सियासत का कोई इक़बाल नहीं होता है…जिस अतीक के मरने पर कुछ पार्टियां जश्न मना रही है उसी अतीक की मौत पर कुछ नेता और पार्टियां आंसू बहा रही हैं…अतीक का एक ऐहसान गांधी परिवार पर अजर-अमर रहेगा…कहा जाता है कि UP में जैसे मुलायाम और मायावती के साथ रिश्ते थे वैसे ही केंद्र में गांधी परिवार के संबंध अतीक के साथ बन गए थे…सियासत का सौदा करने की वजह से सोनिया गांधी को भी अतीक के सामने एक बार झुकना पड़ा था…वैसे तो ये कहानी है साल 2008 की लेकिन इसे समझने के लिए आपको 50 साल पहले चलना पड़ेगा.

साल था 1974 का, इंदिरा गांधी ने परमाणु परीक्षण करवाया. अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगा दिए थे
इंदिरा के बाद राजीव गांधी आए,नरसिम्हा राव से लेकर वाजपेयी तक प्रधानमंत्री बने, प्रतिबंध जारी रहा
साल 2004 में मनमोहन सिंह ने अमेरिका का दौरा किया, जॉर्ज डब्ल्यू बूश से प्रतिबंध हटाने पर बात हुई
करीब 4 साल बाद साल 2008 में भारतत-अमेरिका के बीच परमाणु समझौता हुआ.पर विरोध बढ़ गया था
चीन की शह पर वामपंथी पार्टियों ने मनमोहन सरकार से समर्थन वापस लिया, सरकार संकट में आ गई
तब कांग्रेस को बाहुबलियों, और उन आरोपी सांसदों की याद आई, जिन्होंने बुलेट से बैलेट का सफर किया
इन्हीं बाहुबलियों में से एक था अतीक अहमद, उस वक्त वो सांसद था, लेकिन जेल में बंद था. मनमोहन सिंह की सरकार को बहुमत परीक्षण से गुजरना था, सोनिया गांधी के सामने समाजवादी पार्टी ने शर्त रखी, हम समर्थन तो देंगे लेकिन अतीक जैसे सांसद जो जेल में हैं, वो बाहर नहीं आएंगे तो वोट कैसे डलेगा. कहते हैं उसके बाद दिल्ली में मीटिंग हुई, सोनिया और मुलायम ने मिलकर सरकार बचाने का प्लान तैयार किया.
उसके बाद 48 घंटों के अंदर ऊपर से लेकर नीचे तक खलबली मची और अतीक अहमद को संसद में वोट डालने के लिए बाहर बुलाया गया. आज अखिलेश अतीक के मारे जाने पर सवाल उठा रहे हैं, कांग्रेस योगी सरकार पर सवालिया निशान खड़े कर रही है, तो उसके पीछे ये वाला एहसान भी है, लेकिन इसका किस्सा काफी कम लोग जानते हैं, राजेश सिंह अपनी किताब बाहुबली ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स फ्रॉम बैलेट टू बुलेट में लिखते हैं.

2008 में लेफ्ट पार्टियों के हाथ खींच लेने के बाद यूपीए के पास लोकसभा में 228 सदस्य बचे थे. सरकार बचाने के लिए मैजिक नंबर तक पहुंचने के लिए 44 अन्य सांसदों की जरूरत थी. मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी, अजित सिंह की राष्ट्रीय लोकदल और एचडी देवगौड़ा की जेडीएस ने समर्थन देने का फैसला किया. उसके बाद देश की अलग-अलग जेलों में बंद 6 बाहुबली सांसदों को 48 घंटे के अंदर जेल से रिहा किया गया था, ताकि ये संसद में वोट देने के अधिकार का प्रयोग कर यूपीए सरकार के समर्थन में वोट डाल सके.
कहते हैं उस वक्त कांग्रेस की सरकार तो बच गई, लेकिन साल 2009 के चुनाव में इसका खामियाजा भी कांग्रेस को उठाना पड़ा और साल 2014 में तो कांग्रेस की कहानी लगभग खत्म होनी शुरू हो चुकी थी. इसीलिए कहते हैं लोकतंत्र में जोड़-तोड़ के सहारे आप सरकार तो बना लेंगे, लेकिन जनता का विश्वास नहीं जीत पाएंगे. आज जिसने माफियाओं को बढ़ावा दिया वो अतीक की मौत पर रो रहे हैं, कांग्रेस से लेकर सपा तक में कई ऐसे लोग होंगे जिन्हें ये सुनकर रोना आया होगा, पर ज्यादातर जनता आज भी यही कह रही है कि माफियाओं का अंजाम यही होना चाहिए, पर पब्लिक सेंटीमेंट के साथ-साथ संविधान का ख्याल भी जरूरी है.
ब्यूरो रिपोर्ट ग्लोबल भारत टीवी