CBI का नाम सुनकर अच्छे अच्छे अपराधी कांप जाते हैं. क्या पश्चिम बंगाल में असलम और TMC नेताओं को बचाने के लिए पूरी झूठी कहानी गढ़ी गई? ये असलम कौन है? और किस TMC नेता का हाथ आया पहले ये समझते है. कोलकाता उच्च न्यायालय ने शुक्रवार ममता बनर्जी सरकार की हेकड़ी निकाल दी. RG कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भीड़ का हमला राज्य की मशीनरी की पूर्ण विफलता है. पुलिस और सरकार हलफनामा दायर कर बताएं कि अस्पताल में क्या क्राइम सीन के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है?
सबसे बड़ा सवाल ये है कि जो आरोपी पकड़ा गया है, उसका नाम है संजय रॉय, उसका बंगाल पुलिस के साथ गहरा नाता होने का दावा किया जा रहा है? 33 साल के संजय रॉय ने 2019 में सिविक वॉलंटियर के रूप में कोलकाता पुलिस जॉइन की. सिविक वॉलंटियर के तौर पर उसे हर महीने 12 हजार रुपए मिलते थे. आरोपी कोलकाता पुलिस लिखी टीशर्ट और टोपी पहनकर घूमता था. उसने बाइक पर भी कोलकाता पुलिस का स्टिकर लगा रखा है. वह कोलकाता पुलिस की चौथी बटालियन के बैरक में रहता था.
कुछ समय से वह आरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में पुलिस चौकी पर काम करने लगा. घटना वाले दिन भी वह पुलिस चौकी से ही गिरफ्तार हुआ. DNA टेस्ट नहीं किया जाता है. सबसे पहले पुलिस सीसीटीवी देखती है. सीसीटीवी में संजय रॉय को वहां से आते और जाते देखा जाता है. पीड़िता के शरीर के पास एक ब्लूटूथ डिवाइस मिलता है, जब संजय रॉय आता है तो वो ब्लूटूथ उसके गले में दिखता है, लेकिन फिर उस लड़के के शरीर के पास मिलता है. इसी शक पर पुलिस उसे गिरफ्तार करती है.
DNA रिपोर्ट के बिना ही पुलिस इस नतीजे पर पहुंच गई कि एक ही आरोपी है और हमने उसे गिरफ्तार कर लिया. हालांकि पीड़िता की हालत देखकर बंगाल में आक्रोश भड़क गया. 9 तारीख की सुबह संजय ने सामान्य ज़िंदगी शुरू की, नहाया, अपने कपड़े धुले और फिर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. वो पुलिस से कहता है मुझे कोई पछतावा नहीं है चाहो तो सबसे सख्त सज़ा दे दो.
क्या ये किसी फिल्म की कहानी की तरह नहीं लग रही है? लड़की की हालत देखकर ही कोई पुलिसवाला क्राइम सीन की कल्पना पहली नज़र में कर लेता है. फिर जब फॉरेंसिक टीम का सहारा लेकर पहली नज़र में ही केस समझा जा सकता है. फ्रॉरेंसिक जांच से पहले ही एक्सपर्ट केस की काफी जानकारी बता देते हैं. बंगाल में एक ऑडियो नोट वायरल हो रहा है! दावा किया जा रहा है कि उसमें सारी सच्चाई छिपी है.
उस लड़की के साथ कॉलेज का प्रशासन पिछले 6 महीने से क्या कर रहा था? क्यों वो लड़की पिछले 6 महीने से नाइट शिफ्ट कर रही थी. लगातार 36-36 घंटे की शिफ्ट करवाई जाती थी. बंगाल के ज्यादातर अस्पतालों में यही हो रहा है! लड़कियों का पूरा फायदा उठाया जा रहा है.
सवाल ये है कि क्या बंगाल की कहानी पहले लिखी गई फिर घटना को अंजाम दिया गया? क्या पुलिस को पहले से सबकुछ पता था? क्या पुलिस को ये आभास नहीं था कि घटना इतनी बड़ी हो जाएगी? क्या घटना स्थल को मैनेज करने की कोशिश की गई? क्या सबूत मिटाने का प्रयास नहीं किया गया? पश्चिम बंगाल में जो कुछ हो रहा है, उसमें CBI का को भनक लग चुकी है, पुलिस से केस डायरी सीबीआई के पास पहुंच गई है.
एक सवाल सबके दिमाग में घूम रहा है? आरोपी संजय रॉय जो पुलिस का ही ख़ास आदमी था? उसकी इस केस में एंट्री कैसे होती है? बिना DNA जांच के ही पुलिस ने कैसे मान लिया आरोपी एक है? आमतौर पर अपराधी पुलिस को भटकाने के लिए विक्टिम के जेब में या पास में कोई ऐसा सामान छोड़ देते हैं जिससे ये पूरा केस भटक जाता है? तो क्या पुलिस ने इस एंगल पर जांच नहीं की?
सीबीआई ने सिर्फ 24 घण्टे में 19 लोगों को गिरफ्तार कर लिया! बंगाल में सरकार के इकबाल पर सवाल उठाया जा रहा है. ममता बनर्जी खुद धरना देने सड़क पर आ गई, सुप्रीम कोर्ट मूक बैठा है. जज साहब इस प्रकरण पर ख़ामोश क्यों हैं? केजरीवाल की जमानत पर हमारे देश की न्यायालय में रोज़ सुनवाई होती है और बंगाल की घटना पर सब ख़ामोश क्यों हैं?