नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को कोलकाता की सड़कों पर उतरकर विशाल रैली का नेतृत्व किया. यह रैली मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के खिलाफ थी. तृणमूल कांग्रेस (जिसकी वे अध्यक्ष हैं) ने आरोप लगाया है कि यह संशोधन अभियान बीजेपी-नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग की मिलीभगत से 'मौन, अदृश्य धांधली' है.
ममता बनर्जी अपने भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी के साथ शहर के केंद्र से गुजरीं. 3.8 किमी लंबा मार्च रेड रोड पर बीआर अंबेडकर की प्रतिमा से शुरू होकर जोरासांको ठाकुर बाड़ी (रवींद्रनाथ टैगोर का पैतृक निवास) पर समाप्त होना था. मार्ग पर टीएमसी कार्यकर्ता और समर्थक पार्टी के झंडे लहराते, नारे लगाते और SIR प्रक्रिया की निंदा करने वाले चटक प्लेकार्ड लिए हुए थे.
अपनी परिचित सफेद सूती साड़ी और चप्पलों में मुख्यमंत्री जुलूस के आगे चल रही थीं, बीच-बीच में रुककर बालकनियों से झांकते या सड़क किनारे खड़े लोगों का अभिवादन करतीं. अभिषेक बनर्जी पीछे चल रहे थे, उत्साही भीड़ की ओर हाथ हिलाते हुए, वरिष्ठ मंत्रियों और पार्टी पदाधिकारियों के साथ. तृणमूल कांग्रेस ने दावा किया कि एनआरसी और SIR को लेकर डर से बंगाल में अब तक तीन मौतें हो चुकी हैं.
पिछले सप्ताह 57 वर्षीय और 60 वर्षीय दो व्यक्ति ने कथित तौर पर आत्महत्या की, जबकि कुछ दिन पहले 60 वर्षीय महिला की SIR तनाव से दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. बीजेपी ने तीखा पलटवार किया. पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने मंगलवार के मार्च को “जमात की रैली” बताया और कहा कि यह भारतीय संविधान की भावना के खिलाफ है.
पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य ने कि ममता जी को कुछ कहना है तो सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खटखटाएं. बंगाल में पूर्ण अराजकता और कानून-व्यवस्था का पूर्ण अभाव है. उन्होंने आगे आरोप लगाया कि राज्य में जनसांख्यिकीय परिवर्तन हो रहा है और ममता बनर्जी रोहिंग्या को राज्य में बुला रही हैं... क्या जनता चाहती है कि रोहिंग्या मतदाता सूची में जुड़ें?
यह विरोध प्रदर्शन तब हुआ जब SIR अभियान का दूसरा चरण 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शुरू हुआ, जिसमें पश्चिम बंगाल भी शामिल है. SIR मतदाता सूची का गहन, स्थानीय स्तर पर सत्यापन है, जिसका उद्देश्य डुप्लिकेट, मृत, प्रवासी या अवैध मतदाताओं को हटाना है. आखिरी बार ऐसा अभियान दो दशक पहले हुआ था. हालांकि, विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि यह प्रक्रिया चुनिंदा तरीके से उन हाशिए के समुदायों के नाम हटाने के लिए इस्तेमाल हो रही है जो पारंपरिक रूप से उनका समर्थन करते हैं.
बिहार में SIR के पहले चरण में 68 लाख से अधिक नाम हटाए गए, जिससे व्यापक विवाद हुआ. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जिसने कुछ संशोधनों के साथ अभियान जारी रखने की अनुमति दी. जैसे-जैसे अभियान अधिक राज्यों में फैलेगा, राजनीतिक विवाद गहराने की संभावना है, और तृणमूल कांग्रेस ने अब बंगाल में इसे सड़कों पर उतार दिया है.