नई दिल्ली: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बताया कि चंद्रयान-2 मिशन ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है. इसके ऑर्बिटर ने पहली बार सूर्य की गतिविधि (कोरोनल मास इजेक्शन या CME) का चंद्रमा पर प्रभाव देखा है. यह खोज चंद्रयान-2 के एक वैज्ञानिक उपकरण CHACE-2 के जरिए हुई.
जब सूर्य से निकली तेज ऊर्जा (CME) चंद्रमा की सतह से टकराई, तो चंद्रमा की पतली वायुमंडल जैसी परत (एक्सोस्फीयर) में दबाव और कणों की संख्या में काफी इजाफा हुआ. इसरो ने कहा कि यह वही था, जो वैज्ञानिक पहले केवल अनुमान लगाते थे, लेकिन अब पहली बार इसे प्रत्यक्ष रूप से देखा गया.
कोरोनल मास इजेक्शन (CME) क्या है?
यह सूर्य की बाहरी सतह (कोरोना) से निकलने वाला प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्र का एक बड़ा विस्फोट है, जिसमें हाइड्रोजन और हीलियम जैसे कण अंतरिक्ष में फैलते हैं. ये कण जब किसी ग्रह या चंद्रमा से टकराते हैं, तो वहां के वातावरण पर असर डालते हैं. पृथवी का चुंबकीय क्षेत्र इसे कुछ हद तक रोकता है, लेकिन चंद्रमा पर कोई वायुमंडल या चुंबकीय क्षेत्र नहीं है, इसलिए यह प्रभाव ज्यादा होता है.
पिछले साल 10 मई को सूर्य से कई CME चंद्रमा की ओर आए. इसकी वजह से चंद्रमा की सतह के कण उछलकर उसकी पतली वायुमंडल में शामिल हुए, जिससे उसका घनत्व और दबाव अस्थायी रूप से बढ़ गया. यह खोज चंद्रमा के पर्यावरण पर सूर्य की गतिविधियों के प्रभाव को समझने में मदद करती है. यह भविष्य में चंद्रमा पर मानव बस्तियां या वैज्ञानिक अड्डे बनाने की योजना के लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि ऐसी सौर घटनाएं चंद्रमा के माहौल को बदल सकती हैं और चुनौतियां पैदा कर सकती हैं.
चंद्रयान-2 क्या है
चंद्रयान-2 को 22 जुलाई 2019 को श्रीहरिकोटा से GSLV-MkIII-M1 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया गया था. यह भारत का दूसरा चंद्र मिशन है, जिसमें चंद्रमा की सतह, वायुमंडल और खनिजों का अध्ययन करने के लिए आठ वैज्ञानिक उपकरण थे. हालांकि, विक्रम लैंडर 7 सितंबर 2019 को चंद्रमा पर उतरते समय संपर्क खो बैठा, लेकिन ऑर्बिटर अभी भी 100 किमी की ऊंचाई पर चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा है और पिछले पांच साल से वैज्ञानिक जानकारी जुटा रहा है. CHACE-2 उपकरण चंद्रमा के एक्सोस्फीयर की संरचना और बदलावों का अध्ययन करता है. इस खोज से अंतरिक्ष मौसम और चंद्रमा पर इसके प्रभाव को समझने में मदद मिलेगी, जो भविष्य के मिशनों के लिए महत्वपूर्ण है.