जाति व्यवस्था का जनक कौन है, ब्राह्मण, मुगल या फिर दूसरे विदेशी आक्रमणकारी, यजुर्वेद का पुरुषसुक्त कहता है ब्राह्मण मुख, क्षत्रिय हाथ, वैश्य जंघा और शुद्र पैर हैं, रामचरितमानस में तुलसीदास सबरी और केवट का जिक्र करते हैं, जिनकी जाति क्या थी, सब जानते हैं, मनुस्मृति में चार वर्णों के बारे में साफ-साफ लिखा है, फिर मोहन भागवत जैसे ज्ञानी पुरुष ने कौन सी किताब पढ़ी है, जो ब्राह्मणों को जाति व्यवस्था का जनक मानते हैं, हम उनकी मजबूरी आपको समझाते हैं लेकिन उससे पहले उनका बयान सुनिए.

भगवान ने हमेशा कहा है कि हमारे लिए सब एक हैं, उनमें कोई जाति-वर्ण नहीं है, लेकिन श्रेणियां पंडितों ने बनाईं, जो गलत था. देश में विवेक, चेतना, सभी एक है, उसमें कोई अंतर नहीं है.
मोहन भागवत, संघ प्रमुख

हालांकि अब भागवत के इस बयान पर आरएसएस ने ये सफाई दी है कि पंडित से उनका मतलब विद्वानों से था. लेकिन भागवत का ये बयान यूपी में चल रहे शुद्र पॉलिटिक्स को हवा देने वाला लगता है, जो मोदी-योगी किसी को भी पसंद नहीं आएगा, दो दिन पहले ही योगी ने एक इंटरव्यू में कहा है कि यूपी ने जाति की राजनीति करने वालों को नकार दिया है, मोदी भी कहते हैं हम विकास की राजनीति करते हैं, फिर मोहन भागवत ऐसा बयान क्यों दे रहे हैं, जब हमने पड़ताल की तो पता चला कि
130 करोड़ आबादी में से करीब 10-12 करोड़ हिंदुस्तानी ब्राह्मण हैं, 43 करोड़ ओबीसी और 22 करोड़ दलित हैं, आरएसएस ये मानकर चल रही है कि ब्राह्मण हमारे कोर वोटर्स हैं, ये नाराज भी हुए तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. बिहार चुनाव से ठीक पहले आरक्षण के खिलाफ बयान देकर भागवत ये समझ चुके हैं कि ओबीसी और दलितों के खिलाफ जाना मतलब बड़े वोटबैंक को खोना है.

शायद इसीलिए जानबूझकर ऐसा बयान दिया, दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में जब दीवारों पर नारे लिखे गए कि ब्राह्मण-बनिया चोर हैं, तो किसी ने कुछ नहीं कहा, और जब आप कुछ नहीं बोलते तो फिर आप पर सवाल उठाने वालों की संख्या बढ़ जाती है, आजादी के बाद ब्राह्मण जितने बड़े पदों पर थे, आज उतने नहीं दिखते, उसका कारण जाति की राजनीति और उनकी कम होती भागीदारी है, इसी आरएसएस के नेता मंडल कमीशन के वक्त कमंडल की राजनीति को बढ़ावा दे रहे थे, क्या तब जाति व्यवस्था के जनक ब्राह्मण नहीं थे या फिर उस वक्त ये बात बोलते तो कोई साथ नहीं देता इसका डर था. आज हालत ये है कि ब्राह्मण का बच्चा अगर गरीब है, तो उसकी पीड़ा कोई नहीं समझेगा लेकिन दलित का बच्चा अगर मिडिल क्लास फैमिली से भी है तो समाज उसे गरीब समझता है, ये अनुभव शायद आपने भी किया होगा. पीएम मोदी ने जब से EWS आरक्षण दिया, सवर्णों को लगा कि चलो कोई तो हमारी बात करने वाला आया, लेकिन आरक्षण इसका समाधान नहीं है.
आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि आरएसएस के तीन बड़े विचारक मुगलों और विदेशी आक्रंताओं को इसका दोषी मानते हैं, हिंदू चर्मकार जाति, हिंदू खटीक जाति और हिंदू वाल्मीकि जाति ये वो तीन किताबें हैं.

जिसमें लिखे गए आरएसएस विचारकों के बयान आप पढ़ेंगे तो लगेगा कि जिन विदेशी हमलावरों ने यहां राज किया, उन्होंने ऐसी जातियां समाज को बांटने के लिए बनाया, जबकि इस किताब को लिखने के पीछे कुछ लोग लॉजिक ये मानते हैं कि आरएसएस उस वक्त हिंदुत्व की विचारधारा को लेकर आगे बढ़ रही थी, इसलिए मुस्लिम शासकों को दोषी बता दिया, अब चूंकि वो जरूरतें खत्म हो गईं, तो अब 10-12 करोड़ ब्राह्मणों को बलि का बकरा बना रहे हैं, इससे होगा कुछ नहीं बस समाज के सोचने का नजरिया बदल जाएगा, हो सकता है आप आरएसएस समर्थक हों और कहें कि मोहन भागवत गलत नहीं बोल सकते, तो फिर इन धर्मग्रंथों को एक बार जरूर पढ़िएगा, सच क्या है, झूठ क्या है आसानी से समझ पाएंगे.