न पुलिस के पास थी फोटो,न कोई सुराग,फिल्मी अंदाज में सुलझाया केस तो DGP भी बोले वाह

Global Bharat 14 Feb 2023 3 Mins 52 Views
न पुलिस के पास थी फोटो,न कोई सुराग,फिल्मी अंदाज में सुलझाया केस तो DGP भी बोले वाह

दो राज्यों की पुलिस को एक केस सुलझाने में 15 साल का वक्त लग गया, हर साल हजारों किलोमीटर तक पुलिस की जीप दौड़ती, कोई भी सुराग मिलता, तो तड़ातड़ अधिकारियों के फोन बजते, लेकिन केस नहीं सुलझ पा रहा था, सेवरी की आरके मार्ग पुलिस थाने में जो भी अधिकारी आता, फाइल पलटता, उसमें उसके लिखे शरीर के चिन्ह् पर नजरें गड़ाता, फिर वापस अपने काम में लग जाता, पुलिस के पास उसकी कोई तस्वीर या ज्यादा जानकारी नहीं थी, बस पुलिस को इतना पता था कि

साल 2007 में एक कपड़ा व्यवसायी ने शिकायत दी थी, जिसमें उसने लिखा था कि एक दिन मैंने प्रवीण जडेजा को मार्केट से उधारी के 40 हजार रुपये लाने भेजा, तो उसने लौटकर कहा कि मैं शौचालय गया था, उसी दौरान पैसे चोर छीनकर भाग गए.

24 घंटे की पूछताछ के बाद ही पुलिस ने आरोपी प्रवीण को पकड़ लिया, लेकिन तीन दिन के भीतर ही उसे जमानत मिल गई, और यहीं से आंखमिचौली का खेल शुरू हुआ, पुलिस उसे पकड़ने के लिए प्लान पर प्लान बनाती, लेकिन वो गुजरात के कच्छ में समुद्र किनारे सुकून की जिंदगी जी रहा था, उसे लग रहा था 15 सालों में जो पुलिस उसे नहीं पकड़ पाई, अब क्या ही कर लेगी, लेकिन कहते हैं अगर एक भी सुराग छोड़ दिया तो पुलिस आपको पाताल से भी ढूंढ निकालेगी औऱ यही इसके साथ हुआ. दरअसल जिस मार्क को कई पुलिसवाले बेकार समझ रहे थे, उसे ही क्राइम ब्रांच के एक ऑफिसर ने हथियार बनाया. फाइल में लिखा था उसके दो दांत कृत्रिम हैं, और उस पर सोने की परत चढ़ी हुई है, अब चुनौती ये थी कि पुलिस कितनों का मुंह खुलवाकर दांत देखती, ऐसे में ऑफिसर के दिमाग में एक आइडिया आया, वो आइडिया था एलआईसी एजेंट बनने का. वो 15 साल पहले मुंबई के जिस परेल इलाके में रहता था, वहां उसके साथियों से जब पुलिस ने पूछा तो पता चला वो कच्छ के सभराई गांव का है, और कपड़ा दुकान में काम छोड़ने के बाद वो एलआईसी एजेंट भी बन गया था. ऐसे में महाराष्ट्र पुलिस ने अब गुजरात पुलिस की मदद ली और उस गांव में अपने मुखबिर भिजवाए, तो पता चला एक आदमी है, जिसके दो दांत सोने की तरह चमचमाते भी हैं, लेकिन उसका नाम प्रवीण जडेजा नहीं बल्कि प्रदीप सिंह है, अब पुलिस वहां छापा मारने जाती तो उसके भागने का डर था, ये सुराग भी हाथ से निकलता तो उसका पकड़ाना मुश्किल था. इसीलिए पुलिस एलआईसी एजेंट बनकर पहुंची, सब सादे लिबास में, गले में आईडी कार्ड लटकाए, पॉलिसी की बातें ऐसे कर रहे थे, जैसे वो पुराने एक्सपर्ट हों, और उन्हीं में से एक ने आरोपी को फोन मिलाया, कहा

क्या हमारी बात प्रवीण सिंह से हो रही है, सर आपकी पॉलिसी मैच्योर हो गई है, आप उसके पैसे लेने के लिए सेवरी इलाके में आ जाइए.
इतना कहना था कि वो आरोपी जो 15 साल से भागा-भागा फिर रहा था, 5 मिनट में पुलिस की जाल में फंस गया और दौड़ा-दौड़ा पुलिस के पास पहुंची, यहां भी पुलिस ने शानदार दिमाग लगा रखा था, शिकायत करने वाले और उसे पहचानने वाले दोनों को साथ लेकर गई थी, जैसे ही दोनों ने कहा कि ये प्रवीण नहीं बल्कि प्रदीप है, पुलिस ने उसे धर दबोचा और लुकाछिपी का खेल खत्म हो गया. हमने ये कहानी आपको इसीलिए सुनाई ताकि खुद को तुर्रम खां समझने की भूल न करें, आजकल लोग पॉलिसी और मुनाफे के चक्कर में किसी भी हद तक चले जाते हैं, आरोपी का पकड़ा जाना जरूरी थी, लेकिन यही कॉल अगर फ्रॉड होती तो उसका बड़ा नुकसान हो सकता था, इसीलिए इसके दोनों पहलुओं को समझिए और सतर्क रहिए.

https://youtu.be/gkughZl_u00