ये कहानी उस चांदनी की है, जिसे सड़क पर कूड़ा बीनते देख पुलिस ने थाने में बंद कर दिया, डर से कोई घरवाला छुड़ाने नहीं आया तो किसी तरह निकलर बाहर आई, कूड़ा बीनने का काम छोड़ भूट्टे की ठेली लगाई तो एक कार वाले ने ये तक कह दिया जितना चाहो ले लो, पर हमारे साथ चलो, फिर भुट्टा छोड़कर फूल बेचने का कारोबार शुरू किया, पर जिंदगी से कभी हार नहीं मानी, चांदनी के हौसले की कहानी से न सिर्फ आम इंसान प्रभावित है बल्कि राष्ट्रपति ने भी बुलाकर सम्मानित किया है, उन्हें जब ये कहानी सुनाई गई तो उनकी भी आंखें भर आई. इस तस्वीर में चांदनी पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ बैठी दिख रही है,

लेकिन यहां तक पहुंचने में उसे कई रात भूखे पेट रहना पड़ा, अपना हर सपना तोड़ना पड़ा, जिसे सुनकर हर हिंदुस्तानी की आंखों में आंसू आ जाएंगे. इस भावुक कहानी की शुरुआत होती है साल 1997 से.

उत्तर प्रदेश के बरेली में जन्मी एक लड़की जिसके पिता सड़कों पर करतब दिखाते थे. बेटी 5 साल की हुई तो उसे नाचने-गाने और रस्सियों पर चलने की ट्रेनिंग दी, फिर अगले 6 साल तक वो यही करती रही, लेकिन जैसे ही 11 साल की हुई, पिता की मौत हो गई, मां और छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी उसके कंधों पर आ गई, वो चांदनी चौक में कूड़ा बीनने लगी, कुछ पैसे इकट्ठे हुए तो भुट्टे का कारोबार शुरू किया, करीब 50 किलोमीटर दूर से भुट्टा लाती, फिर बेचती, एक दिन बस छूट गई तो एक कार वाले ने लिफ्ट दिया, पर रास्ते में ही उसने अपने नापाक मंसूबे जाहिर करने शुरू कर दिए, जिसके बाद किसी तरह बच-बचाकर वो घर भागी, खुद को कमरे में बंद कर रोई पर दूसरे ही दिन निकलर दूसरा काम शुरू कर दिया और फिर ये सोचा कि अगर मैं ऐसे रोती रही तो स्लम के बच्चों का क्या होगा. कहते हैं उसी दिन उसने ये ठाना कि कुछ अलग करूंगी. खुद चांदनी बताती है

साल था 2009 का, मैं नोएडा में एक नुक्कड़ नाटक के दौरान एनजीओ चेतना के लोगों से मिली, ये वही एनजीओ है जो बालकनामा एनजीओ चलाने में मदद करता है, अगले साल ही एनजीओ ने चांदनी का एडमिशन ओपन स्कूल में करवा दिया, पहले चांदनी ने रिपोर्टर बनने की ट्रेनिंग ली उसके बाद स्लम पोस्ट में आज बतौर संपादक काम कर रही हैं.
ये हिंदुस्तान की पहली ऐसी मैगजीन है, जिसके रिपोर्टर, एडिटर और सब एडिटर सब स्लम एरिया के बच्चे हैं. आज उन बच्चों के चेहरे पर जो मुस्कान है उसकी वजह चांदनी और उनके दोस्त देव हैं, ये दोनों स्लम एरिया से निकला हैं, जिन्होंने 50 हजार रुपये से एक एनजीओ की शुरुआत की, लेकिन जब सब पैसे खर्च हो गए और जिंदगी दोबारा सड़क पर ले आई तो उनकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया, पर कहते हैं टूटे मन से खड़ा हुआ इंसान काफी मजबूत बन जाता है, दोनों ने नौकरी के लिए इंटरव्यू दिया, नौकरी लग भी गई पर अगले ही पल दिमाग में ख्याल आया, अपना पेट नौकरी से तो भर लेंगे पर इन सैकड़ों बच्चों का क्या होगा, झोपड़पट्टी के जिन बच्चों को रिपोर्टर बनाया, उन्हें बड़े-बड़े सपने दिखाए, पढ़ाई-लिखाई करवाकर उन्हें अच्छा इंसान बनाने का सोचा, वो सब कैसे पूरा होगा, तो उसी दिन चांदनी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाली और लोगों ने पैसे डोनेट करना शुरू कर दिया. आज चांदनी की एनजीओ वॉयस ऑफ स्लम तीन तरह के प्रोग्राम चलाती है.
पहला- ब्रीच प्रोग्राम- हर साल 100 ऐसे बच्चों को ढूंढा जाता है जो कभी स्कूल नहीं गए, उन्हें वॉयस ऑफ स्लम में एडमिशन मिलता है, पांचवीं के बच्चे की तरह डेढ़ साल तक पढ़ाते हैं, फिर अच्छे स्कूल में जाने में मदद करते हैं
दूसरा- ऑफ्टर स्कूल प्रोग्राम- जिन बच्चों के स्कूल में एडमिशन हो जाते हैं, उन्हें ग्रेजुएशन तक के लिए मदद की जाती है
तीसरा– फीड द स्लम- हर दिन 500 से 1000 बच्चों को न्यूट्रीशन फूड खिलाया जाता है, कई बच्चे ऐसे हैं जिन्हें पढ़ना तो है, पर अच्छा खाना नहीं मिल पाता, जिससे वो बीमार हो जाते हैं.
चांदनी खुद कहती हैं कि स्लम एरिया के बच्चों की अगर सही में मदद करनी हैं, तो उन्हें वहां से बाहर निकालकर पढ़ाना होगा, सरकार ने भले ही शिक्षा फ्री कर दी हो, स्कूलों में मिड डे मिल मिल रहा हो, पर इससे भी आगे सोचना होगा. वरना स्लम एरिया में रह रहे लाखों बच्चों का भविष्य बर्बाद हो जाएगा. आज चांदनी जैसे लोगों ने ही देश के भविष्य को संवार रखा है, बच्चे इन्हें प्यार से चांदनी दीदी कहते हैं, आप इनकी हिम्मत और जज्बे को क्या कहेंगे, कमेंट में बताइए, जब चांदनी ने कोई संसाधन न होते हुए इतना बड़ा काम कर, राष्ट्रपति से सम्मान प्राप्त किया तो हम और आप जिनके पास काफी संसाधन हैं, वो क्या नहीं कर सकते, क्या हमें समाज की भावना से आगे बढ़कर काम नहीं करना चाहिए. कुछ नेता चोर होते हैं, कुछ अफसर भ्रष्ट होते हैं, ये तो हम आसानी से कह देते हैं, पर हम अपने कर्तव्यों के प्रति कितने ईमानदार हैं, ये भी देखना होगा.
ब्यूरो रिपोर्ट