मंदिर की रक्षा करने वाला वो मगरमच्छ,जो सिर्फ प्रसाद खाकर 70 साल जिंदा रहा,मछलियां साथ खेलती थीं
इस कहानी की शुरुआत होती है एक महान ब्राह्मण ऋषि दिवाकर मुनि विल्वामलंगम की तपस्या से, केरल के कोच्चि से करीब 200 किलोमीटर दूर कासरगोड जिले का अनंतपुर गांव पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ था, यहां ऋषि ने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की, उससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने बालक रूप में दर्शन दिया, तब ऋषि ने पूछा कि हे बालक तुम कौन हो, बालक ने कहा ऋषिवर मैं अनाथ हूं, मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है, मैं कहीं रहने का ठिकाना ढूंढ रहा हूं, तब ऋषि ने कहा कि तुम मेरे साथ रह जाओ, तब बालक रूपी भगवान ने कहा कि मैं रहूंगा लेकिन मेरी शर्त ये है कि अगर आपने कभी मेरे साथ दुर्व्यवहार किया तो मैं आपको छोड़कर चला जाऊंगा. उसके बाद बालक ने ऋषि के साथ रहना शुरू कर दिया, और ऋषि जब भी तपस्या करते परीक्षा लेने के लिए उन्हें परेशान करता. एक दिन ऋषि को गुस्सा आया और बालक वहां से चला गया. उसके बाद जो हुआ वो बेहद चौंकाने वाला था.

भगवान विष्णु का सबसे बड़ा भक्त, दिन में दो बार भगवान के दर्शन करता, फिर झील में दिनभर पड़ा रहता
ऋषि को आकाशवाणी सुनाई दी कि अगर मुझे ढूंढना चाहते हो तो अनंथनकट आना होगा, जब ऋषि वहां गए तो भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन हुए, कहते हैं आज केरल के अनंतपुर गांव में जिस जगह पर पद्मनाभम मंदिर बना है, वो वही गुफा है, उसी गुफा में ये शाकाहारी मगरमच्छ रहता था, जिसका काम था उस गुफा की रक्षा करना, कहा जाता है कि उसकी डर से कोई उस गुफा में नहीं जाता था और साक्षात भगवान अंदर गुफा में रहते थे. फिर भी बबिया मगरमच्छ दो बार उस गुफा से निकलकर मंदिर के बाहर सीढ़ियों से होते हुए भगवान विष्णु के दर्शन के लिए आता और फिर मंदिर का प्रसाद लेकर वापस चला जाता था. वहां रहने वाले पुजारी हों या फिर झील के जीव जंतु कोई भी उस मगरमच्छ से नहीं डरता था, झील की मछलियां तो मगरमच्छ के साथ खेला करतीं थीं. इसके शाकाहारी होने और भगवद्तभक्ति की वजह से इसका नाम बबिया रखा गया, बबिया मगरमच्छ की मौत के बाद मंदिर के पुजारियों ने ससम्मान उसका अंतिम संस्कार किया, लोग उसे देवदूत मान रहे थे,

क्योंकि हिंदू धर्म में ऐसा कहा जाता है कि जो जिंदगीभर भगवद्भक्ति में गुजारे और वो भी एक जानवर होने के बावजूद तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. गजेन्द्र मोक्ष की कथा भी ऐसी ही जब भगवान विष्णु ने अपने परम भक्त गजेन्द्र नाम के हाथी को बचाने के लिए मगरमच्छ का वध कर दिया था. लेकिन ये मगरमच्छ भगवान का परम भक्त था. इसीलिए ऐसा कहा जा रहा है कि मगरमच्छ बबिया की मौत के बाद भगवान विष्णु ने यमदूतों को नहीं बल्कि पुष्पक विमान भेजा होगा. गरुड़पुराण कहता है कि मगरमच्छ हो या अजगर कोई भी जीव उस योनि में तभी पहुंचता है जब पिछले जन्म में घोर पाप करता है, हालांकि ये मगरमच्छ सबसे अलग था. क्योंकि कहा जाता है कि आजादी के दो साल पहले यानि 1945 में इसी मंदिर के पास एक ऐसी घटना हुई जिसने अंग्रेजों को भी हिलाकर रख दिया था.

अंग्रेजों ने मारी थी एक मगरमच्छ को गोली, तो आ गए तीन, आज इंग्लैंड भी बबिया की मौत पर रोया होगा
एक ब्रिटिश सैनिक ने एक दिन झील में एक मगरमच्छ को देखा और उसे गोली मार दी, उसके बाद अचानक से दो-तीन मगरमच्छ और आ गए और उसे देखकर उस ब्रिटिश सैनिक को ऐसा डर लगा कि उसे वहां से भागना पड़ा, कहते हैं कि उस मंदिर की रक्षा मगरमच्छ ही करते हैं, दक्षिण भारत में कई ऐसे मंदिर हैं, जिनकी रक्षा सांप और नाग करते हैं, धार्मिक मान्यताओं पर लोग आसानी से भरोसा नहीं करते, लेकिन अंग्रेज जब भारत आए तो उन्हें ऐसी-ऐसी घटनाएं देखने को मिली जिससे धर्म पर उनका यकीन भी बढ़ गया था, आज बबिया की मौत के बाद सिर्फ हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि इंग्लैंड भी लोग भावुक होंगे, क्योंकि इस मगरमच्छ की उम्र करीब 70 साल से ज्यादा बताई जा रही है, इसलिए शायद ये वही मगरमच्छ हो जिसने ब्रिटिश सैनिक की हवा खराब कर दी हो.