हमारे देश में 75 साल बाद भी ये तय नहीं किया जा पा रहा है कि आरक्षण की नीतियां क्या होनी चाहिए? मसलन आरक्षण जाति देखकर या हालात देखकर देना चाहिए? UP में आरक्षण पर एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा हुआ…सवाल ऐसा है कि दो जजों की राय अलग-अलग हो गई! एक हफ्ते पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिना आरक्षण के तुरंत निकाय चुनाव कराने का आदेश दिया, जिसके खिलाफ योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची तो सीनियर जज साहब ने फैसला ही पलट दिया. अब यहां ये समझना होगा कि योगी आरक्षण के साथ हैं या आरक्षण के खिलाफ. फिर आपको बताते हैं जजों की राय अलग क्यों है.

साल 2010 में जब पूरी पार्टी महिला आरक्षण के पक्ष में थी, तो योगी खुलकर विरोध कर रहे थे, उन्होंने यहां तक कह दिया था कि अगर पार्टी व्हीप भी जारी करेगी तो भी पक्ष में वोट नहीं दूंगा. लेकिन यही योगी जब दूसरी बार सीएम बने तो यूपी में एक दिन का विधानसभा सत्र महिलाओं के नाम कर दिया, यानि योगी चाहते हैं आरक्षण में लीडरशीप आगे आए, जिसका मतलब है कि पढ़ाई और नौकरी में जब आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात आएगी तो योगी खुलकर उसका समर्थन कर सकते हैं, मोदी सरकार ने जब सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया तो योगी ने कहा था ये फैसला निर्धन कल्याण और सामाजिक न्याय से भरा हुआ है, शुरू से ही योगी बाहुबलियों के खिलाफ रहे हैं, और निकाय चुनाव में भी वो आरक्षण की बात इसीलिए कर रहे हैं ताकि पिछड़े वर्गों की आवाज उठाने वाला कोई तो हो, वरना आज भी कई गांवों में प्रधान से लेकर चेयरमैन तक कई बाहुबली हैं, जो न जनता की सुनते हैं, न उनका काम करते हैं. इसीलिए योगी सरकार ने जब लिस्ट निकाली तो

शहरी निकाय की 762 सीटों में से मेयर की 4, नगरपालिका की 54 और नगर पंचायत की 147 सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित कर दीं, हालांकि इसकी एक सियासी वजह ये भी थी कि यूपी में 52 फीसदी ओबीसी वोटर्स हैं, जिनका प्रतिनिधित्व सरकार बढ़ाना चाहती है.

लेकिन कुछ लोग इसके खिलाफ हाईकोर्ट पहुंच गए, जहां जज साहब ने कहा, बिना आरक्षण तत्काल चुनाव करवाइए, आरक्षण देना ही है तो फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कीजिए, आयोग बनाइए, ट्रिपल टी का फॉर्मूला अपनाइए, फिर आरक्षण दीजिए. हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद योगी सबसे ज्यादा दुखी थे, लेकिन अखिलेश से लेकर मायावती तक ये कहने लगे कि योगी ने जानबूझकर कोर्ट में मजबूत पक्ष नहीं रखा, योगी सरकार आरक्षण विरोधी है, लेकिन जब इस फैसले के खिलाफ योगी सरकार खुद सुप्रीम कोर्ट पहुंची तो सवाल उठाने वाले सारे लोग सन्न हो गए, फिर सुप्रीम कोर्ट के जज साहब ने कहा
3 महीने के लिए निकाय चुनाव टाल दीजिए, पिछड़ा आयोग को रिपोर्ट सौंपने दीजिए, फिर चुनाव करवाइए, जिसके बाद सीएम योगी ने साफ-साफ ट्वीट कर लिखा आरक्षण के साथ ही निकाय चुनाव होगा. मतलब पिछड़ों को चुनाव में उनका हक मिलेगा.

हालांकि देश में बार-बार ये सवाल उठता है कि कि बाबा साहेब आंबेडकर ने सिर्फ दस साल के लिए आरक्षण दिया था तो फिर बार-बार इसे बढ़ाया क्यों जा रहा है, जब दलितों के मसीहा अंबडेकर ने इसे जन्मों जन्म तक लागू करने नहीं कहा तो फिर अभी के नेता क्या वोटबैंक के लिए इसके पीछे पड़े हैं, तो हर किसी का अपना-अपना फायदा है, हर राजनीतिक पार्टी वोट लेगी तभी सरकार बनाएगी ये लोकतंत्र की व्यवस्था है, लेकिन वोट के लिए देश के विकास को पीछे छोड़ दें, ऐसा मोदी-योगी से उम्मीद नहीं की जा सकती, बीते कुछ सालों से आरक्षण पर कोर्ट के फैसले से एक बात तो साफ लगती है कि बड़े-बड़े विद्वान जज भी आंख बंदकर आरक्षण की वही व्यवस्था चलाने के मूड में नहीं हैं, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी कई बार आरक्षण की समीक्षा की बात कर चुके हैं, जिसके आधार पर लोग आरक्षण खत्म होने का दावा करने लगे, लेकिन फिलहाल ऐसी कोई आशंका दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती. बाकी आप आरक्षण के पक्ष में हैं या खिलाफ ये तय आपको करना है, क्योंकि ऐसे मुद्दों पर बिना लोगों की राय के कोई फैसला नहीं हो सकता.