Iqra Hasan ADM Santosh Bahadur Singh Controversy: सहारनपुर के एडीएम (प्रशासन) संतोष बहादुर सिंह पर सपा सांसद इकरा हसन ने अभद्रता का आरोप लगाया है. इकरा हसन का दावा है कि 1 जुलाई को वो और छुटमलपुर नगर पंचायत अध्यक्ष शमा परवीन एडीएम से मिलने गए गईं थी. वहां हमने अपनी बात रखी तो एडीएम ने हमारे साथ अभद्र भाषा का प्रयोग किया और कार्यालय से बाहर निकलने का कहा. एडीएम ने खुलेआम यह तक कह डाला कि "यह ऑफिस मेरा है, मैं जो चाहूं, कर सकता हूं. इसके बाद हमने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री, प्रमुख सचिव और मंडलायुक्त को दी है.
कमिश्नर साहब ने मामले की जांच के आदेश डीएम को दिए हैं. सहारनपुर के डीएम अब इस मामले की रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को सौपेंगे, पर उससे पहले एडीएम साहब से जब मीडिया चैनल्स ने पक्ष जानने की कोशिश की तो उन्होंने जो कहा वो इकरा के दावे से अलग था, दैनिक भास्कर एडीएम संतोष बहादुर के हवाले से लिखता है, ''1 जुलाई को मैं फील्ड में था तभी 3 बजे के आसपास एडीएम फाइनेंस ने मुझे व्यक्तिगत नंबर पर कॉल करके बताया गया कि सांसद कैराना यहां बैठी हैं. मैं फील्ड में था तो सूचना मिलते ही मैं तुरंत यहां आ गया. आते ही उन्होंने मेरे से पूछा कि आपने मेरा फोन नहीं उठाया तो मैंने कहा कि मैं मीटिंग में था फिर फील्ड में निकल गया, उस समय मेरा फोन वाइब्रेशन पर था. इसलिए मैं फोन नहीं उठा सका.''
उन्होंने नगर पंचायत छुटमलपुर और वहां के अध्यक्ष के मामले को उठाया तो मैंने बताया, ''यह व्यक्तिगत मामला है, आप लिखित शिकायत दीजिए. मैंने उन्हें चैंबर में सम्मानजनक तरीके से बुलाया और वहां बैठाया. जैसा उन्होंने आरोप लगाया कि 'गेट आउट, मेरे आफिस से निकल जाओ. मैं एक लोक सेवक हूं और मुझे अपने कर्तव्यों के बारे में पूरी तरह से पता है. ये आरोप निराधार हैं.''
एडीएम साहब ये भी कहते हैं कि उन्होंने दो दिन पहले भी मनमानी के आरोप लगाए थे. तब भी मैंने कहा था कोई शिकायत है तो लिखित में दीजिए, अब ये तो जांच के बाद ही पता चलेगा कि किसके आरोपों में कितना दम है, लेकिन फिलहाल डीएम साहब ने सभी अधिकारियों को ये जरूर कह दिया है कि जनप्रतिनिधियों के साथ विनम्रता से पेश आएं. डीएम मनीष बंसल का दावा है जांच के बाद जरूरी कार्रवाई की जाएगी, लेकिन उत्तर प्रदेश में अधिकारियों की मनमानी का ये पहला आरोप नहीं है, इससे पहले भी कई ऐसी ख़बरें सामने आई है, जिसके बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या अधिकारी जनप्रतिनिधि की भी नहीं सुन रहे हैं.
अधिकारी बनाम नेताओं का मामला इतना आगे बढ़ चुका है कि कुछ समय पहले सीएम योगी आदित्यनाथ को ये तक कहना पड़ा था कि सरकारी कार्यालय में जनप्रतिनिधि पत्राचार रजिस्टर रखा जाए, जिसमें जनप्रतिनिधियों से प्राप्त पत्रों का विवरण दर्ज किया जाए. साथ ही पत्र प्राप्त होते ही उसका जवाब भेजा जाए. साथ ही मामले के निस्तारण की स्थिति भी संबंधित जनप्रतिनिधि को अवगत कराई जाए. ताकि एक ही प्रकरण में बार-बार पत्राचार की आवश्यकता न पड़े.
हालांकि बावजूद इसके नेता बनाम अधिकारी का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा है, कुछ दिनों पहले एक बीजेपी विधायक ने बकायदा एसडीएम साहब को फोन कर ये तक कह दिया कि आकर ठीक कर दूंगा, हालांकि बाद में एसडीएम ने कहा मैं ओबीसी वर्ग से आता हूं, इसलिए उन्होंने ऐसा किया, मतलब जातिकार्ड इधर शुरू हो गया. लेकिन यहां गंभीर सवाल ये है कि अगर अधिकारी जनप्रतिनिधियों की भी नहीं सुनेंगे, उनके साथ ऐसा व्यवहार करेंगे तो फिर आम जनता की सुनवाई कौन करेगा. आप इस पूरे प्रकरण पर क्या कहेंगे.