ये कहानी है साल 1970 की, जब गुजरात का कच्छ वाला इलाका पानी की कमी से जूझ रहा था, भुज जिले के एक गांव में जन्मी एक 17 साल की लड़की शादी के बाद ससुराल पहुंची तो ससुरालवालों ने कहा कि पानी कम इस्तेमाल करना, यहां अनाज ज्यादा पैदा नहीं होता, इसलिए ज्यादा खाना भी मत खाना, सुनते ही उसका दिमाग ठनक गया. उसका ससुराल उसके गांव से करीब 250 किलोमीटर दूर पाटन जिले के बकुत्रा गांव में था,

महिलाओं को कहा काम करो,पुरुषों को कहा हमारा साथ दो, और हर कोई कमाने लगा लाखों
जहां सूखे की समस्या सबसे भीषण थी, उसने सोचा कि बाहर निकलकर सूखा खत्म करने के लिए काम करूंगी, तभी सास और ननद ने कहा कि इस घर की महिलाएं बाहर नहीं जाती, अपने खानदान का नाम कटवाएगी क्या, अब उसे घर बैठे कुछ अच्छा करना था, अनपढ़ होने की वजह से रोजगार भी नहीं मिल रहा था, ऐसे में उसने कहा कि अगर बाहर नहीं जाती तो घर बैठे सामान तो हाथ से बैग और टोकरी वगैरह तो बना ही सकती हूं, अगर आप बेचने नहीं जाने दोगे तो घर के पुरुष बेच आएंगे, इससे कमाई भी हो जाएगी और इज्जत भी बची रहेगी, ये बात घरवालों को ठीक लगी, उसने ये काम शुरू कर दिया, उसके बाद धीरे-धीरे वो घर से भी निकलने लगी, उस लड़की का नाम है गवरी बेन, जो उम्र में पीएम मोदी से 14 साल छोटी हैं, लेकिन कच्छ से सूखा मिटाने का संकल्प उन्होंने मोदी से भी पहले लिया था

पूरा गुजरात इस बात को जानता है कि पीएम मोदी ने कैसे कच्छ के इलाके में हरियाली लाई, कुछ दिनों पहले पीएम मोदी ने इस बात का जिक्र भी किया था कि नर्मदा बचाओ आंदोलन के नाम पर कैसे उन्हें रोकने की कोशिश की गई थी, ठीक उसी तरह गवरी बेन को गांववालों ने रोकने की कोशिश की, लेकिन जब वो अहमदाबाद के एक सेवा संस्थान से जुड़ीं और आमदनी बढ़ने लगी तो गांववाले साथ देने की बजाय सवाल उठाने लगे, वो कहने लगे कि इस लड़की ने पूरे गांव का नाम खराब कर दिया है, हमारे यहां की महिलाएं घर से बाहर तक नहीं निकलती और ये अहमदाबाद अकेले घूमकर आती है, इसे समझाना होगा, तभी गवरी की मां ने कहा कि अगर कम के सिलसिले में तुम दिल्ली गई तो घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे, पति ने कहा कि मैं भी तुम्हें बाहर जाने की इजाजत नहीं दे सकता. ऐसे में गांववालों को समझाने के साथ-साथ अपने काम को जारी रखने की चुनौती गवरीबेन ने बहुत अच्छी तरह संभाली, शुरुआत में गांव की ही कुछ महिलाओं को समझा-बुझाकर साथ खड़ा किया, शुरू में दस महिलाओं से अपने रोजगार को आगे बढ़ाया और आज 17 हजार से ज्यादा महिलाएं उनके साथ काम करती हैं, जिन गांववालों ने विरोध किया वो भी अब गवरी बेन के लिए हाथों से बने हैंडबैग, बेडशीट, रूमाल, और तकिया कवर जैसे कई आकर्षक सामान बनाते हैं, गवरीबेन बताती हैं,

लड़कियां सिर्फ स्कूलों में परीक्षा पास होने के लिए ही हस्तकला का प्रदर्शन नहीं कर सकतीं, बल्कि उन्हें मौका मिले तो वो शानदार प्रोडक्ट भी बना सकती हैं. पाटन की हस्तकला की डिमांड आज देश-विदेश सब जगह है, साल 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने मुझे बेस्ट हस्तकला अवॉर्ड से सम्मानित किया था, मैं पहले दिल्ली नहीं जा पाती थी, लेकिन अब अमेरिका, सिडनी, साउथ अफ्रीका और इटली जैसे देशों में भी अपने प्रोडक्ट का प्रचार करने जाती हूं, साउथ अफ्रीका में ज्यादातर लोग लाल और काले रंग की चीजें पसंद करती हैं, जबकि अमेरिका में हमारे प्रोडक्ट की डिमांड खूब है, ऑनलाइन भी आप इसे ऑर्डर कर सकते हैं.

राष्ट्रपति ने दिया सम्मान, मोदी करते हैं इज्जत, अमेरिका भी देता है गवरी बेन को सम्मान!
इसी कला के दम पर गवरी बेन की विदेशों में भी फैन फालोइंग खूब है, यहां तक कि बॉलीवुड के बादशाह शाहरूख खान भी गवरी के बहुत बड़े फैन हैं, संयुक्त राष्ट्र के कई प्रतिनिधि भी अब तक गवरी बेन से मिल चुके हैं, क्योंकि गवरी बेन ने वो काम कर दिखाया है, जो वहां के पुरुष और बड़े-बड़े नेता भी नहीं कर पाए, आज कच्छ के इलाके को हरा-भरा बनाने की कोशिश की जा रही है, गुजरात चुनाव में कच्छ में सूखे का मुद्दा छाया रहता है, समुद्री इलाके में नमक का दाम बढ़ाने की मांग खूब होती है लेकिन ऐसी मांगों में गवरी बेन जैसी शख्सियत चुपचाप अपने काम में खोई रहती हैं, हमने इनकी कहानी आपको इसीलिए सुनाई ताकि अगर आपके अंदर कुछ करने का जज्बा हो और किसी वजह से नहीं कर पा रहे हैं तो बहाना छोड़कर उस काम को करने की शुरुआत कीजिए, आपको रोकने वाले भी एक दिन आपके पीछे खड़े होंगे.