ना बेटा रहा, न बहू...वीरता का हो गया बंटवारा!.. शहीद अंशुमान के माता-पिता ने बयां किया दर्द

Global Bharat 12 Jul 2024 01:46: PM 3 Mins
ना बेटा रहा, न बहू...वीरता का हो गया बंटवारा!.. शहीद अंशुमान के माता-पिता ने बयां किया दर्द

अभिषेक शांडिल्य

शहादत का बंटवारा होता हमने पहली बार देखा है. शहीद अंशुमान के माता-पिता और उनकी पत्नी के बीच ऐसा क्या हुआ कि अंशुमान को मरणोपरांत मिलने वाला किर्ती चक्र का बंटवारा भी हो गया. सरकार की तरफ से मिली राशि पर घर में बवाल हो गया है. अंशुमान किसके थे? पत्नी स्मृति के या अपने मां-बाप के? ऐसा सवाल क्यों पूछ रहा हूं? क्योंकि ये कहानी शायद सुनकर आप वहीं बैठ जाएं. कुछ दिनों पहले दिल्ली में द्रौपदी मुर्मू ने कैप्टन शहीद की पत्नी और मां को किर्ती चक्र का पुरस्कार थमाया.

ये पुरस्कार शांति स्थापित करने के लिए देश का दूसरा सर्वोच्च पुरस्कार है. ये तस्वीरें देख कर देश की जनता भावुक हो गई. वहां बैठे हर नेता के आंखों में आंसू आ गए. अंशुमान की मां के हाथ कांप रहे थे, पत्नि स्मृति की आंखों में आंसू थे, लेकिन जब पुरस्कार मिला, तो मीडिया में बोलने का मौका मिला, वहीं परिवार की कहानी की वो फूट पता चली जो हर किसी को झकझोर देगी.

देवरिया के रहने वाले अंशुमान सेना में कैप्टन थे. उन्होंने अपने साथियों को बचाने की वजह से अपनी जान दांव पर लगा दी. शादी के तीन महीने बाद अंशुमान शहीद हो जाते हैं. ये घटना बेहद भावुक कर देने वाली थी. अंशुमान की प्यार की कहानी, उनके संघर्ष की कहानी सुनते ही हर कोई रो पड़ा था. शहादत को हमारे देश में गर्व से लिया जाता है, लेकिन परिवार शहादत की राशि और पुरस्कार को लेकर बंट जाएगा इसकी कल्पना नहीं थी.

5 जुलाई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अंशुमान की पत्नी स्मृति को पुरस्कार देती हैं. कंधे पर हाथ रखती है. उनकी मां वहां मौजूद होती है. नियम के मुताबिक अगर शादी शुदा सैनिक या कोई सेना का अधिकारी शहीद होता है तो उसके सबसे करीबी को पुरस्कार या राशि दी जाती है और नियम सबसे करीबी में मां-बाप को नहीं पत्नी को मानता है. उसके बाद परिवार ने रक्षा मंत्री राजनाथ से शिकायत की है कि बहू तो घर छोड़कर जा चुकी है.

हमारे बेटे से नाम अलग कर लिया तो फिर पुरस्कार तो मां-बाप को मिलना चाहिए. हमारी बहू हमारे साथ नहीं रहती है ना ही हमारा बेटा है, हमारी ज़िंदगी बहुत मुश्किल हो गई है. शहीद अंशुमान के पिता रवि प्रताप सिंह JCO के पद से सेना से रिटायर्ड हैं. वो कहते हैं बहू स्मृति यहां से सब कुछ लेकर चली गई. उसने अपना एड्रेस भी चेंज करवा लिया. हमारे पास कीर्ति चक्र की कोई रिसीविंग भी नहीं है. वो भी बहू ले गई.

अंशुमान की आत्मा की शांति के लिए हमने पूजा रखी थी उसमें भी वो नहीं आई थी. वो अपना सारा सामान लेकर जा चुकी है, अब हमारा कोई संपर्क नहीं है. ये दर्द सिर्फ शहीद के पिता का नहीं है, बल्कि मां का कलेजा भी फट गया. अगर अंशुमान की पत्नी उनकी ज़िंदगी का हिस्सा थी तो मां क्या होती है, क्योंकि मां का ही तो बेटा है, मां ना होती तो बेटा कहां होता? फिर कैप्टन कैसे बनता और देश लिए शहीद कैसे होता?

अंशुमन की मां कहती हैं बहुएं भाग जाती हैं. माता-पिता का भी सम्मान होना चाहिए. हमने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और रायबरेली के सांसद राहुल गांधी से आग्रह किया कि सेना में शहीद होने वाले युवाओं के परिवार में बहू के अलावा माता-पिता का भी ख्याल रखना चाहिए. हमारे पास बेटे की फोटो पर रखने लिए पुरस्कार भी नहीं है. हमने अपना कलेजा खो दिया, हमारी बहू मुआवज़ा राशि और पुरस्कार लेकर चली गई.

करीब एक करोड़ की राशि सरकार की तरफ दी गई, जिसमें माता-पिता और बहू के बीच बंटवारा हो गया, लेकिन पुरस्कार एक ही मिलता है तो बंटवारा नहीं हो पाया और वहां बात बिगड़ गई. कहानी यहीं से बनी. अंशुमन तो हैं नहीं, ज़िंदगी क्या क्या दिखाती है, जिस अंशुमान की तस्वीरें इंटरनेट पर महीनों से वायरल है, जिनकी लव स्टोरी सुनकर हर कोई रो देता है, उनके जाने के बाद परिवार में फूट की बात सुनकर कलेजा कांप जाता है. ये कहानी हर हिन्दुस्तानी परिवार की है. ऐसा होना आम है, लेकिन शहीद परिवार में भी ऐसा होता है ऐसा कम सुनने को मिलता है. राजनाथ सिंह क्या करते हैं? किसको न्याय देंगे? अंशुमान पर सिर्फ मां-बाप का हक़ बनता है? या अंशुमान की पत्नी स्मृति का हक़ सिर्फ अंशुमान की संपत्ति और पुरस्कार पर बनता है? ऐसे फैसले जनता ही करती है.

Recent News