कौन हैं भारत के नए शेर अनिल चौहान, जिन्हें मोदी ने बनाया देश का दूसरा CDS
9 महीने बाद देश को नया सीडीएस मिल गया है, जिनकी सबसे बड़ी खासियत चीनी सीमा से लगे इलाकों में इनकी गहरी समझ होना है, ये चीन की हर चाल से अच्छी तरह वाकिफ हैं, और कुछ साल पहले ही पाकिस्तान को बुरी तरह धूल चटाया है. आतंकवादी और नक्सलियों को तो ये इतने बड़े दुश्मन हैं कि कोई भी इनके सामने नहीं आना चाहता. दूरदर्शी सोच रखने वाले अनिल चौहान दुश्मन की हर चाल पहले ही भांप जाते हैं, वो खुद कहते हैं कि

मैं मुखौटों का शौकीन हूं, अंकोला से मैं कई मुखौटे खरीदकर लाया था, अभी मेरे पास 150 से ज्यादा मुखौटे हैं, अगर मुझे पता चलता है कि ये मुखौटा किसी देश या प्रदेश की संस्कृति से जुड़ा है मैं उसे खरीद लेता हूं.
आतंकियों के बड़े दुश्मन,एयरस्ट्राइक के मास्टर,और मुखौटे जमा करने के हैं शौकीन
जब कोई जवान मुखौटों का शौकीन हो तो समझ लीजिए कि वो मुखौटों के पीछे चेहरे को कितनी अच्छी तरह से बेनकाब कर सकता है, पाकिस्तान में जब बालाकोट एयरस्ट्राइक हुआ तो उस वक्त अनिल चौहान डीजीएमओ के महानिदेशक थे, उनके आदेश पर ही पाकिस्तान में छिपे आतंकी ठिकानों पर तबाही मची थी. पाकिस्तानी अखबार डॉन ने इनकी नियुक्ति पर लिखा है बॉर्डर पर टेंशन के बीच भारत सरकार ने नया सीडीएस चुन लिया है. लेकिन कहा जा रहा है कि इनके सीडीएस बनाए जाने की ख़बर से पाकिस्तान और चीन दोनों की हालत खराब है.
दरअसल अनिल चौहान जब पूर्वी कमांड के हेड हुआ करते थे, तो इनका खुला आदेश था कि दुश्मन को उसी की भाषा में मुंहतोड़ जवाब दो, जिस अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में चीन अपनी चालबाजी से आगे बढ़ना चाहता था, उसे जनरल चौहान ने ही जवानों के साथ मिलकर रोका था. सीमा पर कॉम्बैट तैयारियों को इन्होंने इतनी तेजी से आगे बढ़ाया कि मोदी उसी वक्त इनके मुरीद हो गए थे. तभी तो जनरल बिपिन रावत के निधन के बाद जब नया सीडीएस बनाने की बात आई तो मोदी सरकार ने लंबा वक्त लिया, डिप्टी सीडीएस आर हरिकुमार को सीडीएस बनाने की चर्चा हुई तो वहीं एमएम नरवणे का नाम भी सुर्खियों में रहा, लेकिन आखिरी समय में फैसला इन पांच वजहों से पलट गया. हम वो वजह आपको बताएं उससे पहले अनिल चौहान से जुड़ी ये बातें जान लीजिए, ताकि आपसे कोई आपके सीडीएस के बारे में पूछे तो आप बता सकें.
40 साल सेना में रहे,अब तीनों सेनाओं के बने हेड,अखंड भारत का सपना होगा पूरा!
61 साल के अनिल चौहान जनरल बिपिन रावत की तरह ही उत्तराखंड के रहने वाले हैं
साल 1981 में गोरखा राइफल्स में शामिल हुए,जनरल रावत भी इसी बटालियन में थे
नॉर्दन कमांड बारामूला सेक्टर में इंफैन्ट्री डिविजन कमांडर,फिर कमांडिंग ऑफिसर बने
जनरल चौहान ने पूर्वी कमांड में लंबे वक्त तक काम किया, जम्मू-कश्मीर में भी रहे हैं
चौहान के साथ काम करने वाले अधिकारी कहते हैं कि वो सीडीसीए के मौजूद सभी ऑप्शन में सबसे बेस्ट थे, उनकी सबसे खास विशेषता यही है कि जोश में आकर फैसले नहीं लेते, किसी भी समस्या पर पहले गहनता से विचार करते हैं, उसके बाद समाधान बताते हैं, कभी भी खुद को ज्ञानी नहीं समझते और ना ही जल्दबाजी में कोई गडबड़ी करते हैं, क्योंकि एक गलत फैसला बहुत बड़ी गलती साबित हो सकती है. अनिल चौहान शुरू से ही स्वदेशी हथियारों और स्वदेशी रक्षा तकनीक के हिमायती रहे हैं.
अब मोदी सरकार जब स्वदेसी हथियार बनाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ना चाहती है, आर्मी से लेकर एयरफोर्स तक के जवानों को पूरी तरह स्वदेशी और आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश हो रही है, तो अनिल चौहान का आइडिया नए भारत को काफी काम आने वाला है, कभी जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि अगर सरकार आदेश तो हम और हमारे जवान पीओके पर कभी भी एक्शन के लिए तैयार हैं, और अनिल चौहान भी तेवर से कुछ ऐसे ही नजर आते हैं, इसलिए हो सकता है पीएम मोदी के नेतृत्व में अनिल चौहान कुछ ऐसा कर जाएं कि अखंड भारत का सपना पूरा हो जाए.