नई दिल्ली: पिछले दिनों से एक जज साहब लगातार चर्चाओं में बने हुए हैं, यहां हम बात कर रहे हैं जस्टिस यशवंत वर्मा की, जिनके घर से करोड़ों रुपए के जले हुए नोट मिले थे, इन्हीं जज साहब पर संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लगातार घमासान मचा हुआ है. महाभियोग से लेकर कानूनी एक्शन तक की मांग इनके खिलाफ की जा रही है. तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा पर महाभियोग की सिफारिश की थी, जिसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट में पूर्व सीजेआई की सिफारिश को चुनौती देने वाली याचिका दायर की जा चुकी है और इस पर सुनवाई भी शुरू हो गई है, इस याचिका पर उनका पक्ष रख रहे हैं देश के बड़े लेकिन विवादित वकीलों में गिने जाने वाले कपिल सिब्बल.
इनकी मांग है कि महाभियोग संसद की विशेष प्रक्रिया है और सीजेआई द्वारा इसकी सिफारिश करना असंवैधानिक है. इसलिए सिफरिश को रद्द कर दिया जाए. लेकिन कोर्ट रुम में हुई सुनवाई के दौरान जस्टिस दत्ता ने सिब्बल साहब को ऐसी फटकार लगाई कि बेचारे बगलें झांकने लगे. चलिए आपको पहले बताते हैं कि कोर्टरूम के अंदर क्या-क्या हुआ? कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट को तर्क दिया कि इन-हाउस जांच केवल एक तथ्य-परख तंत्र है, इसका कोई बाध्यकारी प्रभाव भी नहीं होता, ये साक्ष्य अधिनियम का पालन भी नहीं करता है. इस दौरान सिब्बल ने अनुच्छेद 124 और जजेज एक्ट 1968 का जिक्र करते हुए दावा ठोका कि ये मिलकर न्यायाधीशों को हटाने की संवैधानिक प्रक्रिया तय करते हैं.
सिब्बल ने कहा कि जस्टिस वर्मा इन-हाउस प्रक्रिया को प्रशासनिक उपाय के रूप में स्वीकार करते हैं और CJI की प्रशासनिक शक्ति जैसे न्यायिक कार्य आवंटन रोकने को चुनौती नहीं दे रहे. बल्कि हमारी आपत्ति तो बस इस प्रक्रिया को आधार बनाकर महाभियोग शुरू करने पर है. जस्टिस दत्ता कहते हैं सुप्रीम कोर्ट के तीन फैसलों ने इन-हाउस प्रक्रिया को मान्यता दी है, तो इसे क्यों शामिल नहीं किया जा सकता. CJI की सिफारिश केवल एक सुझाव है, तो इसमें क्या गलत है?
सिब्बल कहते हैं जब सिफारिश हटाने की हो तो यह संसद के विशेषाधिकार में हस्तक्षेप करती है. जस्टिस वर्मा को उचित सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया और बिना ठोस सबूत जैसे- नकदी का स्रोत या मात्रा को देखे बिना निष्कर्ष निकाले गए. कपिल सिब्बल ने फिर कहा- किसी इन-हाउस जांच प्रक्रिया के आधार पर न्यायाधीश को हटाने की कार्यवाही शुरू करना एक खतरनाक मिसाल कायम करेगा, क्योंकि न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया केवल संविधान के अनुच्छेद 124 और जजेज (इन्क्वायरी) एक्ट के तहत ही संभव है.
जस्टिस दीपांकर दत्ता भड़क जाते हैं और पूछते हैं, इन-हाउस प्रक्रिया, जिसे तीन पुराने फैसलों में मान्यता दी गई है और जो जस्टिस कृष्ण अय्यर के सिद्धांतों पर आधारित है, क्या उसे पूरी तरह नजरअंदाज किया जा सकता है? और यदि अदालत सिब्बल की बात से सहमत हो, तो फिर वह क्या राहत दे सकती है?
जस्टिस दीपांकर दत्ता ने आगे कहा कि CJI कोई पोस्ट ऑफिस नहीं है. CJI की राष्ट्र के प्रति भी जिम्मेदारी बनती है. अगर CJI के पास ऐसा मटेरियल उपलब्ध है, जिनके आधार पर उन्हें जज का कदाचार लगता है तो वो निश्चित तौर पर पीएम और राष्ट्रपति को सिफारिश भेज सकते हैं. जब इस मामले में सुनवाई हुई तो जस्टिस दत्ता ने सुप्रीम कोर्ट को कानूनी पढ़ाई पढाने की कोशिश करने वाले सिब्बल साहब की जमकर क्लास तो लगा डाली, लेकिन फैसला अपने पास सुरक्षित रख लिया. इसके अलावा कोर्ट ने सिब्बल से समिति की रिपोर्ट और एक पेज का नोट जमा करने को कहा, जिसमें मुख्य दलीलें हों.