अखिलेश यादव के रहते चाचा शिवपाल को क्या सम्मान कभी नहीं मिलेगा, अखिलेश ने शिवपाल के साथ 28 जुलाई को जो किया, उसे देखकर ऊपर से मुलायम सिंह यादव भी रो रहे होंगे. जिन शिवपाल की तारीफ खुद सीएम योगी भी करते हैं, जिनकी मदद से मुलायम सीएम की कुर्सी तक पहुंचे, वो शिवपाल क्या अखिलेश को सियासत का सबसे नया खिलाड़ी लगते हैं, आखिर अखिलेश ने शिवपाल को नेता प्रतिपक्ष न बनाकर माता प्रसाद पांडे को क्यों बनाया. सूत्र बताते हैं शिवपाल यादव मिठाईय़ां बांटने को तैयार थे, वो अपने कार्यकर्ताओं को ये तक कह चुके थे कि इस बार सदन में शानदार तरीके से सरकार को घेरेंगे, क्योंकि उन्हें लग रहा था नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी मिलेगी तो सदन में अपना भौकाल और टाइट होगा, लेकिन सपा की बैठक में अखिलेश ने ऐसा फैसला ले लिया, चाचा शिवपाल का दिल टूट गया. माता प्रसाद पांडे को नेता प्रतिपक्ष बना दिया.
पहले अखिलेश ने राजा भैया से मुलाकात कर ठाकुर वोटबैंक को बैलेंस करने की कोशिश की, और अब फोकस ब्राह्मणों पर है. लेकिन सवाल इस बात का है कि बार-बार अखिलेश अपने चाचा शिवपाल का दिल क्यों तोड़ रहे हैं, शिवपाल भले ही वो मीडिया में आकर कुछ न बोलें, पर ये तो हर कोई समझता है चाचा का दिल कई बार टूटा है. और न तो चाचा ने भतीजे को पूरी तरह माफ किया है, ना ही भतीजे से चाचा की नाराजगी अभी तक पूरी तरह से दूर हुई है.
आपको याद होगा अखिलेश यादव जब मुख्यमंत्री बने थे और उस वक्त मुलायम सिंह यादव का कंट्रोल पूरी पार्टी पर चलता था, तब भी अखिलेश ने शिवपाल को ज्यादा भाव नहीं दिया, धीरे-धीरे ये बात इतनी आगे बढ़ गई कि शिवपाल को अपनी पार्टी बनानी पड़ गई, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नाम से शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी बनाई, उसके बाद जब अखिलेश को ये एहसास हुआ, बिना चाचा को साथ लिए समाजवादी पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं को साधना या बड़ी जीत हासिल करना मुश्किल नहीं है तो चाचा को मनाने में लग गए, जिसका फायदा डिंपल की जीत के रूप में अखिलेश को दिखा, क्योंकि डिंपल को जीताने के लिए शिवपाल ने जमीनी स्तर पर जितनी मेहनत की थी, वो शायद कोई और नहीं कर पाता. उसके बाद ही कई लोगों को लगने लगा था कि चाचा-भतीजे की दूरियां मिट गई है, लेकिन जब शिवपाल को 2024 चुनाव में अखिलेश ने बदायूं लोकसभा सीट से टिकट दिया तो चाचा ने ये कहते हुए टिकट लौटा दिया कि मैं नहीं लड़ना चाहता बल्कि बेटे के लिए ठीक रहेगा. 69 साल के शिवपाल ने शायद खुद के लिए सियासी उम्मीदें देखनी छोड़ दी है, और इसकी वजह बार-बार मिले उन्हें धोखे हैं, वरना मायावती सरकार के दौर में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी संभाल चुके शिवपाल को योगी सरकार में भी नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी मिल सकती थी. क्योंकि उनका अनुभव माता प्रसाद पांडे से ज्यादा है. हालांकि अखिलेश ने शिवपाल को कुर्सी न देकर ये संदेश देने की कोशिश की है कि सपा परिवारवाद वाली पार्टी नहीं रही, यहां बाहरी लोगों को भी मौके मिल रहे हैं, हालांकि हर पार्टी की सियासत का अपना-अपना तरीका है, अब विधानसभा में माता प्रसाद पांडे अखिलेश के भरोसे पर कितना खरा उतर पाते हैं, ये देखने वाली बात होगी.