ये उन बच्चों की कहानी है, जिन्हें दीनी तालीम देने के नाम पर बिहार से यूपी के मदरसे में लाया गया था, वो बच्चे रोते हुए पुलिस की पूछताछ में जो बताते हैं वो हर किसी को भावुक कर देगा. बच्चे ने बताया कि मेरे अब्बू और अम्मी से एक मौलाना साहब ने पेपर पर दस्तखत करवाए कि अगर आपके बच्चे को कुछ हुआ तो मेरी जिम्मेदारी नहीं होगी, आप अपनी जिम्मेदारी पर भेज रहे हैं, मेरी तरह दर्जनों बच्चों को ये घरों से उठाकर लाए हैं, लेकिन हमें मदरसे में नहीं पढ़ना. वहां हमें जानवरों की तरह रखा जाता है, खाना भी ठीक नहीं मिलता. अगर कोई लड़का बीमार पड़ जाता है तो उसे दवाई तभी मिलती है, जब घरवाले पैसे भेजते हैं, वरना उसे ऐसे ही पड़े रहना होता है.
इतना बताने के बाद बच्चा रोने लगता है, पुलिसवाले और बाल आयोग के सदस्य उस पर दबाव नहीं बनाते, बल्कि कहते हैं अगर कुछ और कहना हो तो लो पानी पीओ और आराम से कहो, किसी से डरने की जरूरत नहीं है. थोड़ा सा शांत होकर बच्चा फिर बोलना शुरू करता है.
मैं बिहार के अररिया जिले में एक सरकारी स्कूल में पढ़ता था, जैसे ही स्कूल से घर आया मां बोली कल से मदरसे में जाना है, मुझे लगा पास वाले मदरसे में जाना होगा, पर वहां के हाफिज साहब ने कहा कि इन्हें देवबंद के दो मदरसे मदारूल उलूम रफीकिया और दारे अरकम में बस से भेजूंगा, चिंता की कोई बात नहीं है, एक लड़का वहां से आएगा और इन सबको ले जाएगा, आपका बच्चा अकेले नहीं है, बल्कि इसके साथ 92 और बच्चे हैं. मां ने यकीन कर लिया और हमें भेज दिया, लेकिन हमें मदरसे में नहीं जाना, हमें घर जाना, प्लीज हमें घर पहुंचा दीजिए.
बच्चे की ये बात सुनकर राज्य बाल संरक्षण आयोग के सदस्य भी भावुक हो जाते हैं, आयोग की सदस्य डॉ. शुचिता चतुर्वेदी बताती हैं कि इन बच्चों को अनाथ बताकर ये फंडिंग लेते थे, ये खेल काफी बड़ा हो सकता है. बड़ी बात ये है कि जिन दो मदरसों में पढ़ाने के लिए इन बच्चों को ले जाया जा रहा था. उनमें से कोई भी मदरसा रजिस्टर्ड नहीं है, शायद इसीलिए आसपास के बच्चे उनके पास नहीं पहुंचते तो इन मदरसों के मौलाना पूरी प्लानिंग के तहत बिहार के उन जिलों में पहुंच गए, जहां आसानी से उनके मां-बाप को बरगलाया जा सकता था, ये समझाया जा सकता था कि आपके बच्चों को दीनी-तालीम के लिए हमारे मदरसे में भेजना होगा, लेकिन जब खेल पकड़ा गया तो अब न मौलाना साहब को कुछ समझ आ रहा है, न इन मदरसों में पढ़ने वाले बच्चं को, यहां तक कि हर कोई यही सोच रहा है कि जिन बच्चों को डॉक्टर और इंजीनियर बनना चाहिए, उन्हें मां-बाप ऐसे मदरसों में क्यों भेज दे रहे हैं, जहां उनकी भविष्य के साथ खिलवाड़ होता है..
हमने कुछ महीने पहले आपको हरियाणा के एक मदरसे की रिपोर्ट भी दिखाई थी, जिसमें बच्चे विज्ञान से जुड़े सवाल पर कुछ नहीं बोल पाए थे.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि इन मदरसों में जब योगी सरकार साइंस और अंग्रेजी की पढ़ाई अनिवार्य करवाती है, तो फिर कुछ लोग इसका विरोध क्यों करते हैं, ये बात उन मां-बाप को सोचनी होगी, जिनके बच्चों के भविष्य के साथ उनके कुछ अपने लोग ही खिलवाड़ कर रहे हैं.