भारत अपने हर बच्चे का भविष्य बदलता है लेकिन कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो भारत का भविष्य बदल सकते हैं, और उनमें सबसे बड़ा नाम है अनिल अग्रवाल का, ये तस्वीर देखिए, इनका चेहरा देखकर आप समझ सकते हैं कि इनका बचपन गरीबी में गुजरा है, 14 हजार करोड़ की कंपनी खड़ी करने के बाद भी ये अपनी गरीबी नहीं भूले हैं, ये ट्वीट इसी साल 8 मार्च को अनिल अग्रवाल ने किया था, जिसमें लिखा था मां 400 रुपये महीना कमाकर हम 4 बच्चों को पालती थी, मां आज भी हमें प्रेरणा देती है. मां की कमाई जब घर चलाने के लिए कम पड़ने लगी थी तो अनिल अग्रवाल ने कबाड़ बेचा, शुरू से ही बड़ा बिजनेसमैन बनने का सपना था जो मुंबई पहुंचने पर साकार हुआ. जब ये मुंबई पहुंचे तो हाथों में एक टिफिन और बिस्तर के अलावा कुछ भी नहीं था, यहीं से इनकी कहानी की शुरुआत हुई. बिहार से आने वाले अनिल अग्रवाल आज बिजनेस की दुनिया में बड़ा नाम हैं. आज इनकी कंपनी वेदांता लिमिटेड जमीन खोदकर सोना निकालती है, वेदांता ग्रुप का नाम न सिर्फ भारत में बल्कि दुनियाभर में है, ये वो खनन कंपनी है, जो गोवा, कर्नाटक, राजस्थान और ओडिशा जैसे राज्यों में अपनी कंपनी चलाती है, जमीन खोदकर लौह अयस्क, सोना और एल्युमिनियम निकालती है. लेकिन अब इस कंपनी ने ताइवान से इतनी बड़ी डील की है कि आप भी इन्हें सलाम ठोकेंगे. पहले उस डील की कहानी सुनिए फिर बताते हैं ये कितने बड़े दानी हैं.

मोबाइल से लेकर किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में जो चिप लगता है वो वेदांता ग्रुप की कंपनी बनाएगी
इस चिप को अंग्रेजी में सेमीकंडक्टर कहते हैं, अब तक ताइवान ये चिप पूरी दुनिया को सप्लाई करता है
ताइवान की फॉक्सकॉन कंपनी के साथ वेदांता ग्रुप की डील हुई है,गुजरात में बड़ा प्लांट बनने जा रहा है
दोनों कंपनियां 1.54 लाख करोड़ रुपये का निवेश करेगी, ये भारत में सेमीकंडक्टर का पहला प्लांट होगा
भारत में सेमीकंडक्टर बनने से मोबाइल, लैपटॉप से लेकर कई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की कीमत कम होगी
फॉक्सकॉन कंपनी आईफोन भी बनाती है,लेकिन टाटा ग्रुप ने विस्ट्रॉन कॉर्प के साथ अपना करार किया है
ये दो बड़ी कंपनियां इंडिया आईं तो मेक इन इंडिया को बढ़ावा मिलेगा,लाखों लोगों को नौकरी भी मिलेगी
यानि जो लोग मेक इन इंडिया का मजाक उड़ा रहे थे, उन्हें अब समझ आएगा कि कितनी बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत आने को तैयार बैठी हैं. बस उन्हें सही मौके की तलाश थी, अनिल अग्रवाल और रतन टाटा जैसे बिजनेसमैन पर विदेशी कंपनियां इसलिए भी भरोसा कर सकती हैं क्योंकि इनकी छवि सिर्फ एक बिजनेसमैन की नहीं बल्कि अच्छे इंसान की भी है, इनका बिजनेस अडानी-अंबानी की तरह कर्ज की नींव पर कम और लोगों की उम्मीदों पर ज्यादा टिका है. तभी तो अनिल अग्रवाल कहते हैं कि
मैं वेदांता ग्रुप को 50 अरब डॉलर की कंपनी बनाने की सोच रहा हूं, मेरे रिटायरमेंट का बाद मेरे बच्चे इसे नहीं चलाएंगे, अगर मैं ऐसी कंपनी खड़ी कर सकता हूं तो मेरे दोनों बच्चे भी ऐसा कर सकते हैं, वेदांता ग्रुप को मैं अगले 500 सालों के लिए तैयार करना चाहता हूं, इसे बाद में मैनेजमैंट के हवाले कर दिया जाएगा, क्योंकि मैनजमेंट ही इसे बेहतर तरीके से चला सकता है, यह लोगों के द्वारा, लोगों के लिए और देश के लिए चलाई जाएगी.
तभी तो खनन से कमाई के बाद अब अनिल अग्रवाल देश के लिए काम करने में जुटे हैं. अनिल अग्रवाल ने अपनी संपत्ति का 75 फीसदी हिस्सा दान कर दिया है, कोरोना के वक्त जब पूरा देश संकट के जूझ रहा था तो अनिल अग्रवाल की मां ने 150 करोड़ की संपत्ति दान की थी. खुद अनिल अग्रवाल कहते हैं कि दुनिया के सबसे अमीर बिल गेट्स से मिलने के बाद मुझे लगा कि पैसा ही सबकुछ नहीं है, मैंने जो कमाया है उसे समाज को लौटाना चाहता हूं, ऐसे उदार ख्याल वाले बिजनेसमैन के बारे में आप क्या सोचते हैं, हमें कमेंट कर बता सकते हैं.