपी में तिरंगा लगा लिया. अब सवाल ये उठता है कि आरएसएस ऐसा क्यों कर रहा है, क्या उसे तिरंगे से नफरत है या फिर वो अपना भगवा ध्वज पूरे देश में लहराना चाहता है. जब हमने इसकी पड़ताल की तो एक पुराना वीडियो मिला. पहले आप वो सुनिए कि तिरंगे पर मोहन भागवत की क्या राय है. फिर आपको बताते हैं आरएसएस मुख्यालय पर 52 सालों तक तिरंगा न फहराने की कानूनी वजह क्या रही.

ये भी प्रश्न उठाया जाता है, शाखा में भगवा झंडा लगाया जाता है, तिरंगा झंडा क्यों नहीं. तिरंगे झंडे के जन्म से उसके सम्मान के साथ संघ का इतिहास जुड़ा है. मैं आपको सत्य कथा बता रहा हूं, फैजपुर के कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार तिरंगा फहराया गया, 80 फीट ऊंचा वो ध्वज था, नेहरू जी उसके अध्यक्ष थे. वो ध्वज बीच में ही लटक गया, पूरा ऊपर नहीं जा सका. वो इतना ऊंचा था कि उसे सुलझाने के लिए किसी को ऊपर जाने का साहस नहीं था. तभी भीड़ से एक युवक बाहर निकला और 80 फीट ऊंचे खंभे पर चढ़ गया और ध्वज को सुलझा दिया. तब नेहरू जी ने उसकी पीठ थपथपाई और कहा कि तुम शाम को आओ, तुम्हारा अभिनंदन करेंगे. लेकिन तभी कुछ नेता आए और कहा उसको मत बुलाना वो शाखा में जाता है. जलगांव के रहने वाले वो किशन सिंह राजपूत नाम के शख्स थे, 5-6 साल पहले उनकी मृत्यु हो गई. जब डॉ. हेडगेवार को ये बात पता चली तो वो मिलने गए, एक चांदी का छोटा लोटा पुरस्कार के रूप में दिया और अभिनंदन किया. मतलब संघ का एक-एक कार्यकर्ता तिरंगे का उतना ही सम्मान करता है जितना अपने भगवा ध्वज का. यहां तक कि वो हिंदुस्तान के एक-एक युवा को राष्ट्रभक्ति सिखाता है. फिर भी देश के बंटवारे के लिए जिम्मेदार कांग्रेस कहती है कि आरएसएस ने डीपी क्यों नहीं लगाई, अब कांग्रेस से जरा कोई पूछे कि जिसकी राष्ट्रभक्ति पर ही कोई संदेह न हो वो भला डीपी लगाकर क्या साबित करेगा. कांग्रेस जिस सीपीएम और डीएमके के साथ कभी हाथ मिलाती थी उन्होंने भी अपने मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया तो कांग्रेस उसके साथ क्यों थी, क्या सियासत में अपना फायदा ही सबकुछ है, क्या कांग्रेस को लग गया था कि आरएसएस आने वाले दिनों में सत्ता से उसे उखाड़ फेंकेगा इसलिए पहले ही गांधीजी की हत्या का आरोप लगाकर उसे बैन कर दिया, लेकिन कांग्रेस की ये चाल शायद उसे ही उल्टी पड़ गई, आज लोग जितना आरएसएस को प्यार करते हैं, जितने स्वयंसेवक आरएसएस के पास हैं, उतने कांग्रेस के पास कार्यकर्ता भी नहीं होंगे. फिर ये दुष्प्रचार क्यों हुआ, हम आपको कुछ सच्चाई बताते हैं.

साल 1947 और फिर 1950 में आरएसएस ने नागपुर मुख्यालय पर तिरंगा फहराया, ऐसा दावा किया जाता है
1950 में इस देश में नेशनल फ्लैग कोड लागू किया, इसके मुताबिक तिरंगा सिर्फ सरकारी इमारतों पर फहरता
साल 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सरकार की इस मनमानी को रोका और कहा कि ये फैसला सही नहीं है
साल 2002 तक इस नियम के मुताबिक भी तिरंगा नागपुर के RSS मुख्यालय पर नहीं फहराया जा सका था
कुछ लोग कहते हैं कि साल 2002 में इसके बाद ही RSS ने पहली बार अपने मुख्यालय पर तिरंगा फहराया था
तो सच्चाई यह है कि 2002 से पहले प्राइवेट प्रॉपर्टी पर तिरंगा लहराना ‘अपराध’ कानूनन गलत माना जाता था…इसिलिए आजादी के 52 सालों तक आरएसएस के नागपुर वाले मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहरा. लेकिन अब आरएसएस ऐसा क्यों कर रहा है, इसका जवाब उसे देश को देना चाहिए. तिरंगा लगाकर देशभक्ति साबित करने की बात अगर सरकार कह रही है तो फिर आरएसएस जैसा देशभक्त संगठन जो लोगों में राष्ट्रभक्ति जगाने का दावा करता है, उसे इससे क्या आपत्ति है. हर पार्टी या संगठन का एक झंडा होता है, वैसे ही आरएसएस का झंडा भगवा है लेकिन देश का तिरंगा तो सबसे ऊपर है. तिरंगे की सम्मान की कहानी सुनाने वाले मोहन भागवत अपने स्वयंसेवकों से ये क्यों नहीं कह सकते कि आप भी पीएम मोदी के आदेश का पालन करिए, क्योंकि इससे तो बैठे बिठाए विपक्ष को मुद्दा मिल रहा है और आरएसएस जिस बीजेपी को जमीन पर मजबूत कर रही है, उस पर आरएसएस की वजह से सवाल खड़े हो रहे हैं. आपकी इस पर क्या राय है हमें कमेंट कर बता सकते हैं.