गदर फिल्म आई हिट हुई, अब गदर-2 आने वाली है. लेकिन जो कहानी आपने देखी, वो असली स्टोरी के सामने कुछ नहीं. जो दर्द असली वाले तारा सिंह ने सहा, उसके सामने गदर के सनी देओल का दर्द लेश मात्र है. असली तारा सिंह को दोबारा कभी सकीना मिली ही नहीं. वो ड्राइवर नहीं बल्कि एक सैनिक थे. पाकिस्तान तब भी इतना ही क्रूर था…उनकी आखिरी इच्छा तक पूरी नहीं की थी.
इस कहानी में इश्क, फरेब और धागों की तरह टूटते भरोसे हैं. जो बंटवारे का असली दुख समझाते हैं, भारत मां के छलनी हुए कलेजे का दर्द दिखाते हैं.

गदर में जिनका रोल सनी देओल ने निभाया है उनका असली नाम तारा सिंह नहीं बल्कि बूटा सिंह था. और वो ट्रक ड्राइवर नहीं एक सैनिक थे. सकीना का असली नाम जैनब था. बूटा सिंह की जिंदगी पर बनी इस फिल्म में कई बदलाव किये गये. जैसे बूटा सिंह को जैनब दोबारा कभी नहीं मिली. फिल्म में सनी देओल का बेटा दिखाया गया है लेकिन उनकी बेटी थी.

जैनब की कोई फोटो कभी सामने नहीं आई लेकिन बूटा सिंह भारतीय सेना में थे तो उनकी तस्वीर हमको मिली. जब भारत का बंटवारा 1947 में हुआ तो दंगे छिड़ गए. बूटा सिंह लॉर्ड माउंट बेटेन की ब्रिटिश आर्मी में हुआ करते थे लेकिन अब रिटायर होकर खेती कर रहे थे. एक दिन वो अपने खेत में काम कर रहे थे तभी एक लड़की चिल्लाती हुई आकर उनके कदमों में गिर जाती है. कुछ नौजवान उसका पीछा कर रहे थे. 58 साल के बूटा सिंह उस लड़की को उठाते हैं और 1500 रुपये देकर बचा लेते हैं. उस वक्त ये काफी बड़ी रकम थी. जिस लड़की को बूटा सिंह ने खरीदा था उसकी उम्र 17 साल थी और नाम था जैनब.
जो पहले ही अपनी जिंदगी में बहुत गम देख चुकी थी. बंटवारे में पाकिस्तान चले गए परिवार से वो बिछड़ गई थी. दुखों का पहाड़ सीने पर लिये जैनब को बूटा सिंह ने जो प्यार दिया उसने मानो उसे नई जिंदगी दे दी. क्योंकि बूटा सिंह कुंवारे थे उन्होंने कभी शादी नहीं की थी. तो दोनों ने शादी कर ली. कुछ ही दिन बाद दोनों को एक बेटी हुई जिसका नाम तनवीर रखा.
यहां तक बूटा सिंह की जिंदगी में सब ठीक चल रहा था, प्यार था, खुशियां थी लेकिन उनकी खुशियों को नजर लग गई. क्योंकि बूटा सिंह की जायदाद पर उनके परिवार वालों की नजर थी. तो उन्होंने जैनब की खबर रिफ्यूजी कैंप तक पहुंचा दी. दरअसल बंटवारे के बाद भारत और पाकिस्तान में रिफ्यूजी कैंप बनाए गए थे. जहां परिवारों से बिछड़े लोगों को उनके अपनों के पास भेजा जाता था. काफी मिन्नतों के बाद भी अधिकारी नहीं माने और जैनब को रिफ्यूजी कैंप ले गए. जहां वो 6 महीने तक रही. बूटा सिंह रोज उससे मिलने जाते थे और उम्मीद करते थे कि सब ठीक हो जाएगा.
लेकिन उधर पाकिस्तान में जैनब का परिवार मिल गया और उसे जबरन पाकिस्तान भेज दिया गया. अब बूटा सिंह पाकिस्तान जाना चाहते थे लेकिन इजाजत नहीं मिल रही थी. उन्होंने परेशान होकर अपने केश कटवा लिए और धर्म बदलकर मुसलमान हो गए. फिर भी पाकिस्तान हाई कमीशन ने वीजा नहीं दिया.
तो बूटा सिंह ने सरहद की दीवार तोड़ दी. और 5 साल की बेटी को लेकर अवैध तरीके से पाकिस्तान में घुस गए. वहां जाकर जैनब को ढूंढा. उसके परिवार से अपनी पत्नी को वापस पाने के लिए प्रार्थनाएं की, लेकिन उन्होंने बूटा सिंह को मारपीट कर पुलिस के हवाले कर दिया.
अदालत में बूटा सिंह ने कहा कि जैनब उसकी पत्नी है और ये तनवीर उन दोनों की बेटी है. अगर जैनब एक बार इनकार कर देगी तो वो मान जाएगा. खचाखच भरी कोर्ट में जैनब को बुलाया गया. तब तक उसकी शादी चचेरे भाई से परिवार ने करवा दी थी. उससे पूछा गया तो जैनब ने कहा हां ये मेरे पहले पति हैं और ये मेरी ही बेटी है. लेकिन जैनब ने बूटा सिंह के साथ जाने से इनकार कर दिया. और बेटी को भी नहीं लिया.
जैनब के इस व्यवहार से बूटा सिंह टूट गए. और 19 फरवरी 1957 को दाता गंगबख्श की मजार पर पूरी रात बैटकर रोते रहे. बेटी को नई जूतियां दिलवाई. रोते हुए उससे कहा कि वो अपनी मां से कभी नहीं मिल पाएगी. अपनी बेटी को गोद में लेकर बूटा सिंह लाहौर के शाहदरा रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के आगे कूद गए. लेकिन कुदरत का करिश्मा देखिए. बूटा सिंह मारे गए और बेटी को एक खरोंच भी नहीं आई. जिसे बाद में पाकिस्तान की एक बैरिस्टर ने गोद ले लिया. बूटा सिंह की आखिरी इच्छा थी कि उसे उस गांव में दफनाया जाये जहां जैनब के माता-पिता की कब्र थी. लेकिन उस गांव वालों ने बूटा सिंह को वहां दफनाने भी नहीं दिया.