नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं, लेकिन अब भी बीजेपी कहीं ना कहीं इस सोच में पड़ी हुई हैं कि आखिर जो बीजेपी 400 का नारा दे रही थी वह 240 पर ही कैसे अटक गई. ज्ञात रहे कि अल्पमत की सरकार की अपनी बंदिशें है और कभी-कभी समझौते भी करने पड़ते हैं. लेकिन नरेंद्र मोदी ने कभी भी अल्पमत और समझौते वाली सरकार का नेतृत्व नहीं किया है. जब वह गुजरात में थे तब भी नहीं और जब वह दिल्ली आए तब भी नहीं. चुनाव नतीजे को गौर से देखने पर यह समझ आता है कि बीजेपी को 2 राज्यों में सबसे बड़ा नुकसान हुआ है पहला राज्य है उत्तर प्रदेश और दूसरा राज्य है महाराष्ट्र, जहां बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी है.
दोनों राज्यों को मिलाकर कुल 128 लोकसभा की सीटें हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इन दोनों ही राज्यों में सबसे बड़ा नुकसान हुआ है. आखिर जो बीजेपी और उसके गठबंधन 2019 में महाराष्ट्र की 48 में से 42 और यूपी की 80 में से 64 जीत लेता है, वो बीजेपी गठबंधन दोनों राज्यों की कुल 128 सीटों में से 53 पर ही कैसे अटक गई. 2019 में बीजेपी केवल अपने दम पर इन दोनों राज्यों में 85 सीट जीतकर आई थी, जबकि 2024 में ये संख्या घटकर 42 रह गई है.
यानी कि इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी को आधे से ज्यादा सीटों का नुकसान हो गया. यहां सवाल उठता है कि जिन दो राज्यों में बीजेपी का परचम लहराया करता था आखिर वहां कौन खेल कर गया? या फिर कुछ ऐसा हुआ जिसके जिम्मेदार खुद बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व और दिल्ली में बैठ बड़े नेता हैं? इस पूरी कहानी के जड़ में जाने के लिए आपको इन दोनों ही राज्यों के जातीय समीकरण पर जाना पड़ेगा.
महाराष्ट्र में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति मिलाकर कुल 20% आबादी है. इसके अलावा महाराष्ट्र में करीब 2% मुस्लिम पापुलेशन भी है. उत्तर प्रदेश में दलितों की कुल आबादी 20 से 21% के बीच है. वहीं मुस्लिम आबादी 20% के आसपास है. विपक्षी पार्टियों ने सारा खेल इसी दलित और मुस्लिम वोट बैंक के बीच किया है. दलितों के बीच विपक्षी गठबंधन ने जो नॉरेटिव फैलाया वो नॉरेटिव यह था कि अगर नरेंद्र मोदी आ गए तो संविधान खत्म हो जाएगा, आपका आरक्षण छीन लिया जाएगा और आपको दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया जाएगा.
साथ ही विपक्षी गठबंधन ने गरीब जनता को यह बताया कि वह सत्ता में आते हैं तो हर महिला को 1 लाख देंगे और हर घर सरकारी नौकरी देंगे. यानी कि महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक दलित और मुसलमान के बीच कांग्रेस गठबंधन ने एक तरह का डर का माहौल फैला दिया कि बीजेपी आती है तो उनके सारे अधिकार छीन लिए जाएंगे.
इन चुनाव के नतीजे को जब गौर से देखेंगे तो यह भी पता लगता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बीजेपी को वोट कम मिले हैं, जबकि विपक्ष की गठबंधन ने अच्छा खासा वोट ग्रामीण इलाकों से बटोरे हैं, तो आखिर इसका कारण क्या है?
सच यह है कि ग्रामीण इलाकों में या निचले तबके तक जाने के लिए भाजपा के पास आज भी कार्यकर्ताओं का अभाव है. ग्रामीण इलाकों में गरीबों के बीच बहुत अंदरूनी इलाकों में आज भी बीजेपी आरएसएस यानी कि संघ के भरोसे है. महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के सुदूर इलाकों में इस बार संघ के कार्यकर्ता जो चुनाव के समय घरों से निकलकर बीजेपी के लिए नॉरेटिव बनाते थे, वह कार्यकर्ता इस बार वह काम बीजेपी के लिए नहीं करते नजर आए.
बता दें कि इन दोनों ही राज्यों के पिछले चुनावों में संघ का भरपूर सहयोग मिला था. 2014 की जीत हो या 2019 की जीत या फिर 2017 यूपी का विधानसभा चुनाव सभी में संघ के कार्यकर्ताओं ने बीजेपी की मदद जमीन पर की थी. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में संघ के कार्यकर्ता जमीं पर नहीं थे. इसी वजह से कांग्रेस नैरेटिव बनाने में सफल रही और इससे बीजेपी को भारी नुकसान हो गया.