ये तस्वीरें देखिए…ये ख़तरनाक जानवर तेंदुआ है…गुर्राते हुए ये जज साहब के पास तक पहुंच गया…वकीलों के हाथों की फाइल एक तेंदुए की वजह से बिखर गई, गाज़ियाबाद की कोर्ट में जो कुछ हुआ वो आपको जानना चाहिए…इंसान हर रोज़ लाखों जानवरों को मसल देता है…पर जब एक जानवर अपने न्याय की मांग करते कोर्ट तक पहुंचा तो फिर जज और वकील दोनों को मैदान छोड़कर भागना पड़ा.

वकीलों में भगदड़ मच गई, ऐसे भाग रहे थे, 8 फरवरी को कोर्ट में सुनवाई हो रही थी…शाम होने वाली थी और छुट्टी होने वाली थी..वकील अपनी जेबों को गरम कर लौटने वाले थे जज भी थक चुके थे, तभी एक तेंदुआ के आने की ख़बर सुनकर कुछ लोग भागते हैं, कोई इधर कोई उधर, ये सब कोर्ट के बाहर होता है, अंदर जज और वकीलों को अब भी कुछ नहीं पता, किसे पता था जिस कोर्ट में जज साहब रोज़ कईयों को जेल भेजते हैं उन्हें ही वहां दो घण्टे तक कैद रहना पड़ेगा! दोपहर के साढ़े तीन बजे, तेंदुआ कोर्ट के अंदर आता है.

आज कोर्ट में ही सिस्टम की पोल खुलने वाली थी, कोई आम इंसान मदद मांगता तो वन विभाग वाले नींद पूरी करके आते हैं, पर जैसे ही पता चला जज साहब के पास तेंदुआ पहुंच गया है फौरन वन विभाग की टीम पहुंच जाती है, गाज़ियाबाद वन विभाग की टीम एक तेंदुए को नहीं पकड़ पाई, यहीं से कहानी की शुरूआत होती है…गाज़ियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा को मिलाकर करीब डेढ़ करोड़ लोग रहते हैं पर एक तेंदुए को पकड़ने में गाज़ियाबाद की टीम फेल रही…मेरठ से टीम बुलाई गई, मेरठ की टीम जब तक आती तब तक तेंदुए के कारण माहौल क्या था वो देखिए…तेंदुआ सबसे पहले पुलिस पर हमला करता है, कई बेईमान पुलिसवालों के कारण जंगल कटते हैं, अवैध तरीके से पेड़ काटे जाते हैं, नतीजा तेंदुआ भी सिस्टम का खेल समझ चुका था…एक मूवी का डायलॉग है एक मच्छर इंसान को हिजड़ा बना देता है, वैसे ही एक तेंदुए ने वकीलो को मदारी के बंदर की तरह नचाया, तीन घण्टे तक वकील, कर्मचारी, आम जनता, और तारीख पर आए लोग वीडियो बनाते रहे, गाज़ियाबाद पुलिस न तेंदुए को पकड़ पाई न भीड़ को बाहर कर पाई, हैरानी की बात ये कि तेंदुआ सीढ़ी वाले शटर के अंदर बंद था, अगर वो खुला होता तो न किसी की ताकत काम आती न कोई बचता…ढाई घण्टे के बाद मेरठ की टीम के साथ मिलकर गाज़ियाबाद वन विभाग की टीम तेंदुए को पकड़ लेती है….एक तेंदुआ जंगल में खुद का घर 50 से 60 किलोमीटर तक समझता है, गाज़ियाबाद वन विभाग की टीम के पास एक बेहोश करने के लिए एक ट्रैंक्यूलाइजर गन नहीं था, पर पूरी कहानी के पीछे का मोरल क्या है? जज साहब को सोचना होगा, जंगलों को काटकर घर बनाया जा रहा है, जानवरों के घरों में इंसान हमला बोल रहा है, इसलिए कोर्ट में तेदुआ पहुंच जाता है…वकीलों ने खुद को कैद कर लिया था, जज साहब का अता-पता नहीं था, गाज़ियाबाद में कुछ समय पहले भी एक सोसाइटी के आस-पास तेंदुआ दिखा पर वन विभाग वाले नींद में थे, लेकिन कोर्ट में तेंदुआ पहुंचा तो जज साहब के डर से एक्शन में आए लेकिन हथियार ही नहीं था…अब समझ में ये नहीं आ रहा है कि वन विभाग वाले तेंदुए से डरे या फिर जज साहब के एक्शन के डर से तुरंत पहुंच गए? आपको क्या लगता है? तेंदुआ तो पकड़ा गया पर सिस्टम का खेल कब पकड़ा जाएगा?