यूपी चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 33 सीटें जीती तो हाईकमान हैरान हो गया और चुनावी नतीजों के ठीक दो दिन बाद योगी को सीधा दिल्ली बुला लिया है. कई पूर्व सांसदों ने पार्टी के अंदर भीतरघात की आशंका जताई है. उनका कहना है कि यूपी में बीजेपी का ये हाल न होता, अगर पार्टी के अंदर ही कुछ लोग भीतरघात न करते तो वो विभीषण कौन है और उसे क्या सजा मिलने वाली है ये हाईकमान को देखना होगा. लेकिन योगी को जब दिल्ली बुलाए गए हैं तो चार तरह की संभावनाएं दिखती हैं.
ऐसा माना जा रहा है कि पार्टी इस हार के बाद कई बड़े बदलाव करने जा रही है, क्योंकि एक तरफ 80 में 80 सीटों का सपना बड़े नेता देख रहे थे तो दूसरी तरफ सिर्फ 33 सीटें जीतना ये बताता है कि कहीं तो चूक हुई है. क्या स्थानीय नेताओं ने ठीक से काम नहीं किया. या फिर किसी अपने ने ही दूसरी पार्टी के नेता को जीताने में मदद की, इन सारे सवालों का जवाब पार्टी को ढूंढना है, हो सकता है बडड़े-ब़ड़े नेता यूपी में भी बैठके करें और फिर एक फाइनल निष्कर्ष पर पहुंचे, क्योंकि ऐसी ख़ृबरें हैं कि अगले 40 दिनों में यानि 15 जुलाई तक यूपी में बड़े सियासी बदलाव हो सकते हैं.
कई जिला और महानगर अध्यक्ष पर कार्रवाई हो सकती है. अयोध्या जैसी जगह पर हार के बाद मोदी-शाह नड्डा और योगी समेत बीजेपी के कई बड़े नेता दुखी हैं, वो खुद इसकी वजह तलाशने में जुटे हैं. कई लोग ये कह रहे हैं कि टिकट बंटवारे में गलती की वजह से ऐसा हुआ. ऐसे में योगी और नड्डा की मीटिंग में इस बात पर भी चर्चा हो सकती है कि टिकट बंटवारे में किसकी ज्यादा चली थी, केन्द्रीय नेतृत्व ने अपनी मर्जी से उम्मीदवार उतारे थे या फिर क्षेत्रीय नेतृत्व की सलाह ली गई थी. सबसे बड़ा सवाल ये भी है कि जिन्हें टिकट मिला था क्या क्षेत्र में उनके प्रति नाराजगी ज्यादा तो नहीं थी.
क्योंकि एक दौर ये भी था जब मोदी के नाम पर कोई भी प्रत्याशी चुनाव जीत जा रहा था. 2014 और 2019 के चुनाव में कुछ ऐसा ही देखने को मिला. लेकिन 2024 के चुनाव में सारे समीकऱण और आंकड़े बदल गए. अब सवाल उठता है कि चूक कहां हुई है. बीजेपी इस बात की समीक्षा जल्दी से जल्दी करना चाहती है. चूंकि शपथग्रहण की तैयारियां अभी जोरों पर है और उसके ठीक बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को विदेश दौरे पर जाना है, तो वहां से लौटने के बाद हो सकता है मोदी, नड्डा, शाह और योगी की एक बड़ी मीटिंग रखी जाए.
मीटिंग में इस बात पर चर्चा हो कि सारी योजनाएं चलाने और सबकुछ बढ़िया करने के बाद भी हार कैसे मिली. जिन सीटों पर जीत की उम्मीद ज्यादा थी उन सीटों पर हार किस वजह से मिली, ये पार्टी के कई बड़े नेता भी नहीं समझ पा रहे हैं.बड़ा सवाल ये है कि अगर जनता ने फ्री और जाति के मुद्दे पर वोट किया तो फिर दिल्ली में बजेपी 7 सीटें कैसे जीत गई. अगर जाति हावी था तो फिर बिहार जैसा जातिवादी प्रदेश में एनडीए को इतनी सीटें कैसे मिल गई.
दक्षिण में बीजेपी को शानदार प्रदर्शन की उम्मीद थी और वहां उम्मीद से थोड़ा कम रहा, लेकिन अच्छा ही माना जा रहा है. फिर जिस बीजेपी को नॉर्थ इंडिया की पार्टी कहा जाता था, वो नॉर्थ इंडिया में ऐसे कैसे मात खा गई. ये सवाल बीजेपी के हर उस नेता को खाए जा रहा है, जिसे उम्मीद थी कि हम इस बार 400 पार पहुंच जाएंगे.