क्या हिंदुस्तान की धरती पर स्वतंत्रता सेनानियों की प्रतिमा लगाने से पहले इस देश के कुछ मुसलमानों से परमिशन लेना होगा, जिन्हें वक्फ बोर्ड का खेल समझ नहीं आता, वो ये रिपोर्ट देखकर समझ लें कैसे केजरीवाल के शहर में रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति लगाने के लिए एक पक्ष को हाईकोर्ट जाना पड़ा, यहां तक कि जज साहब ने भी याचिका देखी तो गुस्से से लाल हो उठे, क्योंकि याचिका में लिखा था, "दिल्ली के सदर बाजार क्षेत्र में स्थित शाही ईदगाह परिसर का इस्तेमाल नमाज पढ़ने के लिए होता है. लेकिन डीडीए अब इस जमीन पर रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति लगाने के बहाने कब्जा करना चाहता है. ये जमीन वक्फ बोर्ड की है. ईदगाह परिसर के पार्क में मूर्ति स्थापित होने से कानून व्यवस्था की स्थिति पैदा हो सकती है."
जिसे पढ़कर जज साहब भी एक बार को चौंक गए कि स्वतंत्रता सेनानी की मूर्ति लगाने से कानून व्यवस्था कैसे खराब हो सकती है. जज साहब बकायदा ये तक कहते हैं जमीन किसी की भी हो, अगर मूर्ति स्वतंत्रता सेनानी की लगाई जानी है तो फिर आपको आगे आकर इसकी पहल करनी चाहिए थी, लेकिन मुस्लिम पक्ष के वकील नहीं मानते, जिसके बाद, दिल्ली हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ये साफ आदेश देती है कि उस पार्क में रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा लगाई जाए. इस तरह की याचिका लगाने वाली मस्जिद कमेटी माफी मांगे. सांप्रदायिक राजनीति न करे.
हैरानी की बात ये थी कि हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद भी मस्जिद कमेटी के लोग नहीं सुधरते. बल्कि 26 सितंबर की शाम करीब 4 बजे व्हाट्सऐप ग्रुप पर एक मैसेज वायरल होता है, लोगों को कहा जाता है कि शाही ईदगाह पर पहुंचो. सैकड़ों की भीड़ पहुंचने की ख़बर जब पुलिस को लगती है तो दिल्ली पुलिस के बड़े-बड़े अधिकारी मोर्चा संभालने सड़क पर उतर पड़ते हैं. आप साफ देख सकते हैं दिल्ली की शाही ईदगाह इलाके में कैसे सैकड़ों की संख्या जवान तैनात हैं, किसी के हाथ में डंडा, तो किसी के सिर पर हेलमेट और स्पेशल जैकेट है. पूरी की पूरी रैपिड एक्शन फोर्स मुस्तैद नजर आ रही है, साथ में खड़े अधिकारी उन्हें समझा भी रहे हैं कि अगर कोई हालात बिगाड़ने की कोशिश करे तो उसके साथ क्या करना है.
हालांकि पुलिस के सामने चुनौती ये भी है कि कहीं दूसरा शाहीन बाग न खड़ा हो जाए, क्योंकि दिल्ली में जब भी ऐसी भीड़ इकट्ठी होती है तो बड़े-बड़े अधिकारियों को शाहीन बाग की वो तस्वीर याद आ जाती है, जहां से आंदोलन हटाने में प्रशासन के पसीने छूट गए थे, लेकिन जरा सोचिए अगर ये शाही ईदगाह यूपी में होता तो क्या कोई इस तरह की हिमाकत कर पाता, क्या केजरीवाल खुलकर वक्फ बोर्ड का साथ देते हैं, इसीलिए कुछ लोगों ने मान लिया कि स्वतंत्रता सेनानी का अपमान करके भी बच जाएंगे.
लेकिन क्या ये लोग ये भूल गए कि केजरीवाल तो खुद को भगत सिंह भी बताते हैं. आखिर हर बात में राजनीतिक चश्मा घुसाने वाले लोगों को ये बात कब समझ आएगी कि जिन लोगों ने हमें आजादी दिलाई, हमें उनका सम्मान करना होगा, क्या इस देश के किसी बोर्ड ने मौलाना अबुल कलाम आजाद या एपीजे अब्दुल कलाम जैसे महान हस्ती की प्रतिमा लगाने का कोई विरोध किया, फिर एक मस्जिद कमेटी ने इस तरीके का बांटने वाला विरोध क्यों किया, क्या उसे इसकी सजा माफी से भी बड़ी नहीं मिलनी चाहिए.