नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को बड़ा बयान दिया है. उन्होंने जोर देकर कहा कि "भारत को भारत ही रहना चाहिए" और इसे किसी भी संदर्भ में अनुवादित या बदला नहीं जाना चाहिए. RSS से संबद्ध शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन 'ज्ञान सभा' में बोलते हुए मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा कि भारत केवल एक नाम नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र की "पहचान" है.
उन्होंने कहा, "भारत एक उचित संज्ञा है. इसका अनुवाद नहीं करना चाहिए. 'इंडिया जो भारत है,' यह सत्य है. लेकिन भारत, भारत है, और इसलिए, लिखते और बोलते समय हमें भारत को भारत के रूप में ही रखना चाहिए. भारत को भारत ही रहना चाहिए." भागवत ने जोर देकर कहा कि भारत को वैश्विक सम्मान उसकी मूल पहचान, यानी "भारतीयता" के कारण मिलता है.
उन्होंने चेतावनी दी कि उपलब्धियों के बावजूद अपनी पहचान खोने से वैश्विक मंच पर सम्मान और सुरक्षा की हानि हो सकती है. उन्होंने कहा, "भारत की पहचान का सम्मान इसलिए होता है क्योंकि यह भारत है. यदि आप अपनी पहचान खो देते हैं, चाहे आपके पास कितने ही गुण क्यों न हों, आपको इस दुनिया में कभी सम्मान या सुरक्षा नहीं मिलेगी. यह एक सामान्य नियम है."
भागवत ने भारत के ऐतिहासिक शांति और अहिंसा के प्रति समर्पण को रेखांकित किया और कहा कि देश ने कभी विस्तारवादी या शोषणकारी नीतियां नहीं अपनाईं. उन्होंने कहा, "विकसित भारत, विश्व गुरु भारत, युद्ध का कारण नहीं बनेगा... और कभी शोषण नहीं करेगा. हम मेक्सिको से साइबेरिया तक गए; हम पैदल चले, छोटी नावों में गए. हमने किसी की धरती पर आक्रमण नहीं किया या उसे नष्ट नहीं किया. हमने किसी का राज्य नहीं छीना. हमने सभी को सभ्यता सिखाई."
भारत की सभ्यतागत दर्शन की ओर इशारा करते हुए, उन्होंने कहा, "आप भारतीय ज्ञान की परंपरा को देखें. उस परंपरा का मूल उस सत्य में है... पूरे विश्व की एकता के सत्य में." शिक्षा पर, भागवत ने भारत की सांस्कृतिक नींव पर आधारित मूल्य-आधारित शिक्षा प्रणाली की वकालत की. उन्होंने शिक्षा को आत्मनिर्भरता और सामाजिक जिम्मेदारी को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा, "शिक्षा प्राप्त करने के पीछे एक छोटा सा इरादा यह है कि आप अपने जीवन में आत्मनिर्भर बन सकें और अपने परिवार को एकजुट रख सकें..."
राष्ट्रवादी विचारक महर्षि अरविंद का उल्लेख करते हुए, RSS प्रमुख ने सनातन धर्म के पुनरुत्थान को हिंदू राष्ट्र के विचार से जोड़ा. उन्होंने कहा, "योगी अरविंद ने कहा था कि सनातन धर्म का उदय होना ईश्वर की इच्छा है, और सनातन धर्म के उदय के लिए हिंदू राष्ट्र का उदय अनिवार्य है. ये उनके शब्द हैं, और हम देखते हैं कि आज की दुनिया को इस दृष्टिकोण की आवश्यकता है. इसलिए, हमें पहले यह समझना होगा कि भारत क्या है..."