धरती पर पहली बार ऐसा मेला जहां एक साथ इतनी भारी संख्या में गंगा मां के भक्त. मानव इतिहास का सबसे बड़ा जमावड़ा. धरती पर जब से आया इंसान तब से लेकर अब तक का सबसे विशाल जनसैलाब. महाकुंभ में बना एक रिकॉर्ड का गवाह जिसको तोड़ न पाएगा धरती का कोई दूसरा इंसान. उत्तराखंड की आबादी करीब एक करोड़ है. दिल्ली में लगभग इतनी ही पब्लिक रहती है. इससे ज्यादा लोगों ने महाकुंभ के पहले दिन स्नान किया.
आंकड़ा सामने आया 1 करोड़ 65 लाख का. मकर संक्रांति के दिन करीब साढ़े 3 करोड़ लोगों ने आस्था की डूबकी लगाई, जो लगभग कनाडा जैसे देश की आबादी के बराबर है. मौनी अमावस्या वाले दिन करीब 10-11 करोड़ लोग पहुंचे, जो कि महाराष्ट्र और बिहार की आबादी से करीब 1-2 करोड़ कम है. अब जरा इन राज्यों का क्षेत्रफल देखिए और महाकुंभ में जहां इतनी भीड़ जमा हुई वहां का क्षेत्रफल देखिए फिर आपको कुछ चौंकाने वाले तथ्य बताते हैं.
भारत का एक राज्य है महाराष्ट्र, जहां का क्षेत्रफल है 3 लाख 7 हजार वर्ग किलोमीटर है. बिहार, जहां का क्षेत्रफल है 94 हजार वर्ग किलोमीटर, जबकि चंडीगढ़ जैसे छोटे शहर को देख लीजिए, जहां की आबादी सिर्फ 12 लाख है. वहां का क्षेत्रफल है 114 वर्ग किलोमीटर, लेकिन महाकुंभ में जहां मेला लगा है, वहां का क्षेत्रफल है 4 हजार हेक्टेयर यानि 40 वर्ग किलोमीटर और वहां रोजाना करीब 1 करोड़ लोग आ-जा रहे हैं, रह रहे हैं. जिनकी गिनती AI और कैमरे के जरिए खुद IPS अमित कुमार कंट्रोल रूम में बैठकर कर रहे हैं. प्रशासन तीन तरीके से भीड़ की गिनती कर रहा है.
प्रशासन को इतनी मजबूत तकनीक दी गई थी कि अगर एक पार्किंग में 2 हजार गाड़ियों की जगह है और वहां 1800 गाड़ियां ही खड़ी हैं, तो तुरंत अलार्म बज जाएगा. प्रशासन उस ओर गाड़ियां भेज देगा, आर्टिफिशियल इटेलिजेंस वाले 270 कैमरों और करीब 2700 से ज्यादा सीसीटीवी से प्रशासन पूरे मेला एरिए की निगरानी कर रहा था. इन्हीं वीडियोज के आधार पर भीड़ कभी इधर तो कभी उधर डायवर्ट की जा रही थी, लेकिन बात तब बिगड़ी जब संगम नोज पर भीड़ बढ़ी. जिस जगह भगदड़ मची, वो संगम नोज एरिया 4 फुटबॉल मैदान के बराबर है.
अब 4 फुटबॉल मैदान में 4-5 करोड़ लोगों का होना, कितनी बड़ी बात है घर बैठे अंदाजा लगाकर भी टेंशन बढ़ जाएगी. क्योंकि 10-11 करोड़ की जो भीड़ कही जा रही है, उसमें महाकुंभ मेला क्षेत्र में मौजूद साधू-संत से लेकर तमाम वो लोग हैं, जो वहां कल्पवास के लिए पहुंचे हैं. जब भगदड़ मची, तब सारे लोग उस जगह मौजूद नहीं थी, प्रशासन की ओर से तैयारी ऐसी की गई थी कि अगर उसे फॉलो किया जाता तो शायद ये हादसा टल सकता था, लोगों की जानें बचाई जा सकती थी. क्योंकि 24 घंटे पहले से ही प्रशासन इसकी आशंका जताने लगा था.
फिर भी कुछ लोग ये पूछ रहे हैं कि अगर पहले से भगदड़ का खतरा महसूस हो रहा था तो मेले को सेना के हवाले क्यों नहीं किया गया. कई लोग ये लिख रहे हैं कि अगर आप वीआईपी हैं तो सुरक्षित हैं और अगर आम आदमी हैं तो मौत की कतार में पहले नंबर पर खड़े हैं. लेकिन इन बातों में सियासत भी है. अगर राजनीतिक चश्मे को उतारकर देखें तो आपको लगेगा कि सरकार की ओर से इंतजाम पर्याप्त थे.
प्रशासन की ओर से कोई चूक जरूर हुई है. अफवाह फैलाने वाला कौन है, उसकी तलाश योगी सरकार ने शुरू करवा दी है. एक-एक वीडियो को बड़े ही गौर से देखा जा रहा है. अगर इसके पीछे किसी का भी हाथ मिला, चाहे वो कोई भी हो, तो उसका अंजाम क्या होगा, आप अंदाजा लगा लीजिए. अलग-अलग राज्यों के उदाहरण आपको इसलिए दिए ताकि आप समझ सकें कि 25 करोड़ आबादी वाले उत्तर प्रदेश के एक छोटे जगह में में कई राज्यों और कई देशों की आबादी के बराबर लोग पहुंचे हैं, जिन्हें संभालना एक बड़ी चुनौती है.