नई दिल्ली: 26-11 हमले के मजलूमों को न्याय दिलाने के लिए भारतीय जांच एजेंसी NIA की टीम मुख्य आरोपी तहव्वुर राना को लेकर भारत आई. अमेरिका से भारत लाने के बाद उसे दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया. जहां NIA ने तहव्वुर की 20 दिन की रिमांड मांगी, लेकिन अदालत ने 18 दिन की रिमांड पर उसे जांच एजेंसी को सौंप दी. अब एनआईए पूछताछ कर आतंकी हमलों से जुड़े हर राज खोलने की कोशिश करेगी. अब जब तहव्वुर राणा भारत आ गया है और उसे कोर्ट के समक्ष पेश किया जा रहा है तो लोग यह जानना चाह रहे हैं कि आखिर राणा का केस कौन वकील लड़ रहे हैं और कौन से वकील सरकार और मजलूमों का पक्ष रख रहे हैं.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि तहव्वुर राणा का केस दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण के अधिवक्ता पीयूष सचदेवा लड़ेंगे. वे कोर्ट में तहव्वुर का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और उसके पक्ष में दलीलें पेश करेंगे. वहीं तहव्वुर राणा के खिलाफ केस लड़ने वाले वकील नरेंद्र मान है, जो सरकार और मजलूमों का पक्ष रखेंगे. भारत सरकार ने नरेंद्र मान को तहव्वुर राणा के खिलाफ केस लड़ने के लिए नियुक्त किया है. बता दें कि भारतीय न्याय व्यवस्था में एक आतंकी को भी अपना पक्ष रखने के लिए पूरा मौका दिया जाता है और जब वह साबित नहीं कर पाता है कि उसका गुनाहों से कोई वास्ता नहीं है, फिर जाकर उसे सजा सुनाई जाती है. यही कारण है कि मुंबई हमले के बाद जिंदा पकड़े गए एक आरोपी अजमल कसाब को फांसी देने में वर्षों लग गए थे.
कौन है पीयूष सचदेवा?
पीयूष सचदेवा एक भारतीय वकील हैं, जो दिल्ली में प्रैक्टिस करते हैं. वे दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) से जुड़े हैं और आपराधिक व हाई-प्रोफाइल मामलों में अपनी विशेषज्ञता के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने पुणे के ILS लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री हासिल की और लंदन के किंग्स कॉलेज से अंतरराष्ट्रीय व्यापार व वाणिज्यिक कानून में मास्टर डिग्री प्राप्त की. पीयूष अब 26/11 मुंबई आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा के बचाव में उसका पक्ष रखेंगे. DLSA ने उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी, क्योंकि भारतीय संविधान के तहत हर आरोपी को कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार है. सचदेवा ने कई जटिल मामलों में अपनी दमदार दलीलों के लिए पहचान बनाई है.
कौन है नरेंद्र मान?
तहव्वुर राणा मामले में नरेंद्र मान विशेष लोक अभियोजक (Special Public Prosecutor) के रूप में नियुक्त किए गए हैं. नरेंद्र मान एक अनुभवी भारतीय वकील हैं, जिनका करियर तीन दशकों से अधिक का है. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर से एलएलबी (1987-1990) और किरोड़ी मल कॉलेज से बी.कॉम (1984-1987) की डिग्री हासिल की. 1990 में दिल्ली बार काउंसिल में पंजीकरण के बाद से वे सक्रिय रूप से वकालत कर रहे हैं. वे आपराधिक कानून के विशेषज्ञ हैं और कई हाई-प्रोफाइल मामलों में काम कर चुके हैं.
उन्होंने 2011 से 2019 तक केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में विशेष लोक अभियोजक के रूप में काम किया. उनके प्रमुख मामलों में 2018 का स्टाफ सिलेक्शन कमीशन (SSC) पेपर लीक कांड, जैन डायरी हवाला केस, JMM सांसदों का मामला, बोफोर्स केस, और पूर्व दूरसंचार मंत्री सुखराम से जुड़े मामले शामिल हैं. इस मामले में उन्हें राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) का प्रतिनिधित्व करने के लिए विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया गया है. उनकी नियुक्ति तीन साल के लिए या मुकदमे के पूरा होने तक के लिए है.
वकीलों को कितनी मिलेगी फीस?
सरकारी वकील को आतंकियों के केस लड़ने के लिए दी जाने वाली राशि के बारे में कोई निश्चित और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ा नहीं है, क्योंकि यह विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है. भारत में सरकारी वकील, जैसे विशेष लोक अभियोजक (Special Public Prosecutor) या पब्लिक प्रॉसीक्यूटर, को सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है, और उनकी फीस या वेतन केस की जटिलता, कोर्ट के स्तर (जैसे जिला, हाई कोर्ट, या सुप्रीम कोर्ट), और नीतिगत नियमों पर आधारित होती है.
आम तौर पर, आतंकी मामलों जैसे हाई-प्रोफाइल केस में विशेष लोक अभियोजकों को सरकार द्वारा मानदेय (honorarium) या प्रति केस आधार पर भुगतान किया जाता है. यह राशि केस की गंभीरता, अवधि, और वकील की विशेषज्ञता के आधार पर भिन्न हो सकती है. कुछ मामलों में, जैसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) से जुड़े केस, वकील को प्रति सुनवाई या मासिक आधार पर भुगतान हो सकता है.
उदाहरण के लिए, सामान्य सरकारी वकीलों के लिए सातवें वेतन आयोग के अनुसार सैलरी 25,000 से 60,000 रुपये प्रति माह के बीच हो सकती है, लेकिन विशेष लोक अभियोजकों को हाई-प्रोफाइल केस के लिए इससे अधिक मानदेय मिल सकता है. हालांकि, आतंकी मामलों के लिए विशिष्ट राशि का खुलासा आमतौर पर नहीं किया जाता, क्योंकि यह गोपनीय या नीतिगत मामला हो सकता है.