ये किस्सा 90 के दशक का है, जब मुलायम सिंह यादव का कद यूपी में तेजी से बढ़ रहा था, साल 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर पहली बार विधआनसभा चुनाव जीतने वाले मुलायम सिंह यादव का सपना सीएम बनने का था, जैसे ही 1989 के विधानसभा चुनाव में जनता दल ने 208 सीटें जीतीं, मुलायम सिंह ने ये मन बना लिया कि सीएम बनूंगा तो मैं ही, लेकिन उधऱ तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह चौधरी अजीत सिंह को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, उन्होंने जीत के बाद ही ऐलान भी कर दिया कि अजीत सिंह सीएम और मुलायम सिंह यादव डिप्टी सीएम होंगे, लेकिन 24 घंटे में ही मुलायम सिंह यादव ने खेल पलट दिया. वो किस्सा सुनाएं उससे पहले एक मिनट में ये जान लीजिए कि मुलायम सिंह के निधन पर किसने क्या कहा

धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव जमीन से जुड़े नेता थे, उनका सम्मान सभी करते थे- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू
मुलायम सिंह के निधन से दुख पहुंचा,मैं हमेशा उनके विचारों को सुनने के लिए तैयार रहता था- पीएम मोदी
आपातकाल के दौरान लोकतंत्र की पुनर्स्थापना के लिए उन्होंने आवाज उठाई, वो एक जननेता थे- गृहमंत्री शाह
समाजवाद के प्रमुख स्तंभ, संघर्षशील युग का अंत हो गया, यूपी में 3 दिन राजकीय शोक होगा- सीएम योगी
मुलायम सिंह यादव के निधन की ख़बर अति दुखद है,भगवान समर्थकों को दुख सहने की शक्ति दें- मायावती

गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में नेताजी ने आखिरी सांस ली, उनके निधन के बाद हर कोई उस दौर को याद कर रहा है जब वो साइकिल के पीछे कैरियर बैठकर एक वोट, एक नोट का नारा लगाते थे, हर किसी से कहते थे कि मेरे पास साधन नहीं, मैं एक साधारण शिक्षक हूं, लेकिन अब सियासत में आ गया हूं तो पैसे आप लोगों को ही देने होंगे, एक वोट के साथ एक रुपये का नोट देना ताकि प्रदेश के विकास के लिए मैं बड़ा नेता बन सकूं और ये पैसा आपको ब्याज समेत वापस मिलेगा. पहली बार साल 1967 में नेताजी सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनकर विधायक बने, उसके बाद तो उनके जीत का कारवां चलता गया, यूपी के तीन बार मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तो उन्हें अपने प्रतिद्वंदी अजीत सिंह से सिर्फ 5 वोट ज्यादा मिले थे.

कहा जाता है कि दिल्ली से वीपी सिंह ने तीन पर्यवेक्षक इस बात के लिए भेजे थे कि वो मुलायम सिंह को डिप्टी सीएम के लिए मना लें, लेकिन मुलायम तैयार नहीं हुए, आखिर में सभी विधायकों को बुलाया गया और बंद कमरे में सीक्रेट वोटिंग हुई, वोटिंग से पहले अजीत सिंह के पक्ष में ज्यादा विधायक थे, लेकिन बाहुबली विधायक डीपी यादव की मदद से मुलायम सिंह ने विरोधी खेमे के 11 विधायकों को अपने साथ ले लिया. जब गाड़ियों का काफिला विधानसभा में मतदान केन्द्र पर पहुंचा तो बाहर मुलायम सिंह जिंदाबाद और अजीत सिंह जिंदाबाद के नारे लग रहे थे, लेकिन वोटिंग के बाद जब सब बाहर निकले तो पता चला कि जवानी के दिनों में पहलवानी का शौक रखने वाले नेताजी ने सियासी अखाड़े में अजीत सिंह को 5 वोटों से मात दे दी और पहली बार दिसंबर 1989 में मुख्यमंत्री बने, मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें पिछड़ों के लिए काम करने के लिए जाना जाता है, लेकिन कारसेवकों पर गोली चलवाने का दाग पर उन पर लगा, उत्तराखंड की मांग करने वाले लोगों को दबाने का आरोप भी लगा,हालांकि इन आरोपों के आगे मुलायम सिंह यादव का कद कम नहीं हुआ बल्कि साल 1996 में रक्षामंत्री बने तो एक ऐसा आदेश निकाला कि विरोधी भी उनकी तारीफ करने लगे. आज शहीद जवानों का पार्थिव शरीर जो घर तक ताबूत में पहुंचता है वो मुलायम सिंह यादव की ही देन है, तभी तो कहते हैं कि जलवा जिसका कायम है, उसका नाम मुलायम है.