मोदी-शाह के पास जब स्पीकर पद के लिए कई सारे विकल्प मौजूद थे, तो फिर ओम बिरला का नाम ही दूसरी बार उन्होंने क्यों फाइनल किया, बहुत बड़े-बड़े दिग्गज इस बात को समझ नहीं पा रहे हैं, जिस दिन स्पीकर पद के लिए नामांकन हुआ, उससे 24 घंटे पहले तक मोदी के नाम पर तीन बड़े सांसदों के नाम स्पीकर पद के लिए थे, जिनमें से तीनों ही बड़े दावेदार थे. फिर अचानक से ओम बिरला का नाम कैसे फाइनल हुआ, ख़बर है कि बीजेपी के कई सांसद इस बार नया स्पीकर चाहते थे, नए स्पीकर के लिए राधामोहन सिंह बड़े दावेदार थे.
बिहार के पूर्वी चंपारण सीट से सांसद बने राधामोहन सिंह छठी बार चुनाव जीते हैं. मोदी सरकार में दो बार मंत्री भी रह चुके हैं, बिहार में प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं. सरकार और संगठन दोनों का अनुभव है, इसलिए इस पद के बड़े दावेदार माने जा रहे थे. राधामोहन सिंह की एक खासियत ये भी है कि विपक्ष के कई बड़े नेता भी उनकी बात नहीं काटते.
राधामोहन के अलावा मोदी की टेबल पर जो दो सांसदों का नाम पहुंचा था वो था प्रोटेम स्पीकर के पद पर बैठे भर्तृहरि महताब का. अगर महताब स्पीकर बनाते तो ओडिशा में अलग संदेश जाता, क्योंकि महताब ओडिशा के ही रहने वाले हैं. इसके अलावा तीसरा नाम था डी पुरेंदेश्वरी का. अगऱ इन्हें स्पीकर की कुर्सी मिलती तो टीडीपी खुश हो जाती क्योंकि डी पुरेंदेश्वरी चंद्रबाबू नायडू की बहन हैं. हालांकि इन्हें कुर्सी मिलने का मतलब था सरकार पर संकट बरकरार होना है, क्योंकि स्पीकर की वजह से पहले वाजपेयी जी की सरकार भी गिर चुकी है.
इसीलिए जब मोदी जीत के तुरंत बाद आडवाणी से मिलने गए थे तो उन्होंने ये किस्सा भी सुनाया था. जिसके बाद मोदी ने तय किया था कि स्पीकर की कुर्सी पर एक ऐसे नेता को होना चाहिए, जो सदन को शानदार तरीके से चलाकर दिखाए, अनुभव होना न होना अलग बात है, विपक्ष की संख्या ज्यादा है तो इस बार हंगामा होने की आशंका भी ज्यादा है, इसलिए ओम बिरला जैसे नेता इस पद के परफेक्ट बैठते हैं.
राजस्थान से आने वाले ओम बिरला बूंदी से लगातार तीसरी बार सांसद बने हैं. पिछली बार जब स्पीकर बने तो खूब सवाल उठे, कई लोगों ने कहा अनुभव नहीं है. लेकिन ओम बिरला ने जिस तरह से सदन चलाया, उसकी तारीफ खूब हुई. इनके कार्यकाल में रिकॉर्ड काम हुआ, 222 विधेयक कानून बने, जो 15 सालों में ज्यादा है. इनके कार्यकाल में ही 370 हटा, तीन तलाक कानून बना, कई बड़े कानून को मंजूरी मिली. नई और पुरानी संसद दोनों में काम करने का अनुभव है, इनके कार्यकाल में नई संसद बनी.
अब इनके ही कार्यकाल में हो सकता है एक देश, एक कानून और एक देश, एक चुनाव जैसे बड़े कानून सदन में आएं और इस वक्त ओम बिरला की भूमिका बड़ी हो जाती है. क्योंकि स्पीकर का काम होता है शांति से सदन चलाना, ओम बिरला एक्शन लेने में देरी नहीं करते. अगर विपक्षी सांसद हंगामा करते हैं तो तुरंत उन्हें समझाते हैं कोई नहीं मानता तो मार्शल बुलाकर बाहर करवा देते हैं सदन से सस्पेंड करवा देते हैं.
यही अंदाज राज्यसभा के सभापति का भी है, इसलिए जनता का पैसा बर्बाद न हो और सदन शांति से चले, इसके लिए मोदी सरकार ने ओम बिरला पर भरोसा जताया है, जिनसे इस बार विपक्ष इसलिए चिढ़ रहा है क्योंकि स्पीकर के नाम पर उससे चर्चा नहीं हुई. राजनाथ सिंह ने फोन कर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और स्टालिन समेत विपक्ष के कई नेताओं से बात की. सहमति बनाने की कोशिश और आखिर में बिरला मोदी से मिलने पहुंचे तब ये तय हो गया कि ओम बिरला ही स्पीकर होंगे.
ओम बिरला के पिता ऑफिसर रहे हैं, पत्नी MBBS डॉक्टर हैं, बिटिया भी ऑफिसर है. 10 साल पहले भले ही ओम बिरला की कोई खास पहचान नहीं थी, लेकिन आज ओम बिरला की गिनती लोकसभा के उन अध्यक्षों में होती हैं, जो देर रात तक सदन चलाने से भी पीछे नहीं हटते. शायद यही वजह है कि मोदी ने अच्छे काम करने वाले मंत्रियों को जब रिपीट किया, जिन्होंने अच्छा नहीं किया उन्हें एग्जिट का रास्ता दिखाया, तो स्पीकर के पद पर बैठे ओम बिरला को भी दोबारा से बुला लिया.