11 साल की उम्र में छोड़ा घर, काशी में लिया ज्ञान, फिर बने सबसे कम उम्र के महामंडलेश्वर! जाने कौन हैं सतुआ बाबा, जो योगी के साथ हर तस्वीर में दिखते हैं, योगी जैसी ही है कहानी गले में माला, बदन पर पीला कपड़ा और जनेऊ पहने संतोष दास इसलिए हैं CM योगी के खास!
सीएम योगी हेलीकॉप्टर से उतरें या गंगा स्नान करने जाएं, हर वक्त उनके साथ ये बाबा खड़े नजर आते हैं, यहां तक कि योगी आदित्यनाथ जब काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन के लिए गए तो वहां भी पीला कपड़ा पहने ये बाबा उनके साथ चल रहे थे, कथावाचक मोरारी बापू के मंच पर जब योगी भाषण दे रहे थे, तो वहां दोनों हाथ बांधे ये बाबा मुस्कुराते हुए खड़े थे, ऐसे में ये समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर ये बाबा हैं कौन, क्या योगी की टीम में इनकी नियुक्ति हो गई है या ये मुलाकात अध्यात्मिक है. प्रयागराज से काशी तक इस बात की चर्चा है कि ये बाबा योगी के बेहद खास हैं, तो फिर ये खास बने कैसे ये बताएं उससे पहले जानिए कि आखिर ये हैं कौन.
गले में माला, बदन पर पीला कपड़ा और कांधे पर जनेऊ पहने इन बाबा का नाम है संतोष दास ऊर्फ सप्तम सतुआ बाबा. उत्तर प्रदेश के ललितपुर में जन्म हुआ, बचपन में घरवालों ने नाम रखा संतीश तिवारी, एक बार पूरा परिवार वृंदावन घूमने गया तो वहीं से भक्ति में मन रम गया, महज 11 साल की उम्र में घर छोड़ दिया, सिर्फ 100 रुपये लेकर घर से काशी की ओर निकल पड़े, वहां एक रिक्शा वाले से कहा जहां निशुल्क शिक्षा-दीक्षा मिल जाए, वहां ले चलो, रिक्शा वाले ने सतुआ बाबा आश्रम में पहुंचा दिया.
सतुआ बाबा के बारे में कहा जाता है कि वो गुजरात के पालीदाणा स्टेट के दीवान थे, एक दिन अपने राजा से लोगों में अनाज बंटवा दिया तो राजा ने राज्य से निकाल दिया, उन्होंने काशी की मणिकर्णिका घाट पर आकर घोर तपस्या की, लोगों को भिक्षा में चना देते थे, एक दिन बुजुर्ग ब्राह्मण के रूप में महादेव ने उन्हें दर्शन दिया और कहा चना कैसे खाऊं, तो चना पीसकर उन्हें भिक्षा दी, और वहीं से सतुआ बाबा के रूप में प्रसिद्ध हो गए, और इनका डंका फिऱ ऐसा बजा कि राजा-रानी ने खुद इनके पास आकर माफी मांगी, इनके लिए आश्रम बनवाए.
उसके बाद से ये परंपरा चली आ रही है, पर 11 साल के बालक को ये सारी कहानी नहीं पता थी, इसलिए वो बस इस जिद्द में गेट पर रोए जा रहा था कि हमें अपने पास रख लो, आखिर में तब के सतुआ बाबा ने संतोष तिवारी को न सिर्फ आश्रम में जगह दी, बल्कि इतनी अच्छी शिक्षा-दीक्षा दी कि महज 21 साल की उम्र में इन्हें आश्रम का उत्तराधिकारी और महंत घोषित कर दिया गया, उसके अगले ही साल ये महामंडलेश्वर बन गए. जैसे योगी अजय सिंह बिष्ट से योगी आदित्यनाथ बन गए, वैसे ही सतीश तिवारी दीक्षा लेने के बाद संतोष दास ऊर्फ सतुआ बाबा बन गए. ये वो दौर था जब योगी आदित्यनाथ गोरखपुर के सांसद हुआ करते थे, और संतों से उनकी मुलाकात होती रहती थी, इन्हीं दिनों सतुआ बाबा की मुलाकात सीएम योगी से हुई, दोनों की कहानी लगभग एक जैसी थी, सनातन को लेकर सोच भी एक जैसी है, इसलिए रिश्ते गहरे होते चले गए.
करीब 9 साल पहले सीएम योगी और सतुआ बाबा के मुलाकात की एक तस्वीर हमें नजर आई, जिसके बाद योगी सीएम बने तो कईयों ने कहा सतुआ बाबा इनके खास हैं, हालांकि इनसे कुछ विवाद भी जुड़े, जैसे योगी आदित्यनाथ को मुलायम सरकार ने जेल में डाला, वैसे ही सतुआ बाबा पर भी आरोप लगे, एक मुकदमें भी सरेंडर भी किया, बाद में जमानत मिल गई, इस बार महाकुंभ के आयोजन से ठीक पहले इन्होंने मेला अधिकारी विजय किरण आनंद पर जमीन आवंटन में गड़बड़ी के आरोप लगाए थे, हालांकि बाद में ये ख़बर सामने आई कि महाकुंभ में सबसे बड़ा पंडाल इनका ही है, सेक्टर 19 में इन्होंने एक रैन बसेरा भी बनवाया है, जैसे सतुआ बाबा गरीबों की भलाई चाहते थे, ठीक वैसे ही संतोष दास ऊर्फ सतुआ बाबा भी गरीबों की भलाई की बात करते हैं, सबकी मदद करते हैं. शायद यही वजह है कि योगी आदित्यनाथ भी इन्हें करीबी मानते हैं. आपको ये कहानी कैसी लगी, अपनी राय जरूर दें.